अरे रजनीश…
कहां हो,,, कैसे हो
यार बधाई हो..तुम्हारी पीएचडी हो गई…देखो मैं अभी रीवा में हूं..अगर तुम यहां फैकल्टी के तौर पर आना चाहो तो आ सकते हो तो…पर हां यहां सैलरी कम मिलेगी
2021 में पीएचडी करने के बाद सर का कॉल आया था। सर से साल में दो चार बार बात हो जाती थी…लेकिन अब नहीं हो पाएगी…
ओह,,,,दीपेंद्र सर भी चले गए। 6 जनवरी को ये मनहूस खबर आई। सर से अपन की मुलाकात 1999-2000 में हुई थी। अपन इंदौर से बीजेएमसी कर के भोपाल पहुंचे थे मास्टर के लिए। उस दौरान सर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक विंग में थे। बेहार साहब डी जी थे और रामशरण जोशी सर एडीजी। सत्र के शुरूआत में ही कुछ पाठ्यक्रमों को लेकर विश्वविद्यालय में बवाल मच गया । विश्वविद्यालय में काफी हंगामा हुआ। हमारे सीनियर कुछ शिक्षकों की बातें सुनते थे..उनमें बघेल सल भी शामिल थे। पीपी सर थे ..वो भी पिछले साल हम सब को छोड़कर चले गए।
तो अपन बात कर रहे थे ..दीपेंद्र सर की। डी जी बेहार सर और एडीजी रामशरण जोशी सर ने बघेल सर को प्रशासनिक कामकाज से मुक्त कर अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र में भेज दिया। और ये सही कदम भी था। बघेल सर को बच्चे गुगल सर भी कहा करते थे। कोई भी जानकारी हो,,,किसी भी विषय पर हो हर चीज की जानकारी बघेल सर के पास थी और वो समझाते भी उसी तरह से थे। विश्वविद्यालय में पीपी सर के बाद अगर कोई छात्रों के बीच लोकप्रिय था तो वो थे बघेल सर। हम लोग एमजे के छात्र थे। सर के जिम्मे कुछ क्लास एमजे की भी लगी थी। हम लोगों को वे पढ़ाते -समझाते थे। कोई भी व्यक्तिगत परेशानी होती तो वो भी समझाते थे। हर संभव मदद करना उनकी आदत थी।
मुझे याद है कई बार सर ने हमलोगों की क्लास शाहपुरा झील के पास भी ली थी। भारत से लेकर वैश्विक घटनाओं पर सर की पकड़ जबरदस्त थी। ऐसी कोई विधा या कहें विषय नहीं जिस पर सर की पकड़ ना हो। एमजे के दौरान हमने कला संस्कृति पर अपना लघु शोध तैयार किया था। सर का मार्गदर्श मिला…और हमने अपना काम पूरा किया। हमारे् लघु शोध निर्देशक बघेल सर ही थे। आप हमेशा हमारे दिलों में रहोगे सर। बहुत मिस करेंगे आपको,,,,पीपी सर के बाद आपका जाना रूला गया सर…..
- इक बार तो ख़ुद मौत भी घबरा गई होगी
यूं मौत को सीने से लगाता नहीं कोई
माना कि उजालों ने तुम्हें दाग़ दिए थे
बे-रात ढले शमा बुझाता नहीं कोई