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दिल्ली में AAP-BJP के खिलाफ कितनी मुश्किल कांग्रेस की लड़ाई, 2020 के आंकड़े बढ़ा रहे टेंशन

दिल्ली की सत्ता पर 15 साल राज करने वाली कांग्रेस अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की जंग लड़ रही है. 1998 से लेकर 2013 तक कांग्रेस दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही है, लेकिन अरविंद केजरीवाल के सियासी उदय के बाद से कांग्रेस सियासी हाशिए पर पहुंच गई. 2015 और 2020 में जीरो पर सिमटी कांग्रेस इस बार के चुनाव को त्रिकोणीय बनाने में जुटी है, जिसके लिए राहुल गांधी ने भी पूरी ताकत झोंक रखी है.

कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार अपना खाता खोलने के साथ-साथ दिल्ली में खिसके हुए अपने सियासी आधार को वापस पाने की जंग लड़ रही है. कांग्रेस दिल्ली चुनाव में किसी भी स्तर पर कमजोर नहीं दिखना चाहती. आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेताओं के खिलाफ कांग्रेस ने सिर्फ मजबूत प्रत्याशी ही नहीं उतारे बल्कि केजरीवाल के खिलाफ आक्रामक चुनाव प्रचार भी करती नजर आ रही है.

दिल्ली में कांग्रेस ने झोंकी पूरी ताकत

दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पूरे दमखम के साथ उतरी है. कांग्रेस ने अपने तमाम दिग्गज नेताओं को दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है. पार्टी की यह एक सोची-समझी रणनीति है, क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि अगर उसे भविष्य में बीजेपी के साथ सीधे मुकाबला करना है तो उसके लिए उस पार्टी को हराना जरूरी है, जिसके उदय के साथ कांग्रेस को दिल्ली नुकसान हुआ है.

कांग्रेस दिल्ली चुनाव में बीजेपी के साथ-साथ आम आदमी पार्टी पर भी निशाना साध रही थी और उसकी तुलना बीजेपी से कर रही है. इसके बाद भी उसकी राह आसान नहीं दिख रही. कांग्रेस की कोशिश बीजेपी और आम आदमी पार्टी की सीधी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की है, जिसके लिए अपने पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल के खिलाफ तो अलका लांबा को कालकाजी सीट पर आतिशी के खिलाफ उतारा है.

कांग्रेस की मुश्किल क्यों आसान नहीं?

दिल्ली में कांग्रेस का वोट शेयर एक समय 45 फीसदी से ऊपर हुआ करता था, लेकिन मौजूदा समय में वोट शेयर गिरकर 4 फीसदी पर पहुंच गया है. यही नहीं दिल्ली में कांग्रेस का सियासी आधार रहे मुस्लिम, दलित, पंजाबी, ब्राह्मण और सिख वोट आम आदमी पार्टी का कोर वोट बैंक बना चुका है. 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दिल्ली में खाता तक नहीं खुल सका.

अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता के सामने कांग्रेस पिछले तीन चुनाव में बुरी तरह पस्त नजर आई है. 2020 में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का हुआ, जिसका साथ दिल्ली की जनता ने 1998 से लेकर 2013 तक दिया. पिछले चुनाव में कांग्रेस लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. कांग्रेस 66 सीटों पर किस्मत आजमाई थी तो चार सीटें आरजेडी ने लड़ी थी.

2020 के चुनाव नतीजे बढ़ा रहे टेंशन

2020 के चुनावों में कांग्रेस ने 66 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी किसी भी सीट पर दूसरे नंबर पर नहीं रही थी. सिर्फ तीन सीट पर ही अपनी जमानत बचा सकी थी. गांधी नगर, देवली और कस्तुरबा नगर सीट थी. अरविंदर लवली भाजपा में शामिल हो गए हैं और अपने गृह क्षेत्र गांधी नगर से चुनाव लड़ रहे हैं, देवली सीट से देवेंद्र यादव हैं, जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. ऐसे ही कस्तूरबा नगर से अभिषेक दत्त चुनाव लड़ रहे हैं. अरविंदर लवली पार्टी छोड़ चुके हैं और बीजेपी से चुनावी मैदान में है, जो एक बड़ी चुनौती पार्टी के लिए हैं.

कांग्रेस को तीन सीटों पर 20 हजार से ज्यादा वोट मिले थे, जिसमें गांधी नगर, देवली और कस्तुरबा नगर सीट थी. वहीं, पार्टी के पांच उम्मीदवारों को दस हजार से 20 हजार के बीच वोट मिले थे. 20 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को 5 हजार से 10 हजार के बीच वोट मिले थे. जबकि, कांग्रेस के 38 उम्मीदवार को पांच हजार से कम वोट मिले थे. दिल्ली में कांग्रेस का जिन सीटों वर्चस्व हुआ करता था, उन पर उसकी जमानत तक नहीं बच सकी थी.

कांग्रेस की जमीन पर AAP खड़ी

1998 में 47.75 फीसदी वोट और 52 सीटों के साथ सत्ता पर काबिज होकर तीन बार जीत का स्वाद चखने वाली कांग्रेस को 2013 में 24.6 फीसदी वोट और आठ सीटों पर सिमट गई. इसके बाद 2015 में 9.7 फीसदी और 2020 में 4.26 फीसदी वोट मिल सके. दिल्ली में जितनी तेजी से कांग्रेस पिछड़ी, उतनी ही तेजी से आम आदमी पार्टी का ग्राफ बढ़ा.

वहीं, 2013 में आम आदमी पार्टी को 29.5 फीसदी वोट मिले, तो 2015 में 54.3 फीसदी प्रतिशत वोट के साथ 67 सीटें मिलीं. 2020 में वह 53.57 फीसदी वोट लेकर 62 सीटें जीतने में सफल रही. इस तरह कांग्रेस की सियासी जमीन पर आम आदमी पार्टी खड़ी नजर आ रही.

कांग्रेस कैसे जीतेगी 2025 की जंग?

कांग्रेस ने केजरीवाल के दिल्ली मॉडल पर राहुल गांधी के हमले के साथ दिल्ली चुनाव प्रचार की धमाकेदार शुरुआत की, उसके बाद उनकी तबियत खराब हो जाने से कई रैलियां रद्द हुई. राहुल गांधी अब दोबारा से दिल्ली में एक्टिव हुए हैं और कई मुस्लिम और दलित क्षेत्रों में रैलियां करके माहौल बनाने की कोशिश की है. कांग्रेस ने दलित, मुस्लिम बहुल सीटों पर फोकस किया है, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी ने दो सीटों पर अपने उम्मीदवार को उतारकर सारे खेल बिगाड़ दिया है.

बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच सिमटते चुनाव के चलते मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस का गेम बिगड़ता जा रहा. AAP के कैंडिडेट यह माहौल बनाने में जुटे हैं कि दिल्ली में सरकार कांग्रेस की बननी नहीं है तो उसे वोट देने का कोई फायदा नहीं है. दिल्ली की सत्ता में बीजेपी या फिर आम आदमी पार्टी की सरकार बनेगी. बीजेपी को सत्ता से रोकने वाले नैरेटिव के चलते मुस्लिमों का झुकाव आम आदमी पार्टी की तरफ होता दिख रहा है.

दिल्ली में कांग्रेस को दोबारा से खड़े होने के लिए अपने वोट शेयर बढ़ाने की है, लेकिन जिस तरह से 2020 में उसे वोट मिले हैं, उसे देखते हुए काफी मुश्किल भरी लड़ाई नजर आ रही है. आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच होते मुकाबले में कांग्रेस इस बार दिल्ली में अपना वजूद को बचाए रखने की जंग लड़ रही है. ऐसे में दिल्ली की सियासत में कांग्रेस को दोबारा से खड़ा होना आसान नहीं दिख रहा है.

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