उपभोक्ता आयोग ने इंश्योरेंस के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. बीमा कंपनी के खिलाफ शिकायत स्वीकार करते हुए आयोग ने कहा कि डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों को पहले से मौजूद बीमारी नहीं माना जा सकता है. इसलिए बीमा कंपनी इसे बेस बनाकर क्लेम रिजेक्ट नहीं कर सकती हैं कि बीमा कराने वाले ने ये नहीं बताया था कि वो डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर का शिकार था. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला, जिसमें उपभोक्ता आयोग ने ये बात कही है.
दरअसल, दिल्ली में निशांत शर्मा के पिता प्रेम शंकर शर्मा ने IDBI बैंक से 45 लाख रुपये का होम लोन लिया था. इसके बाद उन्हें ब्रेन स्ट्रोक होने पर बेटे ने इंश्योरेंस क्लेम के लिए आवेदन किया, जिसे बीमा कंपनी गंभीर बीमारी मानती है. उधर, ब्रेन स्ट्रोक की वजह से शिकायतकर्ता के पिता की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई. वो बोलने में भी असमर्थ थे. इसके बाद 11 सितंबर 2023 उनकी मौत हो गई.
ये मौत का कारण नहीं था
इसके बाद बेटे ने बीमा कंपनी से बात की और सभी जरूरी कागजात दिए और IDBI बैंक से लिए गए लोन का निपटान करने की अपील की. इस पर वकील केके शर्मा ने तर्क दिया कि बीमा कंपनी ने दुर्भावनापूर्ण तरीके से शिकायतकर्ता को पिता की जीवनशैली संबंधी बीमारी का जिक्र करने के लिए राजी किया. जबकि उन्हें ऐसी जीवनशैली संबंधी बीमारी की वजह से कभी अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ा था. ये शिकायतकर्ता के पिता की मौत का कारण नहीं था.
बीमा कंपनी ने क्या कहा था?
उन्होंने आगे कहा कि शिकायतकर्ता के पिता की मौत की वजह ब्लड क्लॉटिंग थी, जिससे उन्हें स्ट्रोक हुआ था. इस बीच इंश्योरेंस क्लेम को 30 नवंबर 2023 को रिजेक्ट कर दिया था. शिकायतकर्ता पिता की मौत के बाद लोन की किस्त देने की स्थिति में नहीं था क्योंकि वो आर्थिक तंगी से जूझ रहा था. उनके दावे को खारिज करते हुए बीमा कंपनी ने कहा था कि शिकायतकर्ता को आईआरडीए विनियम-2016 के अनुसार प्रस्ताव फॉर्म में बीमित होने के लिए बीमारियों की पूरी हिस्ट्री का साफ-साफ खुलासा करना चाहिए था.
आयोग ने क्या कहा?
शिकायतकर्ता के पिता शुगर और हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित थे. इसका उन्होंने खुलासा नहीं किया था. अब आयोग ने आदेश दिया है कि शिकायतकर्ता के दावे को बीमा कंपनी ने गलत तरीके से खारिज कर दिया है. इसलिए उसको आदेश दिया जाता है कि आईडीबीआई बैंक को बीमा राशि का भुगतान करे. ऐसा न करने पर वसूली तक 9% प्रति वर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करना होगा. साथ ही शिकायतकर्ता को हुई मानसिक प्रताड़ना के रूप में 25 हजार रुपये का भुगतान करना होगा.