भोपाल। अद्वैत की शिक्षा की न केवल भारत को बल्कि इस वक्त दुनिया में अमन और शांति कायम करने के लिए जरूरी है। इस पर कायम रहकर ही दुनिया को अमन का गहवारा बनाया जा सकता है। भरत की जमीन पर वेद और उपनिषद की शिक्षा सदियों से मौजूद थी। वेद कर्मयोग की बात करता है और उपनिषद ज्ञानयोग की बात करते हैं। यह वही तालीम है, वही शिक्षा है जिसे हम राहे मार्फज कहते हैं। यह बात डा. आफताब आलम ने मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा “वहदत में तेरी हर्फ दुई का न आ सके” उर्दू साहित्य में वहदत-उल-वजूद (अद्वैत)” पर आधारित सूफी सेमिनार में अपने विचार रखते हुए कही।
कार्यक्रम में शमीम तारिक मुंबई और जिया अल्वी लखनऊ ने विषय पर अपनी बात रखी। शमीम तारिक ने कहा कि हमारी कोशिश हो कि इंसान का इंसानियत से रिश्ता ज्यादा से ज्यादा मजबूत हो। जिया अल्वी ने कहा कि सूफीवाद का जो सबसे पहला काम इंसान को इंसान से जोड़ने का है। इस मौके पर सूफियाना मुशायरा व चिंतन सत्र का आयोजन भी किया गया। तीन सत्रों पर आधारित कार्यक्रम में प्रथम सत्र चिंतन पर था, जिसमें प्रदेश के सभी जिला समन्वयकों के साथ चिंतन सत्र आयोजित हुआ। अकादमी के आगामी दिनों में होने वाले जिलेवार सिलसिला एवं तलाश-ए-जौहर कार्यक्रम की रूपरेखा एवं तैयारियों से सबंधित विचार विमर्श किया गया।
भारत अध्यात्म की भूमि, इसलिए यहां सूफीवाद फला-फूला : डा. मेहदी
कार्यक्रम के प्रारंभ में अकादमी की निदेशक डा नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सामाजिक समरसता को कायम करने में सूफी संतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारतीय दर्शन में यही चिंतन प्रारंभ से ही उर्दू साहित्य का महत्वपूर्ण भाग है। हमें अपने भारतीय होने पर गर्व है, क्योंकि इस देश में अध्यात्म की परम्परा बहुत प्राचीन है। एक लंबा इतिहास है और यहां इस तरह के दृष्टिकोण का हमेशा स्वागत किया गया है। हमें उसी परम्परा को जीवंत रखना और युवा पीढ़ी को इससे परिचित कराना है। अंतिम सत्र में अखिल भारतीय मुशायरा आयोजित किया गया, जिसमें ख्याति प्राप्त शायर जफर सहबाई (भोपाल), इकबाल अशहर (दिल्ली) आगा सरोश (हैदराबाद) राजेश रेड्डी (मुम्बई), शारिक कैफी (बरेली),हाजी रफीक मोहसिन (इंदौर) नदीम शाद (देवबंद) और सालिम सलीम, (दिल्ली) आदि ने अपने कलाम पेश किए।