महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने शुक्रवार को अपने मुखपत्र ‘सामना’ अखबार के जरिये महारष्ट्र के मौजूदा सीएम देवेंद्र फडणवीस की उनके गढ़चिरौली दौरे को लेकर जमकर तारीफ की है. इस तारीफ में फडणवीस को सामना अखबार के जरिये गढ़चिरौली का मसीहा तक बता दिया गया, जिसके बाद महाराष्ट्र की सियासत गरमा गई है. उद्धव के विरोधियों को उनकी फडणवीस के प्रति ये नरमी रास नहीं आ रही है.
शिवसेना (उद्धव गुट) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की खुलकर प्रशंसा की है. उन्होंने सामना अखबार में अपने एडीटोरियल के जरिए फडणवीस के हालिया गढ़चिरौली दौरे की सराहना की है. साथ ही इसी लेख में पूर्व सीएम और मौजूद उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की खिंचाई भी की गई है.
उद्धव ठाकरे ने लिखा कि फडणवीस ने गढ़चिरौली जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र में विकास की जो लकीर खींची है, वह राज्य के लिए प्रेरणादायक है. उन्होंने यह भी कहा कि फडणवीस का दौरा सिर्फ एक औपचारिकता नहीं था, बल्कि उन्होंने वहां के लोगों की समस्याओं को सुनकर तत्काल समाधान देने की कोशिश की.
सामना में फडणवीस की तारीफ के मायने
लेकिन सामना के इस लेख के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में गर्मी बढ़ गई है. सामना के इस लेख पर जहां संजय राउत ने कहा कि महाराष्ट्र में मधुर संगीत की राजनीति का चलन है तो वही सुप्रिया सुले ने भी फडणवीस की तारीफ करते हुए कहा कि इस सरकार में कोई काम करते नजर आता है तो सिर्फ देवेंद्र फडणवीस.
वहीं, सामना के लेख पर विरोधी पक्षों की मिली जुली प्रतिक्रिया आ रही है. एनसीपी और कांग्रेस ने उद्धव ठाकरे के इस बयान पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह भाजपा-शिवसेना (उद्धव गुट) के बीच किसी नई सियासी समझ का संकेत हो सकता है. एनसीपी नेता जयंत पाटिल ने सवाल किया कि क्या दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते सुधर रहे हैं? वहीं, एकनाथ शिंदे गुट के नेता और मंत्री भरत गोगावले ने कहा कि अभी उद्धव ठाकरे और तारीफ करेंगे, हमारी सरकार के कामकाज की.
क्या बदल रही है महाराष्ट्र की सियासत? उठे सवाल
वहीं, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की पार्टी ने इसे शिवसेना उद्धव गुट की राजनीतिक मजबूरी बताया. वहीं खुद सीएम फडणवीस ने कहा कि अच्छा है मेरे काम की तारीफ हो रही है.
वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उद्धव ठाकरे के इस बयान के पीछे कई सियासी कारण हो सकते हैं. महाराष्ट्र में कॉर्पोरेशन,नगर निगम और स्थानीय स्वराज संस्थाओं के चुनाव पास हैं और भाजपा-शिवसेना के बीच संबंध सुधरने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता. सवाल ये उठता है कि क्या यह महाराष्ट्र की राजनीति में किसी बड़े बदलाव का संकेत है? या यह सिर्फ उद्धव ठाकरे की एक रणनीतिक चाल है? आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बयान का राज्य की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है.