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उमर बोले- मनमोहन सिंह के दौर में कश्मीर मुद्दा सुलझाने के करीब पहुंच गए थे भारत और पाक

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आज सोमवार को दावा करते हुए बताया कि मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली UPA सरकार के दौरान भारत और पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के बेहद करीब पहुंच गए थे, लेकिन अब उन्हें अपने जीवनकाल में उस स्थिति की वापसी की उम्मीद नहीं है.

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन मनमोहन सिंह और चार अन्य पूर्व विधायकों को श्रद्धांजलि देते हुए सीएम अब्दुल्ला ने पूर्व प्रधानमंत्री की प्रशंसा की और कहा कि उन्होंने विस्थापित कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए कई व्यावहारिक कदम उठाए थे और उनके वर्किंग ग्रुप्स अभी भी प्रासंगिक हैं.

सदन में कई नेताओं को श्रद्धांजलि

विधानसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अलावा पूर्व मंत्री सैयद गुलाम हुसैन गिलानी, पूर्व राज्यसभा सदस्य शमशेर सिंह मन्हास तथा पूर्व विधायक चौधरी प्यारा सिंह और गुलाम हसन पर्रे को श्रद्धांजलि देने के लिए 2 मिनट का शोक रखा गया, इनका पिछले साल नवंबर में अंतिम विधानसभा सत्र के बाद निधन हो गया था.

उपराज्यपाल (LG) मनोज सिन्हा के अभिभाषण के बाद विधानसभा स्पीकर अब्दुल रहीम राठेर ने शोक प्रस्ताव रखा. फिर शाम लाल शर्मा (भारतीय जनता पार्टी), जीए मीर (कांग्रेस) और एम वाई तारिगामी (CPIM) समेत कई सदस्यों ने भी सदन में अपनी बात रखी.

मनमोहन सिंह ने बहुत कोशिश कीः उमर

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, “पिछले विधानसभा सत्र (श्रीनगर) में हमारे पास पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता वाली एक लंबी सूची थी और अब चार महीने बाद हमारे पास एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली एक छोटी सूची है, जिन्होंने देश के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया है.

अब्दुल्ला ने मनमोहन सिंह के एक गांव (जो अब पाकिस्तान में है) से भारत के प्रधानमंत्री बनने तक के सफर, खासतौर पर निजी क्षेत्र और सामाजिक कल्याण उपायों से संबंधित सुधारों को लागू करके देश को एक आर्थिक शक्ति बनाने में उनके योगदान को याद किया.

अब जीते जी कोई उम्मीद नहींः उमर

जम्मू-कश्मीर के बारे में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के योगदान को याद करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, “उन्होंने बाहरी देश (पाकिस्तान) के साथ समस्या का समाधान करने की लगातार कोशिश की. उन्होंने यह पहल नहीं की, बल्कि यह उन्हें विरासत में मिली थी, क्योंकि इसकी शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी और (तत्कालीन पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज) मुशर्रफ ने की थी. उन्होंने प्रधानमंत्री (साल 2004 में) बनने के बाद इस पहल को रोक दिया होता, लेकिन वह इसे अच्छी तरह से जानते थे कि वाजपेयी द्वारा की गई पहल को आगे बढ़ाना एक बड़ी जिम्मेदारी है.”

उन्होंने आतंकवादी घटनाओं का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा कि पूर्व पीएम सिंह ने लगातार बिगड़ते हालात के बावजूद ईमानदारी से कोशिश की. अब्दुल्ला ने कहा, “मैं बस यह कहना चाहूंगा कि दोनों देश उस अवधि के दौरान इस (कश्मीर) समस्या को हल करने के बेहद करीब पहुंच गए थे, लेकिन मैं अब अपने जीवनकाल में उस स्थिति की वापसी नहीं देख रहा हूं.”

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