खंडवा, बीड़। संत सिंगाजी महाराज के 464 वें समाधि दिवस पर शुक्रवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने दर्शन कर निशान पेश किए। सुबह से शुरू हुआ दर्शनों का सिलसिला देर शाम तक चला। इस दौरान दोपहर चार बजे महाआरती की गई। दिनभर संत सिंगाजी के भजन और हलवा प्रसादी का वितरण किया गया। सांय सात बजे दीप स्तभं के 164 दीप जलने से समाधि परिसर जगमगाने लगा। इस वर्ष से समाधि परिसर में ट्रस्ट द्वारा शुरू की गई अखंड भक्तों के आस्था का केेंद्र रही। दो दिनों में यहां 70 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने समाधि दर्शन किए। मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालुओं ने कडावा देकर हवाले की प्रसादी वितरित की गई।
सावन सुदी नवमी को संत सिंगाजी महाराज ने 164 साल पहले समाधि ली थी। तभी से यहां अखंड ज्योत जल रही है। समाधि दिवस पर अपने आराध्य के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। बीड़ ने निकट इंदिरा सागर के बैकवाटर के बीच स्थित संत सिंगाजी की समाधि पर निशान लेकर नंगे पैर श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला एक दिन पहले से ही शुरू हो गया था।
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सावन मास की नवमी पर सुबह से समाधि का अभिषेक और आरती की गई। इसके बाद सिंगाजी के परिवार के बुजुर्गो का सम्मान ट्रस्ट की ओर से किया गया। दोपहर 12 बजे भोग आरती के बाद हलवा प्रसादी का वितरण किया गया। दोपहर चार बजे महाआरती में हजारों भक्त शामिल है।
मान्यता है कि नवमीं पर इसी समय सिंगाजी ने समाधि ली थी। शाम में सवा सात बजे आरती और दीपमाला स्तभं के164 दीपों को रोशन किया गय। श्रद्धालुओं द्वारा आतिशबाजी भी की गई। बीड़ और अन्य स्थानों पर श्रद्धालुओं के लिए भोजन प्रसादी के लिए भंडारों का आयोजन किया गया।
सुरक्षा और ट्रैफिक व्यवस्था के प्रति सजग रही पुलिस
समाधि दिवस पर उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए क्षेत्र में सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए थे। मूंदी, बीड़ के अलावा खंडवा हसे भी पुलिस और होमगार्ड का बल तैनात किया गया था। वाहनों की आवाजाही शुरू रखने के लिए ट्रैफिक जवानों को भी लगाया गया था। समाधि के निकट और बैकवाटर के आसपास गोताखोर और तैराकों की तैनाती रही। बीड़ से सिंगाजी तक मार्ग की बदहाली की वजह से लोगों को आवाजाही में परेशानियों का सामना करना पड़ा।
चमत्कारिक है सिंगाजी का जल
संत सिंगाजी महाराज का जन्म संवत 1576 में वैशाख सुदी नवमी को ग्राम खजूरी जिला बड़वानी में हुआ था। संत सिंगाजी महाराज ने अपने 40 साल के जीवन में अनगिनत चमत्कार किए थे। संत सिंगाजी को पशुओं से असीम स्नेह था। उन्हे पशुओं का देवता भी कहा जाता है। किसानों के पशु बीमार होने पर यहां का जल उन्हे पिलाने से ठीक हो जाते हैं वहीं फसलों पर भी बीमारी व कीट लगने पर किसान आस्था से यहां के जल का छिड़काव करते है। संत के समाधि का जल चत्मकारिक माना जाता है।
संत को चढ़ता है शुद्ध घी
श्रद्धालुओं द्वारा मन्नत पूरी होते ही घी का चढ़ावा किया जाता है। संत सिंगाजी को कबीरपंथी संत भी कहा जाता है। संत सिंगाजी ने गुरु की आज्ञा को मानकर अपना मुंह ना दिखाते हुए संवत 1616 सावन सुदी नवमी को पिपलिया सिंगाजी में जीवित समाधि ले ली थी। तभी से यहां अखंड ज्योत जल रही है। समाधि दिवस और शरद पूर्णिमा पर यहां सैंकड़ों किलो शुद्ध घी चढ़ाया जाता है।
– सावन सुदी नवमी को संत सिंगाजी महाराज की समाधि दर्शन के लिए बड़ी संख्या में भक्त उमड़ें। सुबह से लेकर शाम तक मंदिर परिसर में भजन.कीर्तन और हलवा प्रसादी का वितरण किया गया। इस वर्ष से परिसर में अखंड धूनी माई की शुरूआत की गई है। यह भी दीपक की तरह अखंड प्रज्ज्वलित रहेंगी।
मंहत रतनलाल महाराज, संत सिंगाजी समाधि ट्रस्ट