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Ayodhya Verdict : राम मंदिर निर्माण में 9 नवंबर का विशेष महत्‍व, इतिहास के पन्‍नों में दर्ज हुई तारीख

नई दिल्‍ली। अयोध्‍या जमीन विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जमीन का हक रामजन्मभूमि न्यास को दे दिया है। आज की तारीख यानि 9 नवंबर इतिहास के पन्‍नों में दर्ज हो गई है। राममंदिर के लिए 9 तारीख विशेष महत्‍व रखती है। इसे एक संयोग भी माना जा सकता है कि अयोध्या में राम जन्म भूमि का शिलान्यास 1989 में 9 नवंबर को ही किया था।

दलित युवक ने रखी थी राम जन्‍म मंदिर की पहली ईंट

अयोध्या विवाद में 9 नवंबर 1989 को विश्‍व हिंदू परिषद ने हजारों हिंदू समर्थकों संग अयोध्या में राम जन्म भूमि का शिलान्यास किया था। हजारों राजनैतिक हस्तियों, बड़े-बड़े साधु-संतों के बीच उस वक्त 35 साल के रहे एक दलित युवक कामेश्वर चौपाल के हाथों राम मंदिर के नींव की पहली ईंट रखवायी गई थी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने से सबसे ज्यादा खुश अगर कोई है तो वो कामेश्वर (अब 65 वर्ष) ही हैं, जिन्होंने नींव की पहली ईंट रखी थी। कामेश्वर कहते हैं कि वह नींव की पहली ईंट रखने वाला पल वह कभी नहीं भूल सकते। वो पल उन्हें गर्व का एहसास कराता है।

तब राजीव गांधी थे देश के प्रधानमंत्री

जब साल 1989 में विवादित स्थल के पास राम मंदिर की नींव रखी गई, तब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे। दरअसल, उस समय राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरे देश में जो लहर थी, उसने राजीव गांधी पर राजनीतिक दबाव बना दिया था। ऐसे में राजीव गांधी को यह कदम उठाना पड़ा, फिर देश में इसी वर्ष आम चुनाव होने थे। राजीव गांधी नहीं चाहते थे कि उनकी छवि हिंदू विरोधी नेता के रूप में उभरे। शाहबानो केस को लेकर हिंदू पहले ही उनसे नाराज थे। ऐसे में हिन्दुओं को लुभाने के लिए राजीव गांधी ने राजनीतिक दबाव में 1989 में हिंदू संगठनों को विवादित स्थल के पास राम मंदिर के शिलान्यास की इजाजत दे दी थी।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन का हक रामजन्मभूमि न्यास को देने का आदेश सुनाया है। मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए अयोध्या में ही पांच एकड़ जमीन किसी दूसरी जगह दी जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस बात के प्रमाण हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले राम चबूतरा, सीता रसोई पर हिंदुओं द्वारा पूजा की जाती थी। अभिलेखों में दर्ज साक्ष्य से पता चलता है कि हिंदुओं का विवादित भूमि के बाहरी हिस्‍से पर कब्‍जा था। मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन फैसले में कई विरोधाभास है, लिहाजा हम फैसले से संतुष्ट नहीं है।

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