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जम्मू-कश्मीर में अब सरकार बनाने की बारी, रिकॉर्ड वोटिंग के बाद गुपकार की गुफ्तगू तेज

जम्मू-कश्मीर का विधानसभा चुनाव बिना किसी हिंसा और खून-खराबे के शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ. सूबे के तीसरे और अंतिम चरण में 7 जिले की 40 विधानसभा सीटों पर 69.65 फीसदी वोटिंग हुई. इस फेज में सबसे ज्यादा उधमपुर में 76.72 फीसदी वोटिंग हुई, तो सबसे कम बारामूला में 61.03 फीसदी मतदान रहा. इसके साथ ही जम्मू कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों पर 873 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला ईवीएम में कैद हो गया है, जबकि चुनाव के नतीजे आठ अक्टूबर को आएंगे.

जम्मू-कश्मीर का विधानसभा चुनाव तीन चरण में हुआ है. 18 सितंबर को पहले चरण की 24 सीटों पर 61 फीसदी वोटिंग हुई थी. इसके बाद 25 सितंबर को दूसरे चरण की 6 जिलों की 26 विधानसभा सीटों पर 57.31 फीसदी मतदान रहा और मंगलवार को तीसरे चरण की 40 सीटों पर 69.65 फीसदी वोटिंग हुई. इस तरह तीसरे फेज में वोटिंग फीसदी पहले और दूसरे फेज से ज्यादा रहा. जम्मू-कश्मीर की सभी 90 सीटों का ओवरआल वोटिंग टर्नआउट 62.80 फीसदी रहा, लेकिन 2014 चुनावों में पड़े 65.23 फीसदी वोटिंग का रिकॉर्ड नहीं टूटा.

अनुच्छेद 370 के समाप्त होने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद विधानसभा चुनाव हुए हैं. परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में 90 सीटें हो गई हैं, जिसमें जम्मू रीजन में 43 और कश्मीर घाटी में 47 सीट हैं. एक अक्टूबर को तीसरे चरण की वोटिंग खत्म होने के साथ ही 90 विधानसभा सीटों वाले जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव संपन्न हो गया है और नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे.

जम्मू-कश्मीर में भले ही इस बार 2014 के विधानसभा चुनाव की वोटिंग फीसद का रिकॉर्ड न टूटा हो, लेकिन जिस तरह से तीनों चरणों में बंपर वोटिंग हुई उसके सियासी मायने हैं. पिछले चुनाव की तुलना में तीन फीसदी वोटिंग की गिरावट का सियासी असर क्या सत्ता के समीकरण पर भी पड़ेगा और देखना होगी कि किसे नफा और किसे नुकसान होता है?

कब-कितनी हुई वोटिंग?

जम्मू-कश्मीर में पिछले दो विधानसभा चुनावों की बात करें, तो 2008 में 60.50 फीसदी वोटिंग हुई थी. 2014 के चुनाव में 65.23 फीसदी मतदान हुआ था. इस बार के चुनाव में 62 फीसदी के करीब वोटिंग हुई है. 2008 में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपनी पिछली सीटों को जरूर बरकरार रखा था, लेकिन वोट शेयर 5 फीसदी घट गया था. पीडीपी को पांच सीटों का फायदा और वोट शेयर भी 6 फीसदी बढ़ा था. इस चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिल सका था. कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर सरकार बनाई थी. इसके बाद 2008 से 2014 के चुनाव में पांच फीसदी वोट शेयर बढ़ा था, जिसका असर चुनाव में भी दिखा था. पीडीपी और बीजेपी को फायदा हुआ, तो कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस को नुकसान उठाना पड़ा.

2014 की तुलना में 2024 के विधानसभा चुनाव में तीन फीसदी कम वोटिंग हुई है, जिसका असर चुनाव नतीजों पर भी पड़ सकता है. जम्मू रीजन के जिलों में मतदान पहले से ज्यादा रहा है, जबकि कश्मीर रीजन में कम रहा है. इस बार तीनों चरणों की वोटिंग पैटर्न का विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं कि सबसे ज्यादा वोटिंग तीसरे चरण में हुई है और सबसे कम दूसरे चरण में वोटिंग रही.

पहले चरण की जिन 24 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उसमें दक्षिण कश्मीर की 16 सीटें और जम्मू क्षेत्र की 8 सीटें शामिल थीं. इसके लिए इस बार 61 फीसदी वोटिंग हुई है. यह इलाका पीडीपी का गढ़ माना जाता है. 2014 में इन 24 सीटों में से पीडीपी ने 11 सीटें जीती थीं. बीजेपी और कांग्रेस ने 4-4, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 2 और सीपीआई-एम ने एक सीट पर कब्जा जमाया था.

दूसरे फेज की 26 सीटों में से 15 सीटें सेंट्रल कश्मीर और 11 सीटें जम्मू क्षेत्र की हैं. सेंट्रल कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस का गढ़ माना जाता है. इस बार सबसे कम वोटिंग दूसरे चरण में हुई थी, 57 फीसदी मतदान हुआ है. ऐसे में क्या माना जाए कि कम वोटिंग नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए चिंता बढ़ाएगा या फिर गुड न्यूज है. वहीं, तीसरे चरण की जिन 40 सीटों पर 62 फीसदी वोटिंग हुई है, उसमें जम्मू क्षेत्र की 24 और उत्तर कश्मीर की 16 सीटें शामिल थीं. जम्मू बीजेपी और कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, तो उत्तर कश्मीर के इलाके में पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ-साथ इंजीनियर राशिद और सज्जाद लोन की पार्टी का आधार है.

कौन-कहां है मजबूत?

दक्षिण कश्मीर का इलाका पीडीपी का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस बार सियासी हालत बदले हुए हैं. इसी तरह से उत्तर कश्मीर के इलाके में भी पीडीपी और एनसी पहले से कमजोर हुई है. वहीं, जम्मू में बीजेपी का अपना दबदबा बना हुआ है, लेकिन कश्मीर के इलाके में अपना सियासी आधार नहीं बना सकी. जम्मू में बीजेपी के सामने असल चुनौती कांग्रेस है. जम्मू रीजन में इस बार सीटें बढ़ी है, लेकिन कई जगहों पर बीजेपी के लिए कांग्रेस कांटे की टक्कर देती नजर आई है. इस तरह जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में जिस तरह की वोटिंग पैटर्न दिखा है, उसके चलते कोई भी दल अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं दिख रहा है.

जम्मू रीजन में बीजेपी बनाम कांग्रेस रहा, तो कश्मीर में पूरी तरह से बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिला. इसके चलते जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की वोटिंग खत्म होने के साथ ही सरकार बनाने के लिए सियासी जोड़ तोड़ की संभावना बनती दिख रही. ऐसे में एक बार फिर से गुपकार गठबंधन की गुफ्तगू तेज हो गई है. जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद घाटी के क्षत्रप ने मिलकर गुपकार गठबंधन की बुनियाद रखी थी. इसमें कांग्रेस भी शामिल थी, लेकिन बाद में उनसे खुद को इससे अलग कर लिया था.

जम्मू-कश्मीर में गुपकार गठबंधन का हिस्सा फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस के अलावा पीडीपी, पीपल्स कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, सीपीएम, पीपल्स यूनाइटेड फ्रंट, पैंथर्स पार्टी और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस थी. लोकसभा चुनाव आते-आते यह गठबंधन पूरी तरह से बिखर गया. उम्मीद की जा रही थी कि गुपकार गठबंधन विधानसभा चुनाव में फिर एक हो, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जरूर गठबंधन कर लिया, लेकिन पीडीपी सहित बाकी दलों को अपने साथ नहीं लिया. इसके चलते पीडीपी सहित कई दलों को अकेले चुनावी मैदान में उतरना पड़ा है.

क्या होगी सियासी जोड़ तोड़ की राजनीति?

2024 के विधानसभा चुनाव में जम्मू कश्मीर में बहुत से निर्दलीय और छोटे-छोटे दलों ने हिस्सा लिया है. प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी, इंजीनियर राशिद और सज्जाद लोन जैसे अलगाववादी ने भी मुख्यधारा की राजनीति में हिस्सा लिया है. विपक्षी दलों ने इंजीनियर राशिद और सज्जाद लोन को चुनाव के दौरान बीजेपी का प्रॉक्सी बताया. इससे उम्मीद लगाई जा रही है कि ये छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं. इसी आधार पर किसी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिलने के आसार लगाए जा रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को अगर बहुमत नहीं मिलने वाले सियासी हालात बनते हैं, तो सियासी जोड़ तोड़ की राजनीति देखने को मिलेगी. बीजेपी की नजर निर्दलीय और कुछ छोटे दलों को अपने साथ मिलाकर सरकार बनाने पर है, तो विपक्ष फिर से गुपकार गठबंधन में शामिल रहे दलों को एक साथ लाने की कवायद तेज कर सकता है. गुपकार में शामिल दलों की अनुच्छेद-370 और 35ए पर राय एक है. राष्ट्रीय स्तर पर बने इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के साथ-साथ नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी भी शामिल हैं. विधानसभा चुनाव के बाद मिली-जुली सरकार देखने को मिल सकती है. देखना है कि किसका दांव कितना कारगर साबित होता है?

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