क्या आपको जानकारी है कि देश में जॉब करने वाले अपनी एक तिमाही कमाई कहां पर खर्च कर देते हैं? है ना दिलचस्प सवाल. इसका जवाब एक सर्वे में निकनकर सामने आया है. जिसमें बताया गया है कि भारत में लोग अपनी कमाई कमाई का एक तिहाई हिस्सा, खाने—पीने या घूमने में नहीं बल्कि लोन ईएमआई में खर्च कर रहे हैं. पीडब्ल्यूसी और परफियोस ने ये सर्वे किया है. जिसके बाद उन्होंने भारत कैसे खर्च करता है के नाम की रिपोर्ट पेश की है. इस रिपोर्ट में 30 लाख लोगों के एक्सपेंडिचर बिहेवियर का एनालिसिस किया गया है. इस सर्वे में तीसरी कैटेगिरी के शहरों से लेकर महानगरों तक में रहने वाले लोगों को शामिल किया गया, जिनकी महीने की कमाई 20 हजार रुपए से लेकर 1 लाख रुपए तक है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर इस रिपोर्ट में किस तरह की बातें निकलकर सामने आई है.
रिपोर्ट की अहम बातें
पीडब्ल्यूसी और परफियोस की रिपोर्ट की मानें तो हाई मिड लेवल की कमाई करने वाले ज्यादातर लोग लोन ईएमआई चुकाने में खर्च करते हैं. जबकि शुरुआती लेवल पर कमाई करने वाले लोगों की संख्या कम थी. इस रिपोर्ट में खर्च को तीन कैटेगिरी में डिवाइड किया गया था. जिसमें अनिवार्य खर्च, जरुरत और विवेकाधीन शामिल है. अनिवार्य खर्च खर्च की हिस्सेदारी 39 फीसदी देखने को मिली. जिसमें लोन रीपेमेंट, इंश्योरेंस पॉलिसी को खर्च किया गया. अगर बात विवेकाधीन खर्च की बात करें तो उसमें ऑनलाइन गेमिंग, होटल या रेस्तरां में खाना या फिर ऑनलाइन फूड, इंटरटेनमेंट आदि एक्सपेंडिचर को शामिल कगिया है. तीसरी कैटेगिरी, आवश्यक खर्च हिस्सेदारी 32 फीसदी देखी गई. जिसमें घर की बेसिक जरूरतों जैसे पानी, बिजली, गैस, फ्यूल, दवा, किराने का सामान आदि को शामिल किया गया.
कौन कहां कर रहा है खर्च
रिपोर्ट के अनुसार कम सैलरी वाले लोग अपनी कमाई का मैक्सीमम पार्ट अपनी बेसिक जरूरतों को पूरा करने और कर्ज चुकाने में खर्च कर रहे हैं. इसके विपरीत हाई सैलरी वाले लोगों का ज्यादातर हिस्सा अनिवार्य और विवेकाधीन खर्च में हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक हाई इनकम वाले लोगों में लोन हाई कॉस्ट लिविंग के साथ-साथ लग्जरी आइटम्स और हॉलिडे के प्रति बढ़ते क्रेज की ओर इशारा कर रहा है. रिपोर्ट में आंकड़े साफ कह रहे हैं कि जहां लोअर इनकम लोगों का विवेकाधीन खर्च जहां 22 फीसदी है, जो हाई इनकम में बढ़कर 33 फीसदी हो जाता है.
रिपोर्ट में अनिवार्य एक्सपेंडिचर में भी कुछ इसी तरह का ट्रेंड देखने को मिल रहा है. अनिवार्य एक्सपेंडिचर जहां लोअर इनकम में 34 फीसदी है, जो हाई इनकम में बढ़कर 45 फीसदी हो जाता है. वहीं दूसरी ओर आवश्यक सामान पर होने वाले खर्च का ट्रेंड थोड़ा अलग देखने को मिला है. इस कैटेगिरी में सैलरी बढ़ने कके साथ इस खर्च में लगातार कमी देखने को मिलती है. जहां लो इनकम के लोगों का खर्च इस कैटेगिरी में 44 फीसदी है, वहीं हाई इनकम में घटकर ये खर्च सिर्फ 22 फीसदी रह जाता है.
लाइफस्टाइल से जुड़े खर्च
रिपोर्ट के अनुसार लाइफस्टाइल से जुड़े विवेकाधीन खर्चों की हिस्सेदारी 62 फीसदी से ज्यादा देखने को मिली. हाई इनकम वाले लोग ऐसे सामान पर लोअर इनकम के लोगों के मुकाबले तीन गुना से ज्यादा खर्च करते हैं. आंकड़ों के अनुसार जहां हाई इनकम वाले लोग ऐसे सामनों पर 3200 रुपए से ज्यादा खर्च करते हैं तो कम कमाई करने वाले लोगों का ये खर्च 958 रुपए है. ऑनलाइन गेमिंग पर लोअर इनकम के लोग 22 फीसदी और हाई इनकम वाले लोग 12 फीसदी ही खर्च करते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, जो लोग बी ग्रेड शहरों में रहते हैं वो मेडिकल पर ज्यादा खर्च करते हुए पाए जाते हैं. जो ए ग्रेड कैटेगिरी के शहरों की तुलना में 20 फीसदी ज्यादा हैं.
अनिवार्य खर्च को लेकर ट्रेंड
रिपोर्ट के अनुसार सैलरीड लोग अपनी कमाई का औसतन 34-45 फीसदी अनिवार्य कैटेगिरी में खर्च करते हैं. जबकि 22-44 फीसदी आवश्यकताओं और 22-33 फीसदी विवेकाधीन खर्च में डाल देते हैं. वैसे ये अलग खर्च अलग-अलग सैलरी क्लास में डिफ्रेंट होता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि एम्बेडेड फाइनेंस, पीयर-टू-पीयर लोन और क्रेडिट कार्ड, होम, एजुकेशन लोन एवं होम लोन में इजाफा होने के कारण विवेकाधीन खर्च और भविष्य के दायित्वों के बीच की रेखाएं एक तरह से मिट चुकी हैं. परफियोस के सीईओ सब्यसाची गोस्वामी ने मीडिया रिपोर्ट में कहा कि कंजंप्शन में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है. सेविंग में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. जिसकी वजह से परिवारों में लगातार प्रेशर बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि सैलरी में बीते 6 साल में 9 फीसदी का इजाफा जरूर हुआ है, लेकिन जिस तरह से लोग व्हीकल, घर खरीद रहे हैं, कर्ज के लेवल में भी बढ़ोतरी हो रही है.