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17 साल बाद भी फैसले की वह घड़ी आंखों के सामने आ ही जाती है

बिलासपुर।16 साल बाद भी फैसले की वह घड़ी आंखों के सामने आ ही जाती है। घटना नौ जून 2007 की है। वैसे तो इसे घटे 16 साल हो रहा है,तब भी फैसले की वही घड़ी आंखों के सामने भयावह घटना के सामने आ ही जाती है। आज जब आपसे बात हो रही है एक बार फिर याद ताजी हो गई है।

अंबिकापुर शहर में दोहरा हत्याकांड की घटना घटित हुई थी। वह भी शहर के ह्दय स्थल और एसपी कार्यालय से महज 100 मीटर की दूरी पर। आरोपित ने एक महिला और युवती की हत्या कर दी थी।हत्या से पहले युवती के साथ दुष्कर्म भी किया गया था। हत्या और दुष्कर्म के आरोपित को पकड़ने में पुलिस की नाकामयाबी के कारण शहर की स्थिति बिगड़ने लगी थी। शहर बंद की अपील भी की जा रही थी। आलम ये दिनोदिन कानून व्यवस्था बिगड़ती ही जा रही थी। पुलिस से लोगों का भरोसा उठने लगा था। विरोध को देखते हुए तत्कालीन पुलिस अधीक्षक का राज्य सरकार ने तबादला कर दिया था। आरोपित को पकड़ने में मिल रही विफलता और शहरवासियों के बीच गिरती साख को बचाने के लिए पुलिस ने अपने अंदाज में मामले को निपटाने का काम शुरू किया। इस मामले में पुलिस अंदाज को भी शहरवासियों के साथ ही न्यायालय ने भी करीब से देखा। लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए ऐसे ग्रामीणों को आरोपित बना दिया जिनका इस घटना से दूर-दूर का नाता नहीं था। जिस कानून की आड़ लेकर पुलिस ने ग्रामीणों पर झूठे आरोप लगाकर जेल में डाल दिया था उसी कानून के सहारे ग्रामीणों की रिहाई भी हुई। निर्दोष ग्रामीणों को जब न्याय मिला तो उनके चेहरे की संतुष्टि देखकर मन भर गया था। यह कहना है अधिवक्ता संजय अंबष्ट का।

बादी जाति का मूल पेशा चोरी करना ही है। इसमें इसको महारत हासिल होता है।पुलिस ने 35 लोगों को पकड़कर ले आई।आठ दस दिन तक रखी और मारपीट करती रही। इसी बीच पुलिस ने 11 लोगों को हत्याकांड का आरोपी बना दिया। यह बात शहरवासियों को पच नहीं रहा था। अंबिकापुर थाने में रखने के दाैरान जब स्वजनों ने शिकायत की तब पुलिस ने अंबिकापुर शहर से 30 किलोमीटर दूर थाना में डकैती की तैयारी कर रहे थे। पांच लोग मौके पर पकड़ाए चार लोग फरार हो गए। फिर दूसरे दिन दूसरे थाना में एफआइआर दर्ज की इसमें पांच लोगों की गिरफ्तारी और चार लोग फरार हो गए। तीसरी एफआइआर अंबिकापुर शहर के थाने में किया।कहानी वही थी। इस तरह डकैती के मामले को चौबीस घंटे में पर्दाफाश कर दिया। 14 ग्रामीणों को डकैती की योजना बनाने के आरोप में जेल भेज दिया। जिन 11 लोगों को पुलिस अपने दस्तावेज में फरार बता रही थी वे सभी ग्रामीण पुलिस के हिरासत में ही थे और पूछताछ की जा रही थी। पुछताछ का अंदाज भी भयावह। अचरज की बात ये कि उसे फरार बता रहे थे और वह सभी पुलिस की कस्टडी में थे।

ऐसे बनाई कहानी

चोरी करने घर में घुसे थे। युवती के कान की बाली भी जब्ती बनाई और 11 लोगों को जेल भेज दिया। डकैती और दुष्कर्म का आरोप लगा दिया। सरगुजा जिले के थानों में जितनी भी चोरी का मामला था सभी का आरोप इन्हीं के सिर पर डाल दिया। शहरवासी भी यह बात समझ रहे थे और बोल भी रहे थे कि ग्रामीणों को फर्जी ढंग से फंसाया जा रहा है। असली आरोपी कोई और है।

पुलिस की झूठी कहानी की हमने खोली पोल

अधिवक्ता संजय अंबष्ट बताते हैं कि दो जनवरी 2008 को चालान पेश करने की 90 दिन की अवधि पूरी हो रही थी। ठीक दो दिन पहले हमने न्यायालय में आवेदन लगाया और कोर्ट को बताया कि पुलिस जिस गहने को आरोपितों से जब्त कराना बता रही है और जिस झूमके मृत युवती का बता रही है वह तो है ही नहीं। साक्ष्य के तौर पर हमने अखबार में प्रकाशित खबरों की कटिंग कोर्ट में पेश की जिसमें मृत युवती के कान में झुमका था।पुलिस ने अलग ही कहानी गढ़ दी थी। पुलिस ने अपनी विवेचना में निर्दोष ग्रामीणों को फंसाते हुए चोरी करना और मृतका के कान से झूमका को निकालने की बात बता दी थी।वास्तविकता कुछ अलग ही था। मृतक की जो फोटोग्राफ पुलिस ने आधिकारिक रूप से खिंचवाई थी उसमें झूमका पहने साफ दिखाई दे रही थी। हमने सवाल उठाया कि यह झूमका किसका है और पुलिस ने झूठी कहानी क्यों गढ़ी। घर वाले भी इस झूमका को मृतका का नहीं होना बता रहे थे। कोर्ट ने पुलिस को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया।

पुलिस ने चालान ही पेश नहीं किया

पुलिस ने आरोपितों के खिलाफ कोर्ट में निर्धारित अवधि के दौरान चालान ही पेश नहीं किया। चालान पेश करने के लिए 90 दिन का समय सीमा तय किया गया है। पुलिसिया जांच और उसकी रिपोर्ट की पाेल खुल गई और निर्दोष ग्रामीणों को फंसाने की बात सामने आ गई तब पुलिस मजबूरी में कोर्ट के समक्ष चालान पेश नहीं कर पाई। चालान पेश ना करने के कारण आरोपितों को कोर्ट से जमानत मिल गई।

हैदराबाद लैब से भी रिपोर्ट आया निगेटिव

पुलिस ने जांच पड़ताल के दौरान मृत युवती के प्राइवेट पार्ट्स से महत्वपूर्ण अंग बिसरा और लैब रिपोर्ट के लिए प्रिजर्व कर रखा था। इसकी जांच के लिए इसे हैदराबाद लैब भेजा गया था। रिपोर्ट में सब कुछ निगेटिव मिला। मतलब साफ है कि पुलिस ने जिन ग्रामीणों को दुष्कर्म और हत्या का आरोपित बनाया था लैब से रिपोर्ट निगेटिव आ गया था। पुलिस इस रिपोर्ट को अपने पास रख ली और कोर्ट को जानकारी नहीं दी। तब हमने हमने कोर्ट में आवेदन पेश कर दस्तावेजी प्रमाण पेश किया और बताया कि लैब की रिपोर्ट निगेटिव आने के कारण पुलिस उसे कोर्ट में पेश नहीं कर रही है। कोर्ट के निर्देश के बाद पुलिस ने लैब की रिपोर्ट पेश की। पुलिस तत्काल कोर्ट के समक्ष सरेंडर हो गई और आरोपितों के खिलाफ चालान पेश ना करने और मामला ना चलाने की बात कही। पुलिस ने अपनी साख बचाने के लिए कानून की आड़ लेकर निर्दोष

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