हरियाणा के चुनावी संग्राम में मुख्यमंत्री पद पर अनिल विज की दावेदारी ने भारतीय जनता पार्टी की टेंशन बढ़ा दी है. विज की दावेदारी को शुरुआती तौर पर भले ही बीजेपी खारिज करने में जुटी है, लेकिन पार्टी के लिए उन्हें इग्नोर कर पाना आसान नहीं है. वो भी तब, जब विज के सीधे निशाने पर मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी हैं.
6 दशक से से राजनीति में सक्रिय विज की गिनती हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के सबसे सीनियर नेताओं में होती है. विज 2014 में ही मुख्यमंत्री के दावेदार थे, लेकिन उस वक्त मनोहर लाल खट्टर ने बाजी मार ली थी.
मार्च 2024 में जब खट्टर हटे तो विज की दावेदारी सबसे मजबूत थी, लेकिन पार्टी ने नायब सिंह सैनी को आगे कर दिया. सैनी समुदाय से आने वाले नायब सिंह के पीछे बीजेपी हाईकमान का हाथ है.
विज ने CM पद के लिए दावेदारी क्यों की?
इसकी 2 मुख्य वजहें हैं. पहली वजह, अनिल विज की उम्र है. 72 साल के विज को लगता है कि अगर इस बार मुख्यमंत्री नहीं बन पाए तो भविष्य में राह आसान नहीं होगी. 2029 तक विज की उम्र 77 साल हो जाएगी, जहां उनकी दावेदारी को स्वीकार कर पाना बीजेपी में आसान नहीं होगा.
विज 2014, 2019 और 2024 के शुरुआत में भी सीएम पद के दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने तीनों ही बार उनकी दावेदारी को स्वीकार नहीं किया.
विज की दावेदारी की दूसरी वजह प्रेशर पॉलिटिक्स है. विज सीएम पद पर दावेदारी ठोक कर चुनाव के वक्त बीजेपी हाईकमान पर सियासी प्रेशर बनाना चाहते हैं. दरअसल, खट्टर के हटने के बाद से विज भी साइड लाइन ही चल रहे हैं. उन्हें लगता है कि अभी प्रेशर नहीं बनाया गया तो चुनाव बाद उनकी पूछ खत्म हो जाएगी.
अनिल विज का राजनीतिक करियर
हरियाणा के पूर्व गृह मंत्री अनिल विज छात्र जीवन से ही राजनीति में आ गए. अंबाला के एसडी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए. 1970 में उसे संगठन का महासचिव बनाया गया. हालांकि, इसके बाद वे स्टेट बैंक की सरकारी नौकरी में चले गए.
1990 की शुरुआत में जब सुषमा स्वराज का सियासी कद बढ़ा और वे अंबाला से दिल्ली आ गईं, तब बीजेपी ने विज से अंबाला में चुनाव लड़ने के लिए कहा. विज सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर अंबाला छावनी से मैदान में उतर गए.
विज इसके बाद अंबाला छावनी से कुल 6 बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं. 2014 में जब बीजेपी की हरियाणा में सरकार बनी तो विज को कैबिनेट में शामिल किया गया. खट्टर सरकार में विज सबसे वरिष्ठ मंत्री थे.
बार-बार उभर रही सीएम न बनने की टीस
1. मार्च 2024 में जब मनोहर लाल खट्टर के बाद नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली तो विज नाराज होकर अंबाला में बैठ गए. आखिर में उन्हें मनाने सैनी पहुंचे. 22 मार्च 2024 को सैनी और विज के बीच करीब 40 मिनट तक बंद कमरे में बातचीत हुई.
2. 21 मार्च 2024 को अनिल विज ने अपने सोशल मीडिया पर एक शेर पोस्ट किया. जिसमें उन्होंने लिखा- कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमाना हमारा.
3. 2 अप्रैल 2024 को एक कार्यक्रम में विज ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि 2014 में मेरी वजह से पूर्ण बहुमत की सरकार आई थी, लेकिन कुर्सी खट्टर को दे दी गई. 2019 में खट्टर की वजह से जब पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं आई तब भी उससे सवाल नहीं पूछा गया.
1. अंबाला में मजबूत पकड़, यहां 10 सीटें
अनिल विज अंबाला की स्थानीय राजनीति में मजबूत नेता माने जाते हैं. अंबाला लोकसभा के अंबाला, यमुनानगर और पंचकूला में उनकी मजबूत सियासी पकड़ है. इन तीनों ही जिले में विधानसभा की कुल 10 सीटें हैं. 2014 में बीजेपी को इन तीनों ही जिले में 10 की 10 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन 2019 में यह संख्या घटकर 5 पर पहुंच गई.
2024 में अनिल विज के टिकट पर भी संकट बरकरार था, लेकिन स्थानीय राजनीतिक समीकरण और अंबाला में विज की मजबूत पकड़ को देखते हुए पार्टी ने उन्हें आखिरी में टिकट देने की हामी भरी.
2. पंजाबी फेस, इनकी आबादी करीब 8 प्रतिशत
अनिल विज हरियाणा में पंजाबी समुदाय के सबसे बड़े चेहरे माने जाते हैं. खासकर भारतीय जनता पार्टी की पॉलिटिक्स में. हरियाणा में इस समुदाय की आबादी करीब 8 प्रतिशत है. जो जाट और दलित समुदाय के बाद सबसे ज्यादा है.
पंजाब बॉर्डर से लगे कई विधानसभा सीटों पर इस समुदाय की आबादी 30 फीसद के आसपास है. इतना ही नहीं, बीजेपी की 35 बनाम 1 के फॉर्मूले में पंजाबी समुदाय की भूमिका बड़ी है.
यही वजह है कि विज की दावेदारी के तुरंत बाद इस समुदाय से आने वाले संजय भाटिया को बीजेपी ने कैंपेन कमेटी का सह-संयोजक घोषित कर दिया.