महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बारामती सबसे हॉट सीट बन चुकी है. यहां एक ओर अजित पवार हैं तो दूसरी ओर शरद पवार ने अजित के ही भतीजे युगेंद्र पवार को टिकट देकर चुनावी समर को दिलचस्प बना दिया है. एनसीपी के राष्ट्रीय महासचिव बृजमोहन श्रीवास्तव ने टीवी9 भारतवर्ष से बातचीत में बताया कि अजित पवार बारामती में कई वर्षों से स्थानीय राजनीति करते आए हैं. ऐसे में उनकी जीत को लेकर कोई शक नहीं है. एनसीपी शरद पवार गुट के प्रवक्ता अरविंद तिवारी का कहना है कि बारामती सीट शरद पवार की सींची हुई जमीन है. जो कुछ भी लोकसभा चुनाव में अजित पवार ने किया, वो किसी भी तरीके से स्वीकार नहीं था. जनता इस बात को जानती है. इसलिए जनता इस बार शरद पवार को ही वोट करेगी न कि अजित पवार को.
कैसे फंसा पेंच
बारामती में लोकसभा चुनाव के दौरान अजित पवार ने शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को चुनावी मैदान में उतार दिया था. अपनी ही चचेरी बहन के खिलाफ पत्नी को चुनाव मैदान में उतारकर उन्होंने सीधे-सीधे शरद पवार से पंगा ले लिया.
लोकसभा का बदला विधानसभा में
5 बार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री रह चुके अजित पवार आठवीं बार अपने परंपरागत बारामती विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. मगर उनके सगे चाचा शरद पवार ने उनके खिलाफ उनके ही सगे भतीजे युगेंद्र पवार को उतारकर राजनीति के साथ-साथ पारिवारिक मोर्चे पर भी उन्हें ऐसा घेर दिया है कि अजित इस बार फंसे-फंसे से दिखाई पड़ रहे हैं. एक तरह से शरद ने लोकसभा का बदला अजित से विधानसभा में लेने की कोशिश की है.
शरद पवार युगेंद्र के साथ
विधानसभा चुनाव में बारामती विधानसभा क्षेत्र में खुद अजित पवार को भी अपने ही भतीजे युगेंद्र पवार से तगड़ी चुनौती मिल रही है. इसकी वजह ये है कि अब शरद पवार ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली है. युगेंद्र के नामांकन में शरद पवार खुद गए थे. लोकसभा चुनाव के समय से ही करीब-करीब पूरा पवार परिवार अजित को छोड़ शरद पवार के साथ नजर आने लगा था. उनमें अजित के सगे भाई श्रीनिवास पवार भी शामिल थे, जिनका बेटा युगेंद्र अब अजित के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है.
बारामती का राजनीतिक समीकरण
इस बार के लोकसभा चुनाव में बारामती से सुप्रिया सुले 1.5 लाख से भी अधिक वोटों से जीतीं. पहली बार ऐसा हुआ जब सुप्रिया सुले का चुनावी मैनजमेंट अजित पवार के हाथों में नहीं था. सुप्रिया लोकसभा चुनाव में ही डेढ़ लाख से अधिक मतों से जीत दर्ज कर इस मिथक को तोड़ने में कामयाब रही हैं कि वो अब तक अजित की ही मेहनत के बल पर जीतती आई थीं. यही नहीं बारामती विधानसभा क्षेत्र में उन्हें मिली करीब 48 हजार मतों की बढ़त भी इस समय अजित पवार की चिंता बढ़ाने का काम कर रही है.