बिहार में पंचायत पुस्तकालयों के लिए अनुशंसित किताबों की सूची को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राज्य के पंचायत पुस्तकालयों के लिए 20 से अधिक किताबें उस नौकरशाह के पिता द्वारा लिखी गई थीं, जो उस समय विभाग के प्रमुख थे. इस विवाद ने राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है.
यह मामला उस समय सामने आया जब 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के तहत पंचायत पुस्तकालयों के लिए करीब 1,600 किताबों की सूची को मंजूरी दी गई थी. इस समय आईएएस अधिकारी मिहिर कुमार सिंह पंचायती राज विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव थे. विवाद उठने के बाद मिहिर कुमार सिंह ने अपनी नाराजगी जाहिर की और कहा कि इन किताबों की सूची को एक समिति द्वारा मंजूरी दी गई थी, और उनके पिता, जिनका सम्मान पद्म श्री से किया गया था, के नाम से जुड़ी किताबों को लेकर विवाद खड़ा किया जा रहा है.
समिति ने किया था किताबों का चयन
सिंह ने कहा, ‘किताबों का चयन एक समिति द्वारा किया गया था, जिसमें विभिन्न विभागों के अधिकारी और शिक्षाविदों को शामिल किया गया था.’ उन्होंने यह भी कहा कि इस सूची में तीन श्रेणियों की किताबें शामिल थीं—साहित्य, सामान्य ज्ञान और विज्ञान, और सामाजिक विज्ञान. उनके मुताबिक, इस सूची में बाकी सभी किताबों पर कोई विवाद नहीं था, लेकिन उनके पिता की किताबों को लेकर विवाद उठाना अनुचित था.
अनियमितता पाई गई तो होगी जांच
पंचायती राज मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे मामले की जांच करेंगे और अगर कोई अनियमितता पाई जाती है तो कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा, ‘अगर उनके पिता एक साहित्यकार थे और उनके द्वारा लिखी गई किताबें पंचायत पुस्तकालयों के लिए उपयुक्त हैं, तो उन्हें अनुमति दी जाएगी.’ इस तरह के विचार पंचायती राज विभाग के सचिव दिवेश सेहरा ने भी व्यक्त किए, जिन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर कोई विवाद नहीं है और जेपी सिंह की किताबों को पंचायत पुस्तकालयों में शामिल किया जाना चाहिए.
किताबों के चयन पर उठे सवाल
हालांकि, इस विवाद ने राज्य सरकार और प्रशासन के लिए कुछ सवाल खड़े किए हैं. कुछ लोगों का कहना है कि प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किताबों के चयन में पारदर्शिता बरती जाए, ताकि किसी भी प्रकार के अनुशासनहीनता से बचा जा सके. इस मामले में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में आगे की कार्रवाई का इंतजार किया जा रहा है.