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बिहार

बंगाल की राजनीति में नया चेहरा या नया खेल? ‘पीरजादा’ बना चर्चा का विषय

बिहार में चुनाव के बाद अब पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हलचल तेज हो चुकी है. यहां पर कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव कराया जाना है, ऐसे में यहां की हर गतिविधियों पर सभी की नजरें लगी हुई हैं. राज्य में सत्तारुढ़ टीएमसी से निकाले गए हुमायूं कबीर बहुत ज्यादा एक्टिव दिख रहे हैं, पहले वह मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद बनाने का ऐलान करने की वजह से चर्चा में आए और अब वह नई पार्टी का ऐलान करने जा रहे हैं. उनके रूख से बंगाल में एक नई तरह की सियासत के शुरू होने की संभावना बढ़ गई है.

तृणमूल कांग्रेस पार्टी (TMC) से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने एक दिन पहले रविवार को ‘तृणमूल कांग्रेस विरोधी’ और ‘भारतीय जनता पार्टी विरोधी’ ताकतों से एकजुट होने और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए गठबंधन बनाकर और मिलकर चुनाव लड़ने का आह्वान किया. साथ ही उन्होंने यह भी ऐलान किया कि राज्य की सभी 294 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.

मुस्लिम समाज की बात कर रहे हुमायूं कबीर

साथ ही राज्य के चर्चित नेता कबीर ने यह भी कहा कि उनका काम अल्पसंख्यक वोटर्स को एकजुट करने का होगा. हमारा लक्ष्य है कि हम कम से कम 90 सीटों पर जीत हासिल करें ताकि चुनाव के बाद मेरी पार्टी नई सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाए. वरना मुर्शिदाबाद जिले में बाबरी मस्जिद बनाने का सपना अधूरा रह सकता है.

पश्चिम बंगाल के अल्पसंख्यक बहुल मुर्शिदाबाद जिले के भरतपुर क्षेत्र से विधायक हुमायूं कबीर भी राज्य में मुस्लिम समाज के हितों और उनके कल्याण की बात कर रहे हैं. हालांकि उनसे पहले बंगाल की सियासत में 2 पीरजादा की राजनीति में एंटी हो चुकी है. एक पीरजादा कांग्रेस के साथ है तो दूसरा पीरजादा सत्तारुढ़ टीएमसी के खेमे में हैं. ऐसे में टीएमसी से निकाले गए विधायक हुमायूं के पास एक तीसरा खेमा बनाने का ही विकल्प दिख रहा है, क्योंकि वह बीजेपी के साथ तो जाएंगे नहीं.

कांग्रेस के खेमे में पीरजादा खोबायेब अमीन

इस साल मई महीने के अंतिम दिन 31 तारीख को सामाजिक कार्यकर्ता पीरजादा खोबायेब अमीन कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्हें पार्टी महासचिव और पश्चिम बंगाल प्रभारी गुलाम अहमद मीर, कांग्रेस के मीडिया और पब्लिसिटी विभाग के चेयरमैन पवन खेड़ा की मौजूदगी में पार्टी में शामिल कराया गया.

पीरजादा अमीन पश्चिम बंगाल के एक जाने-माने परिवार से ताल्लुक रखते हैं. इस परिवार का पश्चिम बंगाल ही नहीं ओडिशा और त्रिपुरा में भी काफी असर देखा जाता है. अमीन का परिवार धर्म और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है.

TMC संग फुरफुरा शरीफ के पीरजादा कासिम

इसी तरह राजनीतिक ध्रुवीकरण की कोशिश में लगी टीएमसी ने पीरजादा अमीन के कांग्रेस में जाने के कुछ दिन बाद ही फुरफुरा शरीफ के पीरजादा कासिम सिद्दीकी को पार्टी का महासचिव नियुक्त कर दिया. इस कोशिश को सीएम ममता की ओर से बीजेपी के ध्रुवीकरण की कोशिशों को देखते हुए मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के बढ़ते असर का मुकाबला करने के अहम रणनीतिक कदम के रूप में देखा गया.

कासिम सिद्दीकी को बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने के पीछे की कवायद है कि पिछले चुनाव (2021) में मौलवी अब्बास सिद्दीकी ने इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) लॉन्च किया था और इस नई पार्टी ने बढ़िया प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया था. फ्रंट ने कांग्रेस और लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और अब्बास के भाई नौशाद सिद्दीकी ने दक्षिण 24 परगना जिले की भांगर सीट पर जीत हासिल की थी. इस सीट को टीएमसी का गढ़ माना जाता रहा है, जिसमें ISF ने मुस्लिम वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाई थी.

कासिम सिद्दीकी के भरोसे ममता बनर्जी

साथ ही 2 साल पहले 2023 के पंचायत चुनावों के दौरान फ्रंट ने करीब 400 ग्राम पंचायत सीटों पर जीत हासिल की और इनमें से ज्यादातर दक्षिण बंगाल में टीएमसी के गढ़ में थीं. इसके अलावा इस फ्रंट का आधार दक्षिण 24 परगना से निकलकर कई मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में लगातार बढ़ता जा रहा था, और यह ममता की पार्टी के लिए टेंशन की वजह बन गई. ऐसे में ममता ने कासिम सिद्दीकी को पार्टी में औपचारिक रूप से शामिल कराए बगैर ही बड़ी जिम्मेदारी दे दी. ताकि अगले चुनाव में उसके मुस्लिम वोट को दूसरी ओर जाने से रोका जा सके.

फुरफुरा शरीफ में सिद्दीकी परिवार का बड़ा रसूख है. कासिम सिद्दीकी, अब्बास और नौशाद सिद्दीकी के करीबी रिश्तेदार हैं. माना जा रहा है कि आने वाले चुनावों में कासिम सिद्दीकी को बड़ी भूमिका भी दी जा सकती है.

बंगाल में विधानसभा चुनाव में भले ही अभी काफी वक्त बचा हुआ हो, लेकिन वहां पर सभी राजनीतिक दलों की ओर से ध्रुवीकरण की कोशिश तेज कर दी गई है. बीजेपी बांग्लादेश में हिंसा, हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों के अलावा राज्य में मुर्शिदाबाद सांप्रदायिक हिंसा, शर्मिष्ठा पानोली जैसे मामलों के जरिए लगातार माहौल बनाने में जुटी है.

अब हुमायूं कबीर के नए सिरे से राजनीतिक समर में कूदने से यहां की चुनावी फिजा अलग ही रंग में बनने लगी है. दो रसूखदार पीरजादाओं के बीच वो अपनी स्थिति कैसे मजबूत करते हैं. साथ में देखना होगा कि कांग्रेस और टीएमसी में अपनी पारी खेलने के बाद अपनी नई पारी को किस तरह से आगे ले जाते हैं और कितनी कामयाबी उनके हिस्से में आती है.

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