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लेफ्टिनेंट कर्नल शरद देव सिंह जामवाल का मना 100वां जन्मदिन, 47 से लेकर 71 तक हर युद्ध में लिया भाग

भारतीय सेना की टाइगर डिवीजन ने लेफ्टिनेंट कर्नल शरद देव सिंह जामवाल का 100वां जन्मदिन मनाया. जामवाल द्वितीय विश्व युद्ध के हीरो के रूप में जाने जाते हैं. जामवाल ने 1961 में गोवा मुक्ति अभियान, 1962 के भारत-चीन युद्ध और भारत-पाक युद्धों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था और देश की सेवा की.

13 अगस्त 1926 में जम्मू में जन्में कर्नल जामवाल के खून में ही देश सेवा का भाव है. जामवाल के पिता प्रभात सिंह खुद एक कर्नल थे. उन्होंने देश के प्रथम विश्व युद्ध में सक्रिय भूमिका निभाई थी. युद्ध में भाग लेना मानों उन्हें विरासत में मिली हो. जामवाल की प्रारम्भिक शिक्षा दून स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने अपने स्नातक की पढ़ाई देहरादून के प्रिंस ऑफ वेल्स रॉल इंडियन मिलिट्री कॉलेज में हुई थी.

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इन युद्धों में लिया भाग

रक्षा प्रवक्ता ने बताया कि लेफ्टिनेंट कर्नल जामवाल को द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम चरण के दौरान 1946 में 7वीं लाइट कैवलरी में शामिल किया गया था. उनके विशिष्ट सैन्य करियर में बर्मा अभियान, 1947-48 के भारत-पाक युद्ध, 1961 में गोवा की मुक्ति और 1962 के चीन-भारत युद्ध में सक्रिय भागीदारी शामिल है.

द्वितीय विश्व युद्ध मचा दी थी तबाही

द्वितीय विश्व युद्ध प्रथम विश्व युद्ध का परिणाम था. इस युद्ध ने दुनिया भर में हड़कंप मचा दिया था. यह युद्ध 1939 से 1945 तक दुनिया भर में फैला एक भयावह युद्द था. इस संघर्ष में लगभग 70 मिलियन लोगों की जान चली गई थी. यह युद्ध विश्व के दो गुटों के बीच हुआ, जिसमें एक गुट मित्र राष्ट्र और दूसरा गुट धुरी राष्ट्रों का था. मित्र राष्ट्रों में ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और चीन शामिल थे, वहीं दूसरी तरफ धुरी राष्ट्रों में जर्मनी, इटली और जापान शामिल थे.

1961 का गोवा मुक्ति अभियान

1961 में शुरू हुआ गोवा मुक्ति अभियान का प्रमुख उद्देश्य गोवा, दमन और द्वीप को पुर्तगालियों के चंगुल से छुड़वाना था. इस अभियान को ऑपरेशन विजय के रूप में भी जाना जाता है. गोवा से पुर्तगालियों को खदेड़ने के लिए 17 दिसंबर 1961 को ऑपरेशन विजय की शुरुआत की गई थी. इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के लगभग 30 हजार सैनिकों ने भाग लिया था. पुर्तगालियों ने शुरू में इन सैनिकों का मुकाबला करने का फैसला किया लेकिन बाद में पुर्तगालियों ने अपनी हार मान ली और गोवा छोड़कर भाग गए.

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