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आठ दिनी होलाष्टक शुरू, मांगलिक कार्यों पर विराम

भोपाल । फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि यानी गुरूवार से होलाष्टक शुरू हो गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अष्टमी तिथि से पूर्णिमा के इन आठ दिनों में मांगलिक, शुभ कार्यों को वर्जित माना गया है। वहीं नवविवाहिताओं के लिए ससुराल की पहली होली देखने की मनाही भी होती है। होलाष्टक में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे सगाई, विवाह, गृह प्रवेश, गृह आरंभ, मुंडन संस्कार, नवीन वाहन क्रय आदि न करना ही बेहतर है। इस बार 17 मार्च को पूर्णिमा तिथि होगी, जिस दिन होलिका दहन होगा। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक के अशुभ संयोग का प्रभाव समाप्त हो जाता है, अस्तु इसके उपरांत ही शुभ, मांगलिक कार्य करना श्रेयस्कर है।इस बार होलिका दहन के दिन फाल्गुनी पूर्णिमा पर 17 मार्च को भद्रा का साया रहेगा। इसके चलते दहन गोधूलि बेला में नहीं होगा। विद्वानों के मत के अनुसार, दहन के लिए भद्रा के पुच्छ काल के दौरान सिर्फ एक घंटा दस मिनट का वक्त मिलेगा। 18 मार्च को धुलेंडी होगी। ज्योतिर्विदों ने बताया कि 17 मार्च को दोपहर 1.23 बजे से रात 1.18 बजे तक भद्रा रहेगी। इस बीच भद्रा का पुच्छ काल रात 9.06 से रात 10.16 बजे तक रहेगा। इसके चलते शाम के समय गोधूलि बेला में भद्रा का प्रभाव होने से होलिका का दहन नहीं किया जा सकता। भद्रा योग को शास्त्रों में अशुभ माना गया है। रक्षाबंधन और होली के त्योहार पर भद्रा दोष का विचार किया जाता है। इस बार जब भद्रा पुच्छ काल में रहेगी उस समय होलिका दहन करना श्रेष्ठ होगा। माना जाता है कि पुच्छ काल में भद्रा का प्रभाव कम हो जाता है। इसलिए पुच्छ काल के दौरान होलिका का दहन करना की अनुमति विकल्प न होने पर शास्त्र देते हैं। इसके अलावा भद्रा के समाप्त होने के बाद रात 1.23 बजे के बाद होलिका दहन किया जा सकता है।

आठ दिन शुभ कार्य नहीं होंगे
ज्योतिर्विदों के अनुसार आज से होलाष्टक शुरू होकर होलिका दहन तक रहेगा। इन आठ दिनों के अंतराल में सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य करने की आज्ञा शास्त्र नहीं देते हैं। इन दिनों भगवत भजन करना श्रेष्ठ होता है। दो साल से कोरोना के कारण होली का त्योहार नहीं मना पाए थे। इस बार कोरोना संक्रमण की रफ्तार कम होने के बाद माना जा रहा है कि लोग इस बार त्योहार मनाने के मूड में हैं।

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