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जहां है रामलला का मंदिर, उस अयोध्या में कैसे हार गई भाजपा? जानें समाजवादी पार्टी की क्या थी रणनीति

जहां रामलला का मंदिर है, वहां से संविधान बदलने की हवा चल पड़ी. यही हवा आगे आंधी बनी. बीजेपी के बड़े-बड़े चेहरे चुनाव में उड़ गए. अयोध्या में इस बार एक नारा खूब चला. न अयोध्या न काशी, अबकी बार अवधेश पासी. समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद दलितों में पासी जाति के हैं. उनके समर्थक पूरे चुनाव में यही नारे लगाते रहे. इस नारे के आगे बीजेपी का का मंदिर का प्रताप और ब्रांड मोदी का जादू भी नहीं चला. राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के बाद देश भर में हिंदुत्व के नाम पर वोट बटोरने की तैयारी थी. पर बीजेपी का प्रयोग अयोध्या में ही नहीं चला. अयोध्या यूपी में फैजाबाद लोकसभा सीट का हिस्सा है. अयोध्या नाम से एक विधानसभा सीट भी हैं.

आखिर फैजाबाद में ही बीजेपी क्यों और कैसे हार गई? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई. आरएसएस और बीजेपी ने मिलकर लाखों लोगों को मंदिर के दर्शन कराए. पीएम मोदी ने अयोध्या में रोड शो किया. वे एक दलित महिला मीरा मांझी के घर भी गए. इसे एक बड़ा राजनीतिक मैसेज समझा गया. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी यहां दो चुनावी रैली की. लेकिन राम लला की जन्म भूमि पर ही राम भक्तों की पार्टी बीजेपी चुनाव हार गई.

पिछली बार समाजवादी पार्टी और बीएसपी का गठबंधन था. इसके बावजूद बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह 65 हजार वोटों से जीत गए थे. इस बार वे समाजवादी पार्टी से 54 हजार वोटों से हार गए. फैजाबाद में बीजेपी की हार सबसे बड़ी हार है. राम मंदिर बीजेपी के लिए पिछले कई दशकों से मुद्दा रहा है. पार्टी के हर चुनावी घोषणापत्र में इसका जिक्र रहा है. लेकिन जब राम मंदिर बना तो पार्टी हार गई.

अखिलेश ने फैजाबाद में किया बड़ा प्रयोग

अखिलेश यादव ने फैजाबाद में एक बड़ा प्रयोग किया. सामान्य लोकसभा सीट पर उन्होंने दलित उम्मीदवार उतार दिया. ऐसा ही प्रयोग उन्होंने मेरठ में भी किया. लेकिन रामायण सीरियल वाले राम मतलब अरुण गोविल चुनाव जीत गए. लेकिन फैजाबाद में लल्लू सिंह फंस गए. भगवान राम की कृपा कुछ ऐसी कृपा रही. अखिलेश यादव फैजाबाद में दो बार प्रचार करने पहुंचे. एक बार अवधेश प्रसाद का जिक्र करते हुए उन्हें पूर्व विधायक बता दिया. बाद में माइक संभालते हुए अखिलेश ने कहा कि आप तो सांसद बनने वाले हो, इसीलिए मैंने आपको ऐसा कहा.

टिकट देने के बाद की अनुकूल सोशल इंजीनियरिंग

अवधेश प्रसाद को टिकट देने के बाद उनके लिए अनुकूल सोशल इंजीनियरिंग की गई. पड़ोस की सभी सीटों पर अलग-अलग जाति के नेताओं को टिकट दिया गया. अंबेडकरनगर से कुर्मी बिरादरी क लालची वर्मा को चुनाव लड़ाया गया तो सुल्तानपुर से निषाद समाज के नेता को टिकट मिला. जबकि बीजेपी ने फैजाबाद की बगल की सीटों पर ठाकुर, ब्राह्मण नेताओं को उम्मीदवार बनाया. समाजवादी पार्टी के पास मुसलमान और यादव वोट तो पहले से थे. इनमें कुर्मी-पटेल, निषाद और दलित वोट भी जुड़ गए. संविधान और आरक्षण बचाने के नाम पर मायावती के समर्थक जाटव वोटरों ने भी समाजवादी पार्टी का ही साथ दिया. उन्हें लगा कि बीएसपी तो लड़ नहीं पा रही है तो बीजेपी को हराने के लिए समाजवादी पार्टी के साथी बने.

जमीन अधिग्रहण को लेकर था लोगों का गुस्सा

फैजाबाद में दलित 26 प्रतिशत, मुस्लिम 14 फीसदी, कुर्मी 12% ब्राह्मण 12 प्रतिशत और यादव भी 12 फीसदी हैं. बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह ठाकुर बिरादरी के हैं. वे साल 2014 और 2019 में यहां से सांसद भी रहे. लेकिन इस बार उनका बड़ा विरोध था. पार्टी के लोग उम्मीदवार बदलने की मांग कर रहे थे. पर ऐसा नहीं हुआ. अयोध्या में मंदिर के निर्माण के बाद विकास के बहुत काम हुए. लेकिन जमीन अधिग्रहण को लेकर लोकल लोगों में बड़ा गुस्सा है. उन्हें लगता है कि मुआवजे के बदले उन्हें ठगा गया. लोकल सामाजिक समीकरण और बीजेपी उम्मीदवार की एंटी इनकंबेसी ने रामलला के घर में समाजवादी पार्टी का झंडा फहरा दिया

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