राजस्थान सरकार 2008 के जयपुर सीरियल ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करेगी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में शुक्रवार को मुख्यमंत्री निवास पर उच्चस्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि 2019 के जिला न्यायालय के फैसले को पलटते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय ने सभी आरोपियों को बरी किया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की मंशा है कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले, इसलिए हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध राज्य सरकार उच्चतम न्यायालय में शीघ्र ही विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल करेगी। साथ ही, मुख्यमंत्री ने इस प्रकरण में पैरवी के लिए नियुक्त अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेन्द्र यादव की सेवाएं समाप्त करने का निर्णय लिया।
उच्च स्तरीय बैठक में आला अधिकारी मौजूद रहे
उच्च स्तरीय बैठक में मुख्य सचिव उषा शर्मा, प्रमुख शासन सचिव गृह आनंद कुमार, पुलिस महानिदेशक उमेश मिश्रा, एडीजी एसओजी-एटीएस अशोक राठौड़, एडीजी क्राइम दिनेश एमएन, एडीजी इंटेलिजेंस एस. सेंगथिर, प्रमुख शासन सचिव विधि ज्ञान प्रकाश गुप्ता एवं सचिव गृह (विधि) रवि शर्मा मौजूद रहे।
ये है पूरा मामला ?
13 मई 2008 को जयपुर में सिलसिलेवार बम धमाके शहर के परकोटे में हुए थे। इस मामले में निचली कोर्ट ने आरोपियों को सजा सुनाई थी। इसमें फांसी की सजा शामिल थी। राजस्थान हाईकोर्ट से हाल ही में आए फैसले में चारों आरोपी बरी हो गए। कोर्ट की इस मामले में कुछ सख्त टिप्पणी भी जांच एजेंसी पर सवाल खड़े करती है। इस मामले में प्रदेश के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने अपनी ही कांग्रेस सरकार को घेरते हुए कहा- किसी ने तो बम ब्लास्ट किए ही होंगे न? पायलट ने कहा-जयपुर बम ब्लास्ट के दोषियों की रिहाई गंभीर इश्यू है। जिम्मेदारों के खिलाफ जांच होनी चाहिए और सरकार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर करे। जो जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए और मामले की नए सिरे से जांच होनी चाहिए।
दूसरी ओर बीजेपी ने भी जमकर इस मुद्दे पर गहलोत सरकार को घेरा। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने जांच में गंभीर लापरवाही पर सवाल खड़े किए। साथ ही सरकार पर तुष्टीकरण के आरोप लगाए है। सतीश पूनिया ने मामले की पैरवी के लिए सरकार की ओर से नियुक्त अतिरिक्त महाधिवक्ता के लंबे समय तक कोर्ट में पैरवी के लिए नहीं पहुंचने पर भी सवाल खड़े किए। साथ ही पूछा- किसके इशारे पर ऐसा किया गया? इस पूरे मामले में पब्लिक में भी सरकार की बहुत किरकिरी हुई है। चौतरफा घिरी सरकार ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का फैसला लिया है।