ब्रेकिंग
डोनाल्ड ट्रंप में चाचा चौधरी जैसे गुण… मनोज झा ने कहा- अमेरिकी राष्ट्रपति को सदी का सबसे बड़ा झूठा क... कहां से लाते हैं ऐसे लेखक… जब सिंदूर ही उजड़ गया फिर ऑपरेशन का नाम सिंदूर क्यों? संसद में जया बच्चन ... मेले से लड़कियों की किडनैपिंग का था प्लान, उठाने आए तो बच्चियों ने कर दिया हमला… ऐसे बचाई खुद की जान बाराबंकी: हाइवे किनारे मिला महिला पुलिसकर्मी का शव, चेहरे पर डाला हुआ था तेजाब… जांच में जुटी पुलिस ‘कोई छिपा हुआ कक्ष नहीं’… जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार पर ASI का बयान, बताया- जीर्णोद्धार में क्या-क्... घर में घुसा बदमाश, युवती पर छिड़का पेट्रोल और… रांची में मचा हड़कंप फार्मासिस्ट बोला- मुझसे शादी करोगी? नर्स भी मान गई, दोनों के बीच बने संबंध… फिर लव स्टोरी का हुआ दर्... कैसा होगा UP का पहला प्राइवेट रेलवे स्टेशन? यात्रियों को मिलेंगी वर्ल्ड क्लास सुविधाएं मनसा देवी भगदड़ में घायल महिला की मौत, इलाज के दौरान तोड़ा दम; मरने वालों की संख्या बढ़ी वीकेंड पर दिल्ली में होगी भयंकर बारिश, जानें अगले 5 दिनों तक कैसा रहेगा मौसम?
देश

महाराष्ट्र की घटना ने भाजपा को किया आगाह, खुदी को बुलंद करने पर होगा पार्टी का जोर

नई दिल्ली। महाराष्ट्र की घटना ने भाजपा को आगाह कर दिया है और चाहे अनचाहे झारखंड पर भी इसका प्रभाव दिख सकता है। पार्टी में यह भावना और बलवती हो गई है कि जहां संगठन मजबूत है वहां सहयोगी दलों से हिस्सेदारी केवल उनकी मजबूती के आधार पर ही की जाए। किसी भी शर्त पर अपनी हिस्सेदारी न छोड़ी जाए।

सरकार बनाना एक चुनौती

दरअसल यह अहसास तभी हो गया था जब महाराष्ट्र के चुनावी नतीजे आए थे। 2014 में भाजपा शिवसेना से अलग चुनाव लड़ी थी और 122 सीटें जीतने में सफल रही थी। इस बार साथ लड़ने के कारण भाजपा के हिस्से में कम सीटें आई। हालांकि कुछ छोटे सहयोगी दलों को अपने चुनाव चिह्न पर लड़ाकर भाजपा ने 163 सीटों पर चुनाव लडी और 105 जीती। वहीं शिवसेना 125 सीटों पर दाव ठोकर 56 पर अटक गई। जाहिर है कि पिछली बार की तरह ही इस बार भी भाजपा की स्ट्राइक रेट ज्यादा रही। तीन साल पहले बिहार विधानसभा में भी ऐसा हुआ था। छोटे सहयोगी दलों ने चुनाव में बहुत खराब प्रदर्शन किया था हालांकि उन्हें बड़ी संख्या में सीटें दी गई थी, लेकिन वह संयुक्त रूप से भी दहाई के अंक में नहीं पहुंच पाए थे।

अधिक सीटें मांगना भाजपा के लिए अस्वीकार्य

फिलहाल झारखंड में आजसू को लेकर कुछ ऐसा ही सवाल खड़ा है। पिछली बार आजसू को भाजपा ने आठ सीटें दी थीं और वह तीन जीत पाई थी। खुद आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजे से प्रेरित होकर इस बार आजसू की ओर से न सिर्फ 17 सीटों का दावा किया जा रहा है बल्कि ऐसी सीटें भी मांगी जा रही है जो भाजपा के खाते में है। यह भाजपा के लिए अस्वीकार्य है।

महाराष्ट्र की घटना ने भाजपा को और सतर्क कर दिया

झारखंड में भाजपा का संगठन मजबूत है। मुद्दे भी हैं और पहली बार स्थायी सरकार देने का चेहरा भी है। ऐसे में भाजपा किसी भी सूरत में सहयोगी दलों के हाथ चाभी नहीं देना चाहती है। महाराष्ट्र की घटना ने और सतर्क कर दिया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button