समाजवादी पार्टी के मुखिया व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 8 मार्च को ईवीएम के विषय को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। इस दौरान एक पत्रकार ने बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी का नाम लेकर सवाल किया तो वह भड़क गए। अखिलेश ने चिल्लाते हुए कहा कि गली मोहल्ले का प्रवक्ता है..क्या बोलेगा वो।
कन्नौज के तिर्वा में जनसभा को संबोधित करते हुए अचानक ही अखिलेश यादव पुलिसकर्मियों पर बिगड़ गए और उन्होंने ‘ऐ…ऐ..पुलिस, ऐ पुलिस’ कहकर बुलाने लगे
डॉक्टर पर भड़के अखिलेश यादव, ‘तुम बहुत छोटे कर्मचारी हो, भाग जाओ यहां से’
ऊपर की ये तीन घटनाएं . ..केवल घटनाएं मात्र नहीं है. ..ये अखिलेश यादव के अहंकार की मनोदशा व्यक्त करता है। आप एक सूबे के मुखिया रह चुके हैं उसके बाद भी जब आपके अंदर इस तरह की भावना हो तो फिर इसका वही नतीजा सामने आता है जो कल उत्तर प्रदेश में देखने को मिला। आप खुद के सामने दूसरों की औकात को जब कमतर मानते हैं या कहें आंकते हैं तो परिणाम यही आता है। आपके आलस्य, अहंकार और विरासत की बदौलत मिले राजनीतिक पहचान के आगे जब जमीन से निकले लोगों की तौहीन करते हो तो ऐसा ही परिणाम सामने आता है।
गली मोहल्ले का प्रवक्ता है..क्या बोलेगा वो।
जी हां राकेश त्रिपाठी गली मोहल्ले का ही प्रवक्ता है..क्योंकि वह जमीनी संघर्ष से तपकर विश्व के सबसे बड़े राजनीतक दल और देश के सबसे बड़े राज्य में बीजेपी प्रवक्ता तक पहुंचा हैं और आगे भी उनके लिए बहुत सारे मौके हैं…आपकी तरह उनके पास कोई राजनीतिक विरासत नहीं है..या आपकी तरह थाली में सजाकर उन्हें विधायकी, मुख्यंमंत्री का पद नहीं दिया गया है। यही गली मोहल्ले का प्रवक्ता आगे चल कर सूबे का और बीजेपी का एक सशक्त चेहरा बनेगा।
चुनावी समर से पहले और बाद में भी इस गली मोहल्ले के प्रवक्ता ने पार्टी की बात लोगों , मीडिया के बीच रखा और आपकी हार उसी का नतीजा है। सोचिए अगर आपने भी गली मोहल्ला के प्रवक्ता को पार्टी में जगह दी होती तो आपकी ऐसी हार नहीं होती। आपका राकेश त्रिपाठी के बयान को मैं संस्कार से जोड़कर ही देखता हूं…जी हां वही संस्कार जो अभी कुछ दिनों पहले मुख्तार अंसारी के बेटे ने खुलेआम दिखाई थी…उसमें और आप में अंतर नहीं के बराबर है…धमकी और धमक से सरकार नहीं बनती है अखिलेश बाबू..इसके लिए आपको गली मुहल्ले जाना ही पड़ता है।
‘ऐ…ऐ..पुलिस, ऐ पुलिस’
अब आप हार गए हैं..पांच साल का लंबा वक्त आपको मिला है ..जरा सोचिएगा ..कन्नौज की रैली में आपने कैसी भाषा का इस्तेमाल किया था। पुलिस वालों को पुलिस वालों..ऐ पुलिसससस.. तुम से ज्यादा बदतमीज, चुनावी रैली मेंआपकी ये भाषा कहीं से सीएम प्रत्याशी के लिए शोभा नहीं देती है।
पुलिस वालों पर तंज कसते हुए आपने यहां तक कहा कि ये सब बीजेपी के इशारे पर किया जा रहा है । आप 5 साल सरकार में रहे ..5 साल विपक्ष में तब भी आपकी समझ में ये नहीं आया कि जनता , पुलिस के साथ व्यवहार किस तरह से किया जाता है..चलिए अच्छा है 5 साल या फिर 2032 तक का समय आपको और मिल गया है..जनता के सहभागी बनिए..
‘तुम बहुत छोटे कर्मचारी हो, भाग जाओ यहां से’
आपके अहंकार की एक बानगी हो तो जिक्र किया जाए। आपको गली मुहल्ले के प्रवक्ता से परेशानी है…आपको पुलिस वाले से परेशानी है..आपको सरकारी काम काज करने वाले अधिकारियों से नाराजगी है…सरकारी कर्मचारी तो एक मुख्यमंत्री भी होता है और विधायक भी। आप डॉक्टर से क्या कह रहे हैं कि दूर हो जाओ मेरी नजरों से …भाग जाओ….तुम बहुत छोटे कर्मचारी हो…जरा सुनिएगा ।
अखिलेश जी…अहंकार बहुतों को ले डूबा है। अपने आप को बदलिए ..दूसरों को सम्मान दीजिए…गली मोहल्ले को लोगों के साथ रहिए…उसके सुख दुख के सहभागी बनिए …अगर अब भी आप नहीं संभले तो कोई बड़ी बात नहीं कि 27 में आपका भी हश्र मायावती की पार्टी जैसा हो जाए। और हां अपनी पार्टी में कुछ गली मोहल्ले के प्रवक्ता को जरूर रखिएगा…क्योंकि जिसे आप गली मोहल्ले के प्रवक्ता बता रहे हैं ना उन्ही सब ने आपकी बैंड बजाई है ।