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उत्तराखंड

पर्यावरण संकट: नैनी झील में घट रहा ऑक्सीजन, पर्यटकों की लापरवाही ने खतरे में डाला झील का जीवन

उत्तराखंड के नैनीताल की प्रसिद्ध नैनी झील अब खतरे में है. पर्यटकों की लापरवाही, प्रदूषण और हानिकारक खाद्य पदार्थों के सेवन के कारण यह झील पर्यावरणीय संकट का सामना कर रही है. झील के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए विशेषज्ञ और अधिकारी चिंता जता रहे हैं. झील के किनारे हर दिन सैकड़ों ब्रेड के पैकेट, प्लास्टिक के रैपर और अन्य कचरा पाया जाता है.

पर्यटक अक्सर मछलियों को ब्रेड, बिस्कुट और बासी खाना खिलाते हैं, यह सोचकर कि यह एक दयालुता का कार्य है. हालांकि, यह प्रथा झील के पानी की गुणवत्ता और जलीय जीवन को गंभीर नुकसान पहुंचा रही है. डीएसबी कॉलेज के जूलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. एचएस बिष्ट बताते हैं कि ब्रेड और बिस्कुट मछलियों का प्राकृतिक भोजन नहीं हैं. उन्होंने कहा कि इन चीजों में रसायन और फफूंद होते हैं, जो मछलियों के पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं.

मझील में कम हो रहा ऑक्सीजन स्तर

उन्होंने आगे कहा कि कभी-कभी झील में फेंका गया खराब खाना संक्रमण फैलाता है, जिससे मछलियों की मौत भी हो सकती है. उन्होंने आगे कहा कि झील में पहले से ही मछलियों के लिए पर्याप्त प्राकृतिक भोजन उपलब्ध है, और उन्हें उसी पर निर्भर रहने दिया जाना चाहिए. इन खाने की आदतों के कारण झील में ऑक्सीजन का स्तर कम हो रहा है. इसका असर न केवल मछलियों पर, बल्कि अन्य जलीय जीवों पर भी पड़ रहा है.

नगर निगम ने लगाया वार्निंग नोटिस

हाल ही में, झील की सतह पर मरी हुई मछलियां तैरती हुई देखी गईं, जिससे स्थानीय लोगों और अधिकारियों में चिंता पैदा हो गई. नगर निगम के सीईओ रोहिताश शर्मा ने कहा कि प्रशासन ने इस हानिकारक प्रथा को रोकने के लिए कदम उठाए हैं. उन्होंने कहा कि हमने झील के चारों ओर चेतावनी के नोटिस लगा दिए हैं, जिसमें मछलियों को खाना खिलाने या कूड़ा फेंकने वालों पर जुर्माना होने की बात लिखी हुई हैं.

उन्होंने आगे कहा कि मछलियों को खाना खिलाना कानूनी अपराध है. हमने झील की सफाई के लिए एक विशेष टीम भी बनाई है और झील संरक्षक व्यवस्था को फिर से लागू करने पर विचार कर रहे हैं.

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