लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का ऐलान हो चुका है और चुनाव के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI के खतरे से निपटने के लिए भी तैयारियां शुरू हो गई हैं. एआई की मदद से से तैयार वीडियो, ऑडियो या फिर तस्वीरों से बचाव के लिए Meta और Google ने कमर कस ली है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से तैयार डीपफेक या वॉयस के जरिए लोकसभा चुनाव को प्रभावित नहीं किया जा सके इसलिए सरकार भी एक्शन मोड में आ गई है.
सरकार सभी सोशल मीडिया कंपनियों को चुनाव के मद्देनजर निर्देश जारी कर चुकी है. सरकार से मिले निर्देश के जवाब में सोशल मीडिया कंपनियों ने कहा है कि वह एआई का दुरुपयोग करने वाले शातिरों से निपटने को तैयार हैं. राजनीतिक दल से लेकर तमाम सरकारी और स्वतंत्र प्राधिकार तक लोकसभा चुनाव के दौरान एआई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन केंद्रीय मंत्री से लेकर विशेषज्ञ तक एआई के दुरुपयोग से चुनाव के प्रभावित होने की चिंता जता चुके हैं.
यही वजह थी कि सरकार ने एक्शन मोड में आकर सोशल मीडिया कंपनियों को एआई के खतरे से निपटने के लिए आगाह कर दिया है. एआई का दुरुपयोग चुनाव की निष्पक्षता के लिए खतरा बन सकता है. ऐसे में आईटी क्षेत्र की शीर्ष कंपनी मेटा और सर्च इंजन गूगल की तैयारी पूरी होना सरकार के लिए किसी राहत भरी खबर से कम नहीं है.
गूगल-मेटा ने उठाया ये कदम
गूगल और मेटा ने 15 भारतीय भाषाओं में 11 स्वतंत्र फैक्ट चेकिंग पार्टनर के साथ हाथ मिलाया है. कंपनी इन्हें मेटा की कंटेंट लाइब्रेरी का एक्सेस देगी ताकि AI के खतरों से निपटा जा सके. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जनरेट हुए कंटेंट को स्वतंत्र पार्टनर फैक्ट चेक कर रिव्यू और रेट करेंगे और और एआई से बनी फोटो पर मार्रकर लगाएगी.
भारत से जुड़े हुए इलेक्शन रुम तैयार होंगे जो रियल टाइम में काम करेंगे. मेटा ने विज्ञापनदाताओं को और डिजिटल मेथड से जुड़े हुए कंटेंट को पहले से घोषित करने के निर्देश दिए हैं. व्हाट्सएप पर एआई से जुड़ी हेल्पलाइन सेवा को भी शुरू किया गया है, जिसमें आम लोग कंटेंट भेज कर उसकी जांच कर सकते हैं.
व्हाट्सएप मैसेज की लिमिट पहले की तरह जारी रहेगी. आप लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि मेटा फैक्टचेक के खारिज किए हुए कंटेंट को प्लेटफार्म पर जगह नहीं देगा. वहीं, दूसरी तरफ गूगल ने शक्ति प्लेटफार्म को लॉन्च किया है, गूगल चुनाव से जुड़े हुए सभी विज्ञापनों को सार्वजनिक करने का काम करेगा.
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान डिजिटल प्लेटफार्म का दुरुउपयोग होना काफी आम बात है. भले ही बड़ी-बड़ी सोशल मीडिया कंपनियां इन्हें रोकने का दावा करती हैं, लेकिन वोटर की समझदारी और होशियारी ही फेक न्यूज़ से उन्हें दूर रख सकती है.