Exit Ban in China: चीन अमूमन सीमाओं पर अपनी हरकतों की वजह से सुर्खियों में रहता है. इस बार चीन ने लोगों के देश छोड़ने पर पाबंदी लगाकर सुर्खियां बटोरी हैं. चीन सिर्फ अपने नागरिकों को ही नहीं, बल्कि विदेशी अधिकारियों को भी देश से बाहर जाने से रोक रहा है. यही नहीं, चीन की सरकार लगातार इस प्रतिबंध का दायरा भी बढ़ा रही है. अधिकार समूह सेफगार्ड डिफेंडर्स की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अब चीन के नागरिकों के साथ ही विदेशी नागरिक भी निकास प्रतिबंधों के दायरे में आ गए हैं. इसके लिए चीन की सरकार ने कानून का सहारा लिया है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन से बाहर जाने पर लगाए गए प्रतिबंध से जुड़े मामलों के अदालतों में पहुंचने की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. निकासी प्रतिबंधों को लेकर विदेशी व्यापार लॉबी में काफी चिंता का माहौल बना हुआ है. सेफगार्ड डिफेंडर्स की रिपोर्ट कहती है कि साल 2012 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के चीन की सत्ता संभाने के बाद से देश छोड़ने पर पाबंदी के लिए कानून का विस्तार किया गया है. कई बार चीन की सरकार कुछ लोगों को रोकने के लिए कानून का दायरा भी लांघ चुकी है.
सेफगार्ड डिफेंडर्स की मिशन डायरेक्टर लॉरा हर्थ का कहना है कि साल 2018 से लेकर 2023 तक पांच नए कानून बनाए गए हैं. यही नहीं, मौजूदा कानूनों में मनमुताबिक बदलाव भी किए गए हैं. ये सभी कानून चीन की सरकार को किसी पर भी निकासी प्रतिबंध लागू करने की छूट देते हैं. उनके मुताबिक, अब तक चीन में निकास प्रतिबंध से जुड़े 15 कानूनों को पारित कर लागू किया जा चुका है. बता दें कि इस मामले ने ऐसे समय में तूल पकड़ा है, जब चीन और अमेरिका के बीच व्यापार व सुरक्षा विवादों को लेकर तनाव काफी बढ़ गया है.
मजेदार है कि निकास प्रतिबंधों का दायरा उस समय बढ़ाया गया है, जब चीन दुनिया को ये बता रहा है कि कोरोना महामारी के चलते लगाई गई पाबंदियों के लंबे समय बाद अब देश को विदेशी निवेश और पर्यटन के लिए पूरी तरह से खोला जा रहा है. रॉयटर्स की ओर से किए विश्लेषण के मुताबिक, साल 2016 से लेकर 2022 के बीच प्रतिबंधों से जुड़े अदालती मामलों की संख्या में आठ गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है. बता दें कि रॉयटर्स ने ये विश्लेषण चीन की शीर्ष अदालत से जुटाए निकास प्रतिबंध आंकड़ों के आधार पर किया है.
रॉयटर्स ने पाया कि सुप्रीम कोर्ट के डाटाबेस में देश छोड़ने से रोकने के ज्यादातर मामले आपराधिक नहीं थे. इनमें से ज्यादातर मामले सिविल थे. यही नहीं, इनमें से किसी भी मामले में कोई विदेशी अधिकारी या नागरिक शामिल नहीं था. वहीं, इनमें से कोई भी मामला राजनीतिक या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ नहीं था. बता दें कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में अपराधों में शामिल संदिग्धों पर भी यात्रा प्रतिबंध लगा जाते हैं, लेकिन ये सिविल मामलों में नहीं किया जाता है. इस मामले को लेकर जब रॉयटर्स ने चीन के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय से सवाल किए तो उनकी ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया.
अधिकार समूह सेफगार्ड डिफेंडर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय मामलों में फंसे चीन के नागरिकों, अधिकार कार्यकर्ताओं, अधिवक्ताओं और अल्पसंख्यक उइगर मुस्लिमों पर देश छोड़ने से पांबदी लगाई गइ है. अधिकार समूह ने चीन की न्यायिक रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि साल 2016-18 के बीच बकाया जमा नहीं करने के कारण 34 हजार लोगों पर निकास प्रतिबंध लगाए गए हैं. कुछ अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि चीन से बाहर निकलने पर प्रतिबंध का व्यापक इस्तेमाल राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कड़े सुरक्षा उपायों को दर्शाता है.
चीनी अधिकार कार्यकर्ता शियांग ली कहती हैं कि सरकार किसी को भी देश छोड़ने से रोकने के लिए कोई भी कारण ढूंढ सकती है. डीडब्ल्यू की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि इसके लिए आपको किसी अपराध में शामिल होना जरूरी नहीं है. बता दें कि खुद शियांग ली को दो साल तक देश छोड़ने से रोक दिया गया था. हालांकि, वह 2017 में चीन से भागने में सफल रहीं. इसके बाद उन्होंने अमेरिका में शरण ली. अब ली का कहना है कि चीन में कानून का राज नहीं है. चीन में कानून का इस्तेमाल कम्युनिस्ट पार्टी के हितों को साधने के लिए किया जाता है. चीन ने हाल में जासूसी विरोधी कानून में भी सुधार किया है. इससे अब किसी भी चीनी या विदेशी नागरिक को देश छोड़ने से रोका जा सकता है.