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पहले सोरेन, अब सिसोदिया… SC के फैसले कैसे बन रहे विपक्ष के लिए उम्मीद?

कथित शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सर्वोच्च अदालत से उनको जमानत मिल गई है. 17 महीने के बाद मनीष सिसोदिया शुक्रवार को तिहाड़ की सलाखों से बाहर आ गए हैं. सिसोदिया के जेल से बाहर निकलने से आम आदमी पार्टी को सियासी ऊर्जा मिलेगी, तो बीजेपी और पीएम मोदी के विरोध करने वाले खेमे को भी सियासी ताकत मिल सकती है. सिसोदिया की जमानत मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही नहीं बल्कि विपक्ष के लिए भी एक उम्मीद जगा रही है.

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह पहले से ही पर जमानत हैं और अब सिसोदिया भी जेल से बाहर आ चुके हैं. पिछले दिनों झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अदालत से बड़ी राहत मिली है. ईडी ने जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाई, लेकिन फैसला हेमंत सोरेन के पक्ष में रहा. वहीं, अब सुप्रीम कोर्ट ने 17 महीने से जेल में बंद मनीष सिसोदिया को जमानत देकर आम आदमी पार्टी के हौसले बुलंद कर ही दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट से जिस तरह एक के बाद एक विपक्षी नेताओं को जमानत और राहत मिल रही है, उससे विपक्ष की आक्रमता को धार मिलेगी.

जेल से बाहर आने के तुरंत बाद सिसोदिया ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और ‘झूठे मामले’ में अपनी रिहाई के लिए बाबा साहब अंबेडकर द्वारा लिखे गए संविधान को श्रेय दिया. पूर्व उपमुख्यमंत्री ने यह भी भरोसा जताया कि आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल भी जल्द ही जेल से बाहर आ जाएंगे. सिसोदिया की जमानत पर आप के संजय सिंह ने अदालत के फैसले की सराहना की और इसे सत्य की जीत और केंद्र की तानाशाही के मुंह पर तमाचा करार दिया. गोपाल राय ने कहा कि यह सिर्फ जमानत नहीं है, बल्कि भाजपा की हार है.

मनीष सिसोदिया ने क्या कहा?

मनीष सिसोदिया ने कहा कि मैंने सवाल किया कि 9 अगस्त को बेल क्यों दे रहे हैं? जवाब मिला कि 9 अगस्त को तानाशाही भारत छोड़ो है, बाहर जाओ और तानाशाही भगाओ, हम तानाशाह को नहीं तानाशाही को देश से बाहर करना चाहते हैं. कल नंबर किसी और का भी आ सकता है. तानाशाही देश के लिए खतरा है. NDA और INDIA गठबंधन के नेताओं को कहना चाहता हूं कि पार्टी नहीं देश के लिए लड़िए. अगर देश विपक्ष के नेता मिलकर हुंकार भर देंगे, तो अरविंद केजरीवाल 24 घंटे में जेल से बाहर आ जाएंगे. मिलकर लड़ना पड़ेगा. सबको इकट्ठा होकर इस तानाशाही के खिलाफ लड़ना पड़ेगा.

मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने काफी अहम टिप्पणी की है. यह कहते हुए कि मनीष सिसोदिया ने बिना किसी मुकदमे के लगभग 17 महीने जेल में बिताए हैं, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा का अधिकार) के तहत त्वरित सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है. सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी मनीष सिसोदिया ही नहीं बल्कि विपक्ष के उन सभी नेताओं के लिए महत्वपूर्ण है, जो लंबे समय से जमानत का इंतजार कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कई लोगों को बंधी उम्मीद

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक, 2022 तक देश में विचाराधीन कैदियों की कुल संख्या चार लाख से अधिक थी. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन, बीआरएस नेता के. कविता, तमिलनाडु के पूर्व मंत्री वी सेंथिल बालाजी, टीएमसी नेता अनुब्रत मंडल और यूनिटेक के प्रवर्तक संजय और अजय चंद्रा जैसे कुछ जानी-मानी हस्तियां शामिल हैं, जो जमानत का इंतजार कर रहे हैं. सिसोदिया की जमानत देते हुए शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कई बार ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है’ सिद्धांत का उल्लंघन होता है. अब समय आ गया है कि अधीनस्थ अदालतों और उच्च न्यायालयों को इस सिद्धांत को मान्यता देनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के टी रामाराव ने उम्मीद जताई कि उनकी बहन और पार्टी एमएलसी के कविता सहित बाकी सभी को भी जल्द ही जमानत मिल जाएगी. तेलंगाना के पूर्व सीएम केसीआर की बेटी कविता भी दिल्ली कथित शराब घोटाले में जेल में बंद हैं. इसीलिए बीआरएस को लग रहा है कि कविता को भी जल्द ही कोर्ट से राहत मिल जाएगी. विपक्ष के नेताओं को उम्मीद भी क्यों न हो सुप्रीम कोर्ट से, जिस तरह सेएक के बाद एक विपक्ष नेताओं को राहत मिल रही है, उससे उनकी हिम्मत और हौसला दोनों ही बुलंद है.

दिल्ली की सियासत में सिसोदिया की वापसी आसान नहीं?

आम आदमी पार्टी के जिन चार बड़े नेताओं को केंद्रीय जांच एजेंसियों ने जेल में बंद किया था, उसमें सांसद संजय सिंह और पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल चुकी है.जमानत मिलने के साथ ही आम आदमी पार्टी के हौसले बुलंद हो गए हैं. जमानत मिलने और जेल से बाहर आने से दिल्ली में अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए सियासी संजीवनी बनेगा. सिसोदिया और संजय सिंह पार्टी के ऐसे नेता हैं, जो सियासी रुख को बदलने के लिए माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. बीजेपी के सियासी नैरेटिव को काउंटर करना उन्हें बखूबी आता है.

मनीष सिसोदिया दिल्ली में आम आदमी पार्टी और सरकार के सर्वेसर्वा हुआ करते थे. सिसोदिया का दर्जा पार्टी में दूसरे नंबर के नेता का है. ऐसे में सिसोदिया की रिहाई पार्टी के लिए ऑक्सीजन का काम करेगी, लेकिन 17 महीने बाद दिल्ली की सियासत में सिसोदिया की वापसी आसान नहीं होगी. सिसोदिया सियासत के जिस मोड़ से तिहाड़ गए थे, उस मोड़ पर आज सबकुछ बदला-बदला है. पार्टी के कुछ नेता और कार्यकर्ता छिटक कर दूसरी पार्टी में जा चुके हैं.

मनीष सिसोदिया के जेल चले जाने के बाद उनके हिस्से की करीब करीब सभी जिम्मेदारियां आतिशी के पास आ गई हैं. हालांकि, मनीष सिसोदिया के जेल से बाहर निकलते वक्त पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया, उससे साफ जाहिर है कि उनकी पकड़ वैसी ही है. हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है, जिससे आम आदमी पार्टी के चुनाव कैंपेन को धार मिलेगी. सिसोदिया और संजय सिंह की जोड़ी पहले भी हिट रही है और फिर के दोनों एक साथ सियासी धार देते हुए नजर आएंगे. ट

हेमंत सोरेन का जमानत देते हुए क्या बोला हाई कोर्ट?

वहीं, लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद हाई कोर्ट ने झारखंड सीएम हेमंत सोरेन को बड़ी राहत दी थी. झारखंड की हाई कोर्ट ने हेमंत सोरेन को जमानत देते हुए कहा था कि प्रथम दृष्टया सबूतों को देखते हुए ये मानने के कारण हैं कि हेमंत सोरेन कथित अपराधों के लिए दोषी नहीं हैं. कोर्ट में दर्ज किए गए निष्कर्षों के आधार पर इस अदालत ने पाया है कि पीएमएलए की धारा 45 की शर्त पूरी करते हुए ये मानने का कारण हैं कि याचिकाकर्ता कथित अपराध का दोषी नहीं हैं. इसलिए याचिकाकर्ता को पचास हजार रुपए के जमानत बांड के साथ जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया जाता है.

हाई कोर्ट के द्वारा हेमंत सोरेन को जमानत देने वाले फैसले को चुनौती देते हुए ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की याचिका खारिज कर दी थी. इस तरह लोकसभा चुनाव के बाद सुप्रीम कोर्ट से जिस तरह विपक्षी नेताओं को राहत मिलती जा रही है, उससे ईडी और सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसी को बड़ा झटका माना जा रहा है. ये फैसले विपक्ष के लिए एक उम्मीद की किरण लेकर आए हैं, क्योंकि केंद्रीय जांच एजेंसी के नकेल कसा जाने को विपक्ष दबाव बनाने की राजनीति कह रहा था और इस नैरेटिव को को बल मिलेगा. हेमंत सोरेन से लेकर मनीष सिसोदिया तक को जमानत इसीलिए मिलना आसान हुआ है, क्योंकि ईडी उनके खिलाफ कोई भी ठोस सबूत पेश नहीं कर सकी.

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