भोपाल। मध्य प्रदेश की मोहन सरकार नियम विरुद्ध कालोनी निर्माण पर रोक लगाने के लिए नियम और सख्त करने जा रही है। इसके तहत अब नियम विरुद्ध कॉलोनी बनाई तो कॉलोनाइजर पर एफआईआर दर्ज कर सीधे जेल भेजा जाएगा। वहीं, उसकी संपत्ति भी जब्त कर बैंक खाते सीज किए जाएंगे।
दरअसल, मध्य प्रदेश नगर पालिका कॉलोनी विकास नियम में 1998 से ही प्रावधान है कि कलेक्टर और नगर निगम आयुक्त कॉलोनाइजर पर कार्रवाई कर उसे जेल तक भेज सकते हैं। वहीं इसे संज्ञेय अपराध मानते हुए नियमों में यह भी प्रावधान है कि पुलिस बिना किसी पूछताछ के अनधिकृत कॉलोनी काटने वाले कॉलोनाइजर को गिरफ्तार कर सकती है। लेकिन नियम विरुद्ध कॉलोनी बनाने वाले कॉलोनाइजर पर न तो अब तक कोई एफआईआर दर्ज की गई और न ही किसी कॉलोनाइजर को जेल हुई। परिणाम स्वरूप नियम विरुद्ध कालोनी बना दी जाती है।
इसके चलते अब मोहन सरकार मध्य प्रदेश नगर पालिका कॉलोनी विकास नियम में बदलाव कर संशोधन अधिसूचना जारी करने की तैयारी में है। नए नियम का प्रारूप तैयार किया जा रहा है, जिसे कैबिनेट की स्वीकृति के बाद लागू कर दिया जाएगा।
कॉलोनाइजर द्वारा कृषि भूमि पर बिना अनुमति लिए कॉलोनी काट ली जाती है और क्रेता भी कालोनी में प्लाट खरीदकर बिना अनुमति के मकान बना लेते हैं। इससे निकायों को बड़ी राजस्व हानि होती है। वहीं कंपनी का सुव्यवस्थित विकास भी नहीं हो पाता है और सरकार की सुविधाओं से वंचित रहते हैं। ऐसे में यह भी प्रावधान किया जा रहा है कि अनधिकृत कालोनी का पहले सरकार अधिग्रहण करेगी और वहां के खाली प्लाट का विक्रय कर कालोनी का विकास किया जाएगा। ऐसी कालोनियों का राज्य सरकार सर्वे करा रही है और काॅलोनी का सर्वे पूरा होने तक रजिस्ट्री व नामांतरण पर भी रोक रहेगी।
अभी यह है प्रावधान
तत्कालीन शिवराज सरकार ने वर्ष 2022 तक की अनधिकृत कॉलोनियां वैध करने के निर्देश दिए थे। इसके लिए मध्य प्रदेश नगर पालिका कॉलोनी विकास नियम 2021 को संशोधित किया था। इसके पहले 31 दिसंबर 2016 तक अस्तित्व में आईं अनधिकृत कॉलोनियों को ही वैध करने का प्रावधान था। वर्तमान में संशोधित नियम लागू है। इसमें यह प्रावधान है कि चिन्हित अनाधिकृत कालोनी में एलआईजी एवं ईडब्ल्यूएस वर्ग के रहवासियों से कोई विकास शुल्क नहीं लिया जाएगा, लेकिन एलआईजी एवं ईडब्ल्यूएस वर्ग को सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी प्रमाण-पत्र देना होगा।
अन्य वर्ग के रहवासियों से विकास शुल्क का 50 प्रतिशत लिया जाएगा और शेष 50 प्रतिशत राशि संबंधित नगरीय निकाय वहन करेगा। प्रदेश में अनधिकृत कालोनियों की संख्या तीन हजार से अधिक है। इनमें नगर निगम और निकाय की सीमा से लगे ग्रामीण क्षेत्रों में शहर की अपेक्षा अधिक अनधिकृत कॉलोनियां हैं।