2019 के बाद नहीं हुई है इको सेंसेटिव जोन की बैठक! कई निर्माण कार्य संदिग्ध

पलामू: पीटीआर यानी पलामू टाइगर रिजर्व के आसपास घोषित ईको सेंसिटिव जोन (ESZ) की निगरानी समिति की बैठक 2019 के बाद एक बार भी नहीं हुई है. इसका मुख्य कारण पलामू प्रमंडल में लंबे समय से नियमित आयुक्त (कमीश्नर) की नियुक्ति न होना है. इस समिति के पदेन अध्यक्ष प्रमंडलीय आयुक्त होते हैं, जबकि पलामू टाइगर रिजर्व के उप निदेशक सचिव तथा संबंधित जिलों के उपायुक्त (DC) और जिला खनन पदाधिकारी (DMO) सदस्य होते हैं.
यह समिति ही रिजर्व क्षेत्र और ईएसजेड में किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य या अन्य गतिविधियों की अनुमति देती है. पिछले एक वर्ष से अधिक समय से पलामू में आयुक्त का पद रिक्त होने के कारण पलामू टाइगर रिजर्व के उप निदेशक द्वारा कई बार पत्र लिखने के बावजूद बैठक आयोजित नहीं हो सकी है. यह समिति भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से संबद्ध है.
पीटीआर, बेतला और महुआडांड़ वुल्फ सेंचुरी प्रभावित
समिति की बैठक नहीं होने से पलामू टाइगर रिजर्व (PTR), बेतला नेशनल पार्क और महुआडांड़ वुल्फ सेंचुरी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. इन क्षेत्रों में तेजी से पक्के निर्माण कार्य हो रहे हैं, जिन्हें भविष्य में अवैध घोषित किया जा सकता है.
नेतरहाट हिल स्टेशन, जो पलामू टाइगर रिजर्व और लोहरदगा वन मंडल के अंतर्गत आता है, में भी पिछले कुछ वर्षों में बड़े पैमाने पर पक्के मकान, होटल और अन्य व्यावसायिक निर्माण हुए हैं. इनमें से किसी भी निर्माण को ईएसजेड समिति से अनुमति नहीं ली गई है. बेतला नेशनल पार्क और उसके आसपास के क्षेत्रों में भी कई निर्माण कार्य संदिग्ध हैं.
पलामू टाइगर रिजर्व के निदेशक एसआर नटेश ने बताया, “समिति का मुख्य उद्देश्य संरक्षित क्षेत्रों में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाना है. बैठक नहीं होने से यह कार्य प्रभावित हो रहा है.”
ईको सेंसिटिव जोन क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है?
ईको सेंसिटिव जोन संरक्षित वन क्षेत्रों (टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क, वन्यजीव अभयारण्य) के चारों ओर 0 से 10 किलोमीटर तक का बफर क्षेत्र होता है. अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी चौड़ाई अलग-अलग हो सकती है. कई इलाकों में यह दो से तीन किलोमीटर तक होता है, जबकि कई इलाकों में यह 7 से 8 किलोमीटर तक होता है.
इन इलाकों में कोई भी पक्का कंस्ट्रक्शन का कार्य नहीं होगा या व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं किया जाना है. छोटे निर्माण कार्य के लिए भी इको सेंसेटिव जोन की समिति से अनुमति लेना जरूरी है. एक का सेंसेटिव जोन में अस्पताल और पानी को लेकर पक्के निर्माण की अनुमति दी जाती है. इको सेंसेटिव जोन में घर या रोड निर्माण बनाने के लिए भी समिति की अनुमति की जरूरत होती है.
इस क्षेत्र में निम्नलिखित गतिविधियाँ पूरी तरह प्रतिबंधित या नियंत्रित हैं:
बड़े व्यावसायिक निर्माण (होटल, मॉल आदि)
- खनन कार्य
- पेड़ों की कटाई
- विस्फोटक का उपयोग
- वन भूमि का गैर-वानिकी उपयोग
- आतिशबाजी आदि
छोटे-मोटे निर्माण के लिए भी ईएसजेड समिति से अनुमति लेना अनिवार्य
वन्यजीव विशेषज्ञ प्रो. डीएस श्रीवास्तव कहते हैं, “समिति की बैठक का अनिश्चितकाल तक टलना अत्यंत गंभीर लापरवाही है. इसके अभाव में लोग अपनी मर्जी से निर्माण कर रहे हैं, जिससे वन्यजीव संरक्षण को अपूरणीय क्षति पहुँच रही है. तत्काल प्रभाव से समिति की बैठक आयोजित की जानी चाहिए और दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए.”
यह मामला न सिर्फ प्रशासनिक उदासीनता को उजागर करता है, बल्कि पलामू टाइगर रिजर्व जैसे महत्वपूर्ण जैव-विविधता क्षेत्र के भविष्य पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है.






