जबलपुर। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत व न्यायमूर्ति विवेक जैन की युगलपीठ ने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग(एमपी पीएससी) द्वारा आयोजित राज्य सेवा प्रारंभिक परीक्षा 2025 के परिणाम पर रोक लगा दी है।
पीएससी को निर्देश दिया गया है कि हाई कोर्ट की अनुमति के बिना परिणाम घोषित न करें। कोर्ट ने पीएससी के सचिव व सामान्य प्रशासन विभाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई सात मई को होगी।
याचिकाकर्ता भोपाल निवासी ममता डेहरिया की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि इस याचिका के माध्यम से राज्य सेवा प्रारंभिक परीक्षा नियम-2015 के कुछ प्रविधानों की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। इसके साथ ही सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी परिपत्र और पीएससी द्वारा 31 दिसंबर, 2024 को जारी विज्ञापन को भी चुनौती दी गई है।
संवैधानिक प्रविधानों का उल्लंघन
बहस के दौरान दलील दी गई कि जिन नियमों को चुनौती दी गई है, वे संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 व 335 और लोकसेवा आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा चार-अ के विरुद्ध हैं। ये प्रविधान आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को छूट लिए जाने के नाम पर उनको अनारक्षित वर्ग में चयन से रोकते हैं।
राज्य शासन एक ओर आरक्षित वर्ग को विभिन्न प्रकार की छूट दे रही है जैसे आयु सीमा में छूट, शैक्षणिक योग्यता में छूट, परीक्षा शुल्क में छूट, वहीं दूसरी ओर छूट प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को मेरिट में उच्च स्थान प्राप्त करने पर भी अनारक्षित वर्ग में चयन नहीं कर रही है।
ऐसा करना संवैधानिक प्रविधानों का उल्लंघन है। पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा 16 फरवरी को हुई थी। इसमें 1.18 लाख फार्म भरे गए थे और लगभग 93 हजार उम्मीदवारों ने परीक्षा दी थी।
संपूर्ण विज्ञापन पर लगने वाली थी रोक
अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर के अनुसार कोर्ट संपूर्ण विज्ञापन पर स्थगन दे रहा था, लेकिन पीएससी व शासकीय अधिवक्ता ने कहा की परीक्षा हो चुकी है फिलहाल रिजल्ट जारी नहीं हुआ है। इस जानकारी को रिकार्ड पर लेकर हाई कोर्ट ने बिना अनुमति के रिजल्ट जारी न किए जाने का अंतरिम आदेश पारित कर दिया।