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सोम प्रदोष व्रत में पूजा के बाद जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, भोलेनाथ पूरी करेंगे हर मनोकामना!

हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रदोष का व्रत भगवान महादेव को समर्पित है. प्रदोष का व्रत हर मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष का व्रत और महादेव के पूजन से व्यक्ति के जीवन की सारी तकलीफें और परेशानी दूर हो जाती है. करियर में सफलता प्राप्त होती है. व्यापार में लाभ ही लाभ मिलता है.

प्रदोष व्रत के दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा के समय कथा अवश्य पढ़नी चाहिए. प्रदोष व्रत दिन पूजा के समय जो भी कथा पढ़ता है उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं. धार्मिक मान्यता है कि जो प्रदोष व्रत के दिन पूजा के समय कथा नहीं पढ़ता है उसे पूजा का पूरा फल प्राप्त नहीं होता.

प्रदोष व्रत 2025

पंचांग के अनुसार, इस बार माघ महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 26 जनवरी को रात 8 बजकर 54 मिनट पर शुरू हो चुकी है. वहीं इस तिथि का समापन 27 जनवरी यानी आज रात 8 बजकर 34 मिनट पर हो जाएगी. ऐसे में प्रदोष का व्रत आज रखा जा रहा है. आज सोमवार का दिन है. इसलिए इस व्रत को सोम प्रदोष व्रत भी कहा जा रहा है. आज प्रदोष काल के समय भगवान शिव का पूजन किया जाएगा. पूजा का शुभ मुहूर्त आज शाम 5 बजकर 56 से रात 8 बजकर 34 मिनट तक है.

सोम प्रदोष व्रत कथा

प्राचीन समय में अंबापुर गांव में एक ब्राह्मणी रहती थी. ब्राह्मणी विधवा थी. वो भिक्षा मांगकर अपना गुजर-बसर करती थी. एक दिन भिक्षा मांग के लौटते समय उसको दो बालक मिले. ब्राह्मणी दोनों को घर लेकर आ गई. ब्राह्मणी बालकों का पालन-पोषण करने लगी. समय बीतता गया दोनों बालक बड़े हो गए. एक दिन ब्राह्मणी दोनों बालकों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास गई.

ब्राह्मणी ने ऋषि शांडिल्य से आग्रह की वो बालकों के माता-पिता के बारे में बताएं. तब ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं. गंदर्भ नरेश ने विदर्भ नरेश को युद्ध में पराजित कर दिया, जिसके बाद उनका राज्य छिन गया और दोनों बालक राज्य से बाहर कर दिए गए. ये सुनकर ब्राह्मणी ने ऋषि से वो उपाय बताने को कहा जिससे दोनों बालकों को उनका राज्य मिल सके.

इसके बाद ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत के बारे में बताया. फिर ब्राह्मणों और दोनों ही राजकुमारों ने प्रदोष का व्रत किया. उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार अंशुमति नाम की कन्या से मिले. दोनों ने विवाह का मन बना लिया. जब इस बात की जानकारी अंशुमति के पिता को मिली तो उन्होंने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की मदद की.

इससे राजकुमारों को गंदर्भ नरेश पर विजय प्राप्त हुई. वहीं प्रसन्न होकर बाद में राजकुमारों ने अपने राज दरबार में ब्राह्मणी को विशेष जगह प्रदान की, जिससे ब्राह्मणी की सारी तकलीफें दूर हो गईं.

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