इंटरनेशनल डेस्कः जर्मनी में पिछले कुछ दिनों से किसान लगातार सड़कों पर उतकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कई जगहों पर किसानों ने हाइवे को जाम कर दिया है और डीजल पर सब्सिडी को खत्म करने के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। दरअसल, जर्मनी की सरकार ने बचत करने के लिए किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी घटाने की बात कही। इसके तहत सरकार ने कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले डीजल पर दिया जाने वाला पार्शियल (आंशिक) टैक्स रीफंड और कृषि के लिए इस्तेमाल होने वाली गाड़ियों-ट्रैक्टर, ट्रक पर टैक्स में दी जाने वाली छूट खत्म करने का फैसला किया।
यह बात किसानों को पसंद नहीं आई और वो इसका विरोध करने लगे। किसान संगठनों ने चेतावनी दी कि अगर उन्हें मिलने वाली सब्सिडी वापस ली गई, तो वे देशभर में प्रदर्शन करेंगे। इसी के साथ 18 दिसंबर 2023 से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन, जो अभी भी जारी है। ताजा अपडेट के मुताबिक किसानों ने जर्मनी के म्यूनिख, बर्लिन समेत कई शहरों में हाईवे और सड़कें जाम कर दी। सड़कों पर खाद भी फैला दी।
ट्रैक्टर के साथ प्रदर्शन
हड़ताल के कारण 7 जनवरी से ही बड़ी संख्या में किसान बर्लिन आने लगे थे। यहां ऐतिहासिक ब्रैंडनबुर्ग द्वार के पास किसानों ने बड़ी संख्या में ट्रैक्टर खड़े किए हैं। आमतौर पर सोमवार की सुबह ट्रैफिक से भरी सड़कें ट्रैक्टरों से पटी हैं और किसान उनके हॉर्न बजाकर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं।
बर्लिन पुलिस ने बताया कि 8 जनवरी को सुबह 10 बजे तक उन्होंने प्रदर्शन में भाग ले रहे 566 ट्रैक्टर, ट्रक, गाड़ियां और ट्रेलरों की गिनती की है। देशभर में ऐसे सैकड़ों प्रदर्शन जारी हैं। उत्तरी और पूर्वी जर्मनी में भी कई जगहों पर यातायात और जनजीवन प्रभावित होने की खबर है। कई जगहों पर किसानों की रैलियां भी प्रस्तावित हैं।
कटौती की वजह क्या है?
बीते दिनों बजट की घोषणा करते हुए सरकार ने बड़े स्तर पर कटौती करने की घोषणा की थी। इस प्रस्तावित कटौती के तहत सरकार करीब 6,000 करोड़ यूरो की बचत करना चाहती है। इस फैसले की पृष्ठभूमि में कोविड-19 के दौरान संसद द्वारा मंजूर किए गए क्रेडिट्स है। इस फंड का जो हिस्सा इस्तेमाल नहीं हुआ था, उसे 2021 में सरकार ने विशेष फंड में स्थांतरित कर दिया था।
नवंबर 2023 में फेडरल कॉन्स्टिट्यूशन कोर्ट ने फैसला दिया कि महामारी से जुड़े फंड को किसी अन्य मद में इस्तेमाल करना असंवैधानिक है। इस फैसले के बाद सरकार के आगे बजट का गंभीर संकट खड़ा हो गया और बचत की अनिवार्यता पैदा हो गई।
खर्च कम करने की कोशिशों के तहत सरकार 8,000 करोड़ यूरो की बचत करना चाहती है। इसी क्रम में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी घटाकर भी सरकारी खर्च में कटौती की योजना है। इसके लिए कृषि कार्यों में इस्तेमाल होने वाले डीजल पर दिया जाने वाला आंशिक टैक्स रीफंड और कृषि गाड़ियों पर टैक्स में छूट खत्म करने की योजना है, जिसका किसान विरोध कर रहे हैं।
दक्षिणपंथियों की घुसपैठ का खतरा
विरोध के मद्देनजर पिछले हफ्ते सरकार ने कहा कि वह सब्सिडी में प्रस्तावित कटौती को थोड़ा कम करेगी, लेकिन जर्मन फार्मर्स असोसिएशन ने इसे अपर्याप्त बताया और प्रदर्शन जारी रखने का फैसला किया। विरोध प्रदर्शन के बीच दक्षिणपंथी तत्वों के घुसपैठ की आशंका भी सामने आई है। पिछले हफ्ते जर्मनी के आंतरिक मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने चेतावनी दी थी कि देश विरोधी और दक्षिणपंथी तत्व, किसान प्रदर्शनों को अपने हित में भुनाने की कोशिश कर सकते हैं।
थुरिंजिया राज्य में “ऑफिस फॉर दी प्रॉटेक्शन ऑफ दी कॉन्स्टिट्यूशन” के प्रमुख स्टेफान क्रामर ने भी यह आशंका जताई है। उन्होंने कहा कि दक्षिणपंथी चरमपंथी लोग किसानों के प्रदर्शनों का इस्तेमाल करने की कोशिश कर सकते हैं। एक अखबार से बात करते हुए क्रामर ने कहा, “ऐसे भावुक मुद्दे उनकी रणनीति के लिए मुफीद होते हैं।
सरकार के फैसले से किसानों का रोजगार प्रभावित होगा
किसानों का कहना है कि सब्सिडी में कटौती किए जाने से उनका रोजगार प्रभावित होगा। रॉयटर्स के मुताबिक जर्मन फार्मर्स असोसिएशन के अध्यक्ष जोआषिम रुकवीड ने कहा- सरकार के फैसले से ना केवल किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा, बल्कि जर्मनी के कृषि क्षेत्र के कॉम्पिटिशन पर भी असर होगा। इसके अलावा खाने-पीने की चीजों में महंगाई बढ़ेगी। एक किसान ने कहा- इसके कारण सालाना करीब 20,000 यूरो यानी करीब 18 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ सकता है।
बजट मसौदे को अंतिम रूप नहीं मिला
किसानों के बढ़ते आंदोलन को देखते हुए और कोर्ट की दखल के बाद बजट मसौदे को अंतिम रूप नहीं मिल सका। कोर्ट ने सरकार को सब्सिडी में कटौती की योजना को संशोधित करने का आदेश दिया। इसके बाद 4 जनवरी 2024 को सरकार ने कहा डीजल पर दिया जाने वाला पार्शियल (आंशिक) टैक्स रीफंड और कृषि के लिए इस्तेमाल होने वाली गाड़ियों-ट्रैक्टर, ट्रक पर टैक्स में दी जाने वाली छूट एकदम से खत्म नहीं होगी। इस साल सब्सिडी 40% कम की जाएगी, 2025 में 30% कम कर दी जाएगी और 2026 से पूरी तरह खत्म की जाएगी। किसान सरकार के इस फैसले से भी नाराज है, लिहाजा किसान आंदोलन जारी है।
भारत में सितंबर 2020 में शुरू हुआ था किसान आंदोलन
सितंबर 2020 में तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। यह आंदोलन बढ़ता गया। केंद्र सरकार के इन तीनों कृषि कानून को वापस लेने के बाद 11 दिसंबर 2021 को किसान आंदोलन खत्म हुआ था।