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शुक्रवार के दिन पूजा के समय पढ़ें ये व्रत कथा, खुशहाल रहेगी जिंदगी!

अगर आप जीवन में पैसों की कमी से परेशान रहते हैं तो आप शुक्रवार के दिन पूजा के समय मां लक्ष्मी की व्रत कथा अवश्य पढ़ें. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत कथा के सुनने या पढ़ने से लोगों को मन को शांति मिलती है और मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. इसके साथ ही घर परिवार के लोगों पर मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है. शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी के समर्पित है और इस दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए विधि-विधान से पूजा करें और व्रत कथा अवश्य पढ़ें.

मां लक्ष्मी पूजा विधि

  • शुक्रवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
  • घर के मंदिर में मां लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
  • मां लक्ष्मी को फूल, फल, मिठाई और धूप-दीप अर्पित करें.
  • मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें और उनकी आरती करें.
  • व्रत कथा पढ़ें या सुनें और इसके बाद माता को भोग लगाएं.
  • दिन भर उपवास रखें और शाम को मां लक्ष्मी को भोग लगाकर व्रत खोलें.
  • गरीबों और जरूरतमंदों को दान अवश्य करें.

पूजा के समय सुनें ये व्रत कथा

पैराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक नगर में शीला नाम की एक गरीब महिला रहती थी. वह अपने पति और बच्चों के साथ बहुत कठिनाई से जीवन यापन कर रही थी. शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोष स्वभाव वाली थी. उनका पति भी विवेक और सुशील था. शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे. शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे. देखते ही देखते समय बदल गया. शीला का पति बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा.

अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा. इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा फलस्वरूप वह रोडपति बन गया. यानी रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी हालत हो गई थी. शीला को पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ, किन्तु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी. वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगी. अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी. शीला ने द्वार खोला तो देखा कि एक मांजी खड़ी थी. उसके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था. उनकी आंखों में से मानो अमृत बह रहा था.

शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी. फिर मांजी बोलीं- ‘तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आई अतः मैं तुम्हें देखने चली आई.’ मांजी के अति प्रेमभरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया. उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह बिलख-बिलखकर रोने लगी. मांजी ने कहा-‘बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छांव जैसे होते हैं. धैर्य रखो बेटी! मुझे तेरी सारी परेशानी बता.’ उसने मांजी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई. कहानी सुनकर मांजी ने कहा- ‘कर्म की गति न्यारी होती है. हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं. इसलिए तू चिंता मत कर. अब तू कर्म भुगत चुकी है. अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएंगे.

बूढ़ी महिला (मांजी) ने उसे मां वैभव लक्ष्मी व्रत के बारे में बताया. बूढ़ी महिला ने उसे व्रत की विधि और महत्व समझाया. शीला ने श्रद्धा और भक्ति भाव से मां वैभव लक्ष्मी का व्रत रखना शुरू किया. उसने हर शुक्रवार को मां लक्ष्मी की पूजा की और व्रत कथा सुनी. धीरे-धीरे, उसके जीवन में बदलाव आने लगे. उसके पति को एक अच्छी नौकरी मिल गई और उनके घर में धन-धान्य की वृद्धि होने लगी.

शीला ने 21 शुक्रवार तक मां वैभव लक्ष्मी का व्रत रखा और फिर विधि-विधान से उद्यापन किया. उसने 7 महिलाओं को मां वैभव लक्ष्मी व्रत की पुस्तकें भेंट कीं और उन्हें भोजन कराया. मां वैभव लक्ष्मी की कृपा से शीला और उसके परिवार का जीवन सुखमय हो गया.

पूजा का महत्व

मान्यता है कि शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी पूजा करने से लोगों को की कृपा प्राप्त होती है. इसके साथ ही धन और समृद्धि में वृद्धि होती है. जीवन में सुख और शांति आती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं. शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा और व्रत करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और खुशहाली बनी रहती है और जीवन में आने वाले कष्टों से छुटकारा मिलता है.

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