तीन साल से डीपीसी की बैठक नहीं हुई, इसलिए पदोन्नति की राह ताक रहे याचिकाकर्ता

बिलासपुर। पदोन्नति के लिए शासन के मापदंडों को पूरा करने के बाद भी सिर्फ इसलिए पदोन्न्ति की राहत ताक रहे हैं,अब तक डीपीसी की बैठक ही नहीं हुई है। राज्य शासन ने डीपीसी की बैठक के लिए अब तक आदेश जारी नहीं किया है। मामले की सुनवाई हाई कोर्ट के सिंगल बेंच में हुई। प्रकरण की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर पदोन्न्ति के विभागीय पदोन्न्ति समिति की बैठक आयोजित करने और याचिकाकर्ता को नियमानुसार पदोन्न्त करने का निर्देश दिया है।
उप संचालक लोक अभियोजन के पद पर पदस्थ श्यामलाल पटेल ने अपने वकील अभिषेक पांडेय के जरिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि वे अपने कामकाज गंभीरता के साथ करते आ रहे हैं। उप संचालक अभियोजन के पद पर सर्विस रिकार्ड भी काफी है।
राज्य शासन ने वर्ष 2018 से डीपीसी की बैठक आयोजित करने दिशा निर्देश जारी नहीं किया है। बीते तीन वर्षों से डीपीसी की बैठक ना होने के कारण संयुक्त संचालक लोक अभियोजन के पद पर उनकी पदोन्नति नहीं हो पा रही है। हाई कोर्ट ने राज्य शासन को 60 दिनों की मोहलत दी है।
याचिकाकर्ता ने पदोन्न्ति नियमों की जानकारी देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ लोक अभियोजन (राजपत्रित) भर्ती एवं पदोन्न्ति नियम – 2008 की अनुसूची-चार के तहत उप संचालक से संयुक्त संचालक पद पर पदोन्न्त होने के लिए उप संचालक पद पर तीन वर्ष की सेवा अनिवार्य है। इस पद पर तीन वर्ष की अवधि पूरी हो चूकी है। याचिका के अनुसार उनके बीते पांच वर्ष का सेवा रिकार्ड भी बेहतर है।
याचिकाकर्ता ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा ( पदोन्नति) नियम 2003 के उपनियम चार (2) के तहत यदि प्रथम श्रेणी अधिकारी के उधा पद पर पदोन्न्ति दी जाती है तब मेरिट के साथ ही वरिष्ठता को आधार मानने का प्राविधान है। मामले की सुनवाई हाई कोर्ट के सिंगल बेंच में हुई।
प्रकरण की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने सचिव गृह (पुलिस) विभाग, संचालक लोक अभियोजन व राज्य शासन को नोटिस जारी कर डीपीसी की बैठक आयोजित करने व याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर 60 दिनों के भीतर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को विभाग के समक्ष अभ्यावेदन पेश करने की बात कही है।