सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कोर्स के पीजी एडमिशन के लिए निवास (डोमिसाइल) आधारित आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. सर्वोच्च अदालत ने इसे तुरंत खत्म करने का आदेश दिया है. कोर्ट के इस फैसले के बाद अब मेडिकल कॉलेज पोस्ट ग्रेजुएशन के एडमिशन में डोमिसाइल आधारित आरक्षण नहीं दे पाएंगे.
जस्टिस हृषिकेश रॉय , जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा है कि इस तरह का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद-14 का सीधा-सीधा उल्लंघन है. हालांकि, कोर्ट ने कहा है कि जो फैसला हम दे रहे हैं, वो अब नए सिरे से लागू होगा. यानी पुराने एडमिशन पर इस फैसला का प्रभाव नहीं पड़ेगा.
मेडिकल-पीजी में एडमिशन का मामला क्या है?
दरअसल, चंडीगढ़ की एक मेडिकल कॉलेज ने पीजी में एडमिशन देने के लिए डोमिसाइल आरक्षण को भी आधार बनाया, जिसको लेकर तन्वी बहल कोर्ट पहुंच गई. इस केस को तन्वी बहल वर्सेज श्रेय गोयल नाम से भी जाना जाता है.
2019 में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने इस केस की सुनवाई की थी, उस वक्त हल नहीं निकल पाया था, जिसके बाद केस को तीन जजों की बेंच में भेज दिया गया था.
याचिकाकर्ता का कहना था कि भारत में रह रहे लोगों को उच्च शिक्षा में निवास के आधार पर आरक्षण कैसे मिल सकता है? 5 साल की लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने अब इस पर अपना फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या-क्या कहा है?
फैसला सुनाते हुए जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कहा कि हम सभी भारत के निवासी हैं. सभी लोगों का निवास एक ही है. प्रांत और राज्य निवास का आधार नहीं है. भारत के सभी निवासियों को देश में कहीं भी निवास चुनने और देश में कहीं भी व्यापार और व्यवसाय करने का अधिकार है.
कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा- संविधान हमें भारत भर के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश चुनने का अधिकार भी देता है. मेडिकल कॉलेजों सहित शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ किसी विशेष राज्य में रहने वालों को केवल MBBS कोर्स में एक निश्चित डिग्री तक ही दिया जा सकता है.
कोर्ट के मुताबिक उच्च शिक्षा में निवास आधारित आरक्षण का लाभ देना संविधान का सीधा उल्लंघन है.