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स्विट्जरलैंड में लग सकता है जानवरों पर दवाओं की टेस्टिंग पर प्रतिबंध 

ज़्यूरिख । आप में से कई लोगों ने हॉलीवुड फिल्म ‘प्लैटनेट ऑफ द एप्स’ देखी होगी। इस फिल्म में चिंपैंजी पर दवाओं की जांच की जाती है, जिसकी वजह से एक चिंपैंजी में कुछ बदलाव होते हैं और वह इंसानों की तरह बात करने लगता है। इसके बाद वह इंसानों के खिलाफ खड़ा हो जाता है। इसके लिए वह जानवरों की सेना तैयार कर लेता है।
वह जानवरों के साथ हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए इनसानों के विरुद्ध लामबंदी शुरू कर देता है। इसी तरह फिल्म ‘डीप ब्लू सी’  में दवाओं के असर की वजह से एक शार्क मछली अपनी सीमा से ज्यादा घातक हो जाती है। हाल ही में आई वेबसीरिज ‘ह्यूमन’ में जब इंसानों पर वैक्सीन के ट्रायल किए जाते हैं, तो उन्हें गिनीपिग बताया जाता है। यह तो रही रील लाइफ की बात, रियल लाइफ में भी इंसान सदियों से जानवरों पर दवा बनाने का प्रयोग करते आ रहे हैं।
स्विट्जरलैंड ऐसी जांच पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश बनने वाला है। यहां की जनता, जानवरों की जांच पर प्रतिबंध को लेकर अपना मत देगी। देश के दवा क्षेत्र से विरोध होने के बावजूद इस अभियान में जुटे लोगों ने चूहों और अन्य जानवरों पर जांच और दूसरे प्रयोगों की रोक के लिए स्विटजरलैंड की प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत वोट देने के लिए पर्याप्त हस्ताक्षर एकत्र किए हैं। हालांकि, रोश और नोवार्टिस जैसी बड़ी कंपनियों का कहना है कि नई दवा को विकसित करने के लिए इस तरह के शोध की बेहद जरूरत होती है। वहीं विरोध करने वाले और जानवरों पर जांच को प्रतिबंधित करने का समर्थन करने वालों का कहना है कि यह बेहद अमानवीय और अनैतिक है। सरकारी आंकडों के मुताबिक 2020 में स्विस प्रयोगशालाओं में करीब 5 लाख जानवर मारे गए। देश की करीब 68 फीसदी जनता ने इस प्रतिबंध का विरोध किया है। ऐसे में नए कानून के पारित होने की संभावना कम ही है।
इससे पहले 2013 में भारत ने सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण के लिए जानवरों पर होने वाली जांच पर प्रतिबंध लगाया था। इस तरह भारत, दक्षिण एशिया का पहला देश था जिसने इस तरह का प्रतिबंध लागू किया था। यहां पर दवाओं की जांच के लिए कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। हालांकि, अब भारत जानवरों की जगह अंगों पर चिप लगाकर जांच करने वाली तकनीक पर शोध कर रहा है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक तकनीक के विकास के साथ प्रयोगशाल में इंसानी ऊतको के संस्करण को विकसित करने पर काम चल रहा है, जो मानव रोग पर होने वाली जांच के लिए जानवरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

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