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सिर्फ पीएम किसान योजना से नहीं बनेगी बात, सरकार को करना होगा ये काम

भारत को कृषि प्रधान देश माना जाता है. इसे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी कहा जाता है. किसानों की मदद के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है, जिनमें पीएम किसान योजना काफी पॉपुलर है. इसमें किसानों को तीन किस्तों में 6 हजार रुपए दिए जाते हैं, लेकिन खेतीबाड़ी करने वालों पर पड़ने वाली मौसम की मार के बीच ये आर्थिक मदद काफी नहीं है. पिछले कुछ समय से जलवायु परिवर्तन की वजह से अचानक आ रही बाढ़, अत्यधिक गर्मी और लू से किसानों को काफी नुकसान हो रहा है. लखीमपुर में खेती करने वाले रामकिशन भी ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं. उनका कहना है कि दो महीने पहले पड़ रही भीषण गर्मी और लू की वजह से उनकी फसलें बर्बाद हो गई. वहीं अब जरूरत से ज्यादा बारिश की वजह से भी पैदावार प्रभावित हो रही है. ऐसे में रामकिशन चाहते हैं कि इस साल के आम बजट में वित्त मंत्री जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान से बचाने के उपायों पर ध्यान दें. जिससे उनकी तरह दूसरे किसानों को राहत मिल सके.

पर्याप्त बीमा की व्यवस्था हो

हापुड़ निवासी बनवारी लाल, पेशे से किसान हैं. उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम संबंधी जोखिम एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है. चूंकि ज्यादातर किसान अपनी सारी जमापूंजी लगाकर फसल उगाते हैं, लेकिन उपज खराब होने से सारा पूरा पैसा डूब जाता है. कई बार हम कर्जे में भी आ जाते हैं. इससे उबारने के लिए सरकार को इस आम बजट में किसानों के लिए एक मजबूत फसल बीमा सिस्टम तैयार करने पर जोर देना चाहिए. जिससे उनके नुकसान की भरपाई हो सके.

एग्री रिसर्च और डेपलपमेंट पर हो सरकार का जोर

बिहार में समस्तीपुर के रहने वाले श्याम तिवारी का कहना है कि उनके पिता खेती करते हैं, लेकिन उनकी खराब आर्थिक स्थिति के चलते उन्होंने अपने पारंपरिक काम को नहीं किया. श्याम कहते हैं कि दुनिया में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है, लेकिन कृषि के मामले में अभी भी देश काफी पीछे है. मौसम की सटीक जानकारी न मिल पाने और बाढ़, सूखा जैसे विकट स्थितियों से निपटने के लिए यहां कोई रणनीति नहीं है. उन्होंने विदेशों में होने वाली खेती का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां कैसे फसलों के उत्पादन को बढ़ाने और उन्हें मौसम की मार से बचाने के लिए कैसे खास किस्म के बीज और खाद का इस्तेमाल किया जाता है. भारत में भी मौसम को ध्यान में रखते हुए ऐसी चीजें प्रयोग में लानी चाहिए. इसलिए यहां की जमीन, उपज और जलवायु पर पर्याप्त रिसर्च की जानी चाहिए. वे उम्मीद कर रहे हैं कि 2024 के इस आम बजट में सरकार इससे संबंधित कोई निर्णय लेगी.

फसल भंडारण की हो पर्याप्त व्यवस्था

देश में किसानों को अक्सर नुकसान पर्याप्त स्टोरेज न होने की वजह से भी होता है. बारिश में उनकी फसलों को सुरक्षित न रखने की वजह से उनकी उपज बह जाती है. साथ ही भंडारण में भी पर्याप्त जगह न होने की वजह से फसल सड़ने लगती है. ऐसे में बाबूगढ़ के नितिन कुमार का कहना है कि सरकार को भंडारण की व्यवस्था में सुधार करना चाहिए. कोशिश होनी चाहिए कि खेती की जगह से इसकी दूरी ज्यादा न हो, इससे ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बचेगा. साथ ही फसल चक्रण, मल्चिंग और खाद बनाने जैसे जैविक खेती पद्धतियों को बढ़ावा देना चाहिए.

जलवायु परिवर्तन से कितना हुआ नुकसान?

2023 की विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में, देश भर में गर्मी ने फसलों को तबाह कर दिया. इससे गेहूं के उत्पादन में काफी कमी आई है. रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण 2050 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद का 5% तक खो सकता है. इसलिए मौसम के आधार पर फसल तैयार करने की तकनीक पर काम करना चाहिए और इसके रिसर्च पर निवेश बढ़ाना चाहिए.

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