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इतिहास से लेंगे सबक या दोहराई जाएगी वही कहानी, उपराष्ट्रपति चुनाव में एकता बनाए रखना INDIA गठबंधन के लिए चुनौती?

देश का अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा, ये अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन राजनीतिक पार्टियां अपनी रणनीति बनाने में जुट गई हैं. अपनी पिछली गलतियों को न दोहराने के दृढ़ संकल्प के साथ विपक्षी इंडिया गठबंधन जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद चुनाव के लिए एक संयुक्त उम्मीदवार उतारने की योजना बना रहा है. हालांकि कहा जा रहा है कि विपक्ष बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए उम्मीदवार की घोषणा के बाद ही अपने पत्ते खोलेगा.

देश की सत्ता पर साल 2014 में बीजेपी गठबंधन की सरकार काबिज होने के बाद चाहे वह राष्ट्रपति का चुनाव हो या फिर उपराष्ट्रपति का, विपक्षी गठबंधन में दो फाड़ दिखाई दिए हैं. विपक्षी गठबंधन की अगुवाई करने वाली कांग्रेस हमेशा बैकफुट पर नजर आई और उसके गठबंधन के उम्मीदवार को करारी मात मिली. इस बार अभी तक टीएमसी चुप्पी साधे हुए हैं और वह किसी भी तरह की टिप्पणी करने से बचती नजर आ रही है.

विपक्ष के लिए इस बार भी उपराष्ट्रपति चुनाव में राह आसान दिखाई नहीं दे रही है. उच्च सदन में एनडीए का पलड़ा भारी है. हालांकि विपक्ष को अभी अपने सहयोगी दलों को जुटाना बाकी है. जिस तरह से शिवसेना, टीएमसी, बीजेडी, वाईएसआरसीपी, जेएमएम पाला बदलती रही हैं उससे सवाल खड़ा होता है क्या कांग्रेस नेतृत्व वाला विपक्ष इतिहास से सबक लेगा या फिर उसी तरह की कहानी दोहराई जाएगी. चुनाव में इंडिया गठबंधन के सामने एकजुट होने की बड़ी चुनौती है. आइए जानते हैं कि 2017 और 2022 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने किस तरह अपने गठबंधन से इतर फैसला लेते हुए एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया है…

कांग्रेस क्या दे रही है दलील?

सबसे पहले बात करते हैं कि इस बार होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव की. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का कहना है कि इंडिया गठबंधन आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सामूहिक रूप से फैसला लेगा. ये फैसला गठबंधन की एक बैठक बुलाकर लिया जाएगा. कांग्रेस का दावा है कि किसी भी तथ्य पर पहुंचने से पहले सभी सहयोगी दलों से बातचीत जरूरी है. दरअसल, जगदीप धनखड़ ने सोमवार को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था.

रामनाथ कोविंद का किन पार्टियों ने किया समर्थन?

साल 2014 में एनडीए सरकार आने के बाद पहली बार राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव 2017 में हुआ. एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद ने 65.65 फीसदी वोटों के साथ अपनी विपक्षी उम्मीदवार मीरा कुमार को हराया. उन्हें मात्र 34.35 फीसदी वोट मिले. चुनाव से पहले ही तय हो गया था कि कोविंद की जीत पक्की है क्योंकि लगभग 40 पार्टियों ने उनके समर्थन में वोट करने की बात कही. इसमें विपक्षी पार्टियां भी शामिल थीं. कांग्रेस विपक्ष को एकजुट करने में विफल रही.

रामनाथ कोविंद का समर्थन करने वाली गैर-एनडीए पार्टियों में एआईएडीएमके, युवजन श्रमिक रायथु कांग्रेस पार्टी, बीजू जनता दल, तेलंगाना राष्ट्र समिति और इंडियन नेशनल लोकदल शामिल थे. इसके अलावा नीतीश कुमार की जनता दल (यू) ने भी बिहार के अपने ‘महागठबंधन’ सहयोगियों, कांग्रेस और लालू प्रसाद की राजद के खिलाफ जाकर कोविंद का समर्थन किया. उस समय नीतीश कुमार एनडीए से अलग होकर लालू खेमे से जुड़ गए थे.

मीरा कुमार का समर्थन करने वाली विपक्षी पार्टियों में कांग्रेस के अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियों, डीएमके और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत कुछ अन्य दल भी शामिल थे.

वेंकैया नायडू को किसका मिला साथ?

साल 2017 में पूर्व केंद्रीय मंत्री एम. वेंकैया नायडू को एनडीए ने उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया. उनके सामने विपक्ष ने पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी को खड़ा किया. चुनाव में 98.21 फीसदी मतदान हुआ और 785 सांसदों में से 771 ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. कुल 760 वैध मतों में से नायडू को 516 मत मिले, जबकि गांधी के खाते में 244 वोट गए.

हालांकि इस चुनाव में एक दिलचस्प बात सामने आई. एक तरफ एनडीए के सभी सहयोगी दलों ने नायडू की उम्मीदवारी का समर्थन किया था, तो दूसरी तरफ बीजेडी और जेडीयू ने अपना रुख बदल लिया. उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन किया था, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए उन्होंने उलट फैसला लिया. दोनों पार्टियों ने गांधी का सपोर्ट किया.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को मिला विपक्ष साथ

इंडिया गठबंधन 2022 में हुए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में भी मुंह की खानी पड़ी. एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के सामने विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को उतारा. मुर्मू के नाम की घोषणा के समय से ही उनका जीतना लगभग तय माना जा था. मुर्मू को कुल 1886 वोटों में से उन्हें 1,349 वोट मिले, जबकि सिन्हा को 537 वोट मिले. वे पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनीं.

यहां भी गौर करने की बात यह है कि कांग्रेस विपक्षी दलों को अपने खेमे को एकजुट नहीं कर पाई. झामुमो ने मुर्मू का आदिवासी पहचान के कारण समर्थन कर दिया. कुछ अन्य आदिवासी सांसदों और विधायकों ने भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उनके पक्ष में मतदान किया. इसके अलावा बीजेडी ने ओडिशा की बेटी के चलते समर्थन दिया और वाईएसआरसीपी ने भी सपोर्ट किया. चुनाव के बाद सत्तापक्ष की ओर से दावा किया गया कि मुर्मू के पक्ष में 120 से अधिक विधायकों और 17 सांसदों ने क्रॉस वोटिंग कर दी, जिसकी वजह से उनकी बंपर जीत हुई.

TMC ने 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में किया था किनारा

साल 2022 में उपराष्ट्रपति चुनाव में टीएमसी ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा को विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में समर्थन देने से इनकार कर दिया था, जो एनडीए के जगदीप धनखड़ के खिलाफ खड़ी थीं. 17 राजनीतिक दलों की बैठक के बाद अल्वा के नामांकन को मंजूरी दी गई थी. हालांकि, टीएमसी बैठक में शामिल नहीं हुई थी और उसने चुनाव में मतदान से भी परहेज किया था.

एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को कुल 725 वोटों में से 528 मत मिले, जबकि 15 वोटों को अवैध घोषित कर दिया गया. वहीं, विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को चुनाव में 182 मत मिले. 1997 के बाद से हुए पिछले छह उपराष्ट्रपति चुनावों में उनकी जीत का अंतर सबसे अधिक था. उन्होंने 346 वोटो से जीत हासिल की थी.

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