एडवोकेट चंद्रशेखर आज़ाद अब सांसद चंद्रशेखर हो गए हैं. उनका मिशन देश की हुकूमत पर बहुजन का शासन स्थापित करना है. उत्तर प्रदेश के नगीना लोकसभा क्षेत्र से 2024 का चुनाव जीतकर वो इस मंज़िल की तरफ अपना पहला कदम बढ़ा चुके हैं. चुनाव में जीत के बाद चंद्रशेखर पूरे देश में कहीं भी और किसी पर भी होने वाले जुल्म के खिलाफ लड़ने की हुंकार भर रहे हैं. सरकार को चैन से न बैठने देने की कसमें खा रहे हैं और संसद में रंग जमाने का दावा कर रहे हैं.
महज 36 साल की उम्र में चंद्रशेखर 140 करोड़ की आबादी वाले देश में एक व्यापक एजेंडे के साथ अपनी राजनीतिक लड़ाई को आगे ले जा रहे हैं. हालांकि, उनका उद्भव उसी परिवेश में हुआ जिसकी लड़ाई कभी पेरियार रामास्वामी ने लड़ी. दलितों के साथ भेदभाव को खत्म करने का मिशन जो कभी बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने चलाया उसी पर चंद्रशेखर हैं. अपने जुलूस में बाबा साहेब की तस्वीर रखते हैं. उनके राजनैतिक दल आजाद समाज पार्टी के नाम के साथ के साथ कांशीराम की विरासत है और तेवर पेरियार, अर्जक संघ जैसे हैं जिन्होंने धार्मिक ग्रंथ तक जलाए, मंदिरों में दलितों की एंट्री के लिए आंदोलन किए. अर्जकों में तार्किक, वैज्ञानिक व मानववादी चिंतन पैदा करके पाखंड-अंधविश्वास के खिलाफ मुखरता से लड़ने वाले रामस्वरूप वर्मा, महाराज सिंह भारती, जगदेव बाबू, पेरियार ललई के संघर्ष को आगे बढ़ाने की बात चंद्रशेखर करते हैं. दलित होने की वजह से अगर कहीं किसी पर जुल्म होता है तो चंद्रशेखर आरोपियों को सामंता गुंडा कहते हैं. पीड़ितों की आवाज उठाने के लिए डीएम-एसपी से मुंह पर जवाब मांगते हैं.
लोकसभा की सदस्यता पाकर चंद्रशेखर अब घोषित राजनेता हो गए हैं, 4 जून से पहले तक उनका दायरा सामाजिक नेता के रूप में सीमित था. अब वो सदन में उस आवाज को उठाने का दंभ भर रहे हैं जिसके मिशन की शुरुआत उन्होंने अपने गृह जिले सहारनपुर से की थी.
हिंसा से चर्चा में आई भीम आर्मी
चंद्रशेखर ने अपने सहयोगी सतीश कुमार और विनय रतन सिंह के साथ मिलकर अक्टूबर 2015 में भीम आर्मी नाम का संगठन बनाया था. इस संगठन का मकसद दलितों में शिक्षा को लेकर जागरूकता पैदा करना था. शुरुआती दौर में चंद्रशेखर ने भीम आर्मी को हमेशा गैर-राजनीतिक और सामाजिक संगठन के रूप में लोगों के सामने रखा. इस संगठन के जरिए उन्होंने अपने दलित समाज के हक की आवाज को उठाया और हमेशा संविधान व अहिंसा की बात की. सितंबर 2016 में छुटमलपुर के ही एक इंटर कॉलेज में दलित छात्रों की पिटाई का मामला सामने आया तो भीम आर्मी ने इस मुद्दे पर आवाज उठाई, प्रदर्शन किए. इसके बाद से भीम आर्मी दलित समाज के उत्पीड़न की घटनाओं पर धीरे-धीरे मुखर होने लगी और समाज के लोग भी इस संगठन से जुड़ने लगे. इसी क्रम में 2017 में बड़ा विवाद हो गया.
2017 में एक ऐसा मौका आया जब सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में जातीय हिंसा भड़क गई. मई महीने की शुरुआत में दलितों और राजपूतों के बीच हिंसक संघर्ष देखने को मिला. दलितों के घर जलाए जाने की खबरें आईं और राजपूत वर्ग से एक युवक की मौत भी हुई. ये वो वक्त था जब प्रदेश में सरकार बदले दो महीने भी नहीं गुजरे थे और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के दावे कर रहे थे.
चंद्रशेखर पर शब्बीरपुर में हिंसा भड़काने के आरोप लगे. पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया. 300 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया, कई लोगों को जेल भेजा गया. भीम आर्मी ने इस मामले को दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन के जरिए उठाया. चंद्रशेखर ने इस घटना के लिए सीधे आरएसएस और बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया और आरोप लगाया कि वे बाबा साहेब के संविधान की जगह हिंदू संविधान लागू करना चाहते हैं. लेकिन वो खुद इस मामले से बच नहीं सके.
पुलिस ने चंद्रशेखर पर लोगों को उकसाने और भड़काउ भाषण देने के आरोप लगाए. चंद्रशेखर को करीब 16 महीने सहारनपुर की जेल में रहना पड़ा. उनपर रासुका भी लगाई गई. 2024 के चुनावी हलफनामे के मुताबिक, चंद्रशेखर के खिलाफ कुल 39 मामले लंबित हैं, अभी तक किसी भी मामले में उनकी दोषसिद्धी नहीं हुई है. लेकिन इसी शब्बीरपुर की घटना से चंद्रशेखर की पहचान राष्ट्रीय फलक पर होने लगी. एक पहचान उन्हें सहारनपुर के घड़कौली गांव से भी मिली. ये वो गांव है जिसमें दाखिल होने से पहले ‘द ग्रेट चमार डॉ भीमराव अम्बेडकर ग्राम घड़कौली आपका स्वागत करता है’ का बोर्ड लगा है. ये गांव वो है जहां चंद्रशेखर का जन्म हुआ था. इस बोर्ड को लेकर अप्रैल 2016 में विवाद हुआ था. तब भी भीम आर्मी चर्चा के केंद्र में आया था. चंद्रशेखर की इस बोर्ड के साथ तस्वीर ने भी काफी चर्चा बटोरी थी.
कैसे बनी भीम आर्मी
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की बेहट तहसील में एक कस्बा है छुटमलपुर. ये कस्बा सहारनपुर से देहरादून जाने वाली सड़क पर पड़ता है. यहां चंद्रशेखर का घर है. 3 दिसंबर 1986 को चंद्रशेखर का जन्म तो छुटमलपुर के पास धड़कौली गांव में हुआ था लेकिन उनका जीवन यहीं गुजरा और गुजरता है. पिता गोर्धन दास एक प्राइमरी स्कूल के टीचर थे और मां गृहिणी. चंद्रशेखर की शादी हो चुकी है और उनकी पत्नी का नाम वंदना कुमारी है जो एक गृहिणी हैं. चंद्रशेखर का एक बेटा है जिसका नाम युग है. छुटमलपुर में चंद्रशेखर का जो घर है, उसके गेट पर शुभ लाभ नहीं, बल्कि भीम आर्मी लिखा है. इस भीम आर्मी के वजूद में आने का कारण उनके पिता भी हैं.
चंद्रशेखर अपने अलग-अलग इंटरव्यू में अपने पिता की मौत का किस्सा बताते हैं. साल 2012 में उनके पिता को कैंसर हो गया था. सीमित संसाधनों वाले चंद्रशेखर अपने पिता को दिल्ली एम्स जैसे बड़े अस्पताल में इलाज कराने के लिए प्रयासरत रहे लेकिन वो इसमें कामयाब न हो सके. फिर देहरादून में इलाज कराया मगर वो बच न सके. 11 जनवरी 2013 को चंद्रशेखर के पिता ने देहरादून में दम तोड़ दिया. चंद्रशेखर कहते हैं कि बीमारी के दौरान मेरे पिता कहते थे कि आज भी देश में लाखों लोग भूखे सोते हैं, लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें सही इलाज नहीं मिलता वो अस्पताल के बाहर दम तोड़ देते हैं. आखिरी वक्त में पिता की कही गई ये बातें चंद्रशेखर के दिल में बैठ गईं और उन्होंने समाज के लिए काम करने का बीड़ा उठा लिया. ये वो वक्त था जब चंद्रशेखर ने कुछ वक्त पहले ही यानी 2012 में देहरादून के डीएवी कॉलेज से अपनी एलएलबी की पढ़ाई पूरी की थी. ये कॉलेज अपनी छात्र राजनीति के लिए जाना जाता है. वहां से निकले चंद्रशेकर 2024 आते-आते एक राजनेता बन गए हैं.
जेल से निकलकर बढ़ गया चंद्रशेखर का दायरा
चंद्रशेखर की चुनावी राजनीति की आधारशिला तब रखी गई थी जब नवंबर 2018 में वो जेल से छूटकर आए. जेल से आकर चंद्रशेखर ने अपना मिशन ही बदल दिया. उनका दायरा सहारनपुर से निकलकर आगे बढ़ गया. वो अन्य इलाकों में भी दलित समाज की आवाज उठाने लगे. सिर्फ इतना ही नहीं, चंद्रशेखर ने दलित वर्ग के साथ अन्य शोषित, पीड़ित वर्ग की आवाज भी उठाना शुरू कर दी. किसानों के साथ खड़े होने लगे. राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाले आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे. 2019 में सीएए-एनआरसी के मुद्दे ने जोर पकड़ा तो चंद्रशेखर उसमें भी शामिल हो गए और मुस्लिम समाज में अपनी पैठ बनाई. हाथरस में दलित लड़की के साथ अन्याय हुआ तो चंद्रशेखर खुद वहां पहुंच गए. मुखर होकर शासन प्रशासन से टकराने लगे.
चंद्रशेखर वैचारिक तौर पर दबे-कुचले समाज के उत्थान की बात करते हैं और उनके शब्दों में हमेशा संविधाव व बाबा साहेब का जिक्र रहता है. लेकिन उनके तेवर पेरियार जैसे आक्रामक भी होते हैं. वो पेरियार जिन्होंने मंदिरों में दलितों की एंट्री के लिए ‘वैकोम सत्याग्रह’ किया, सेल्फ रेस्पेक्ट मूवमेंट चलाया. पेरियार जैसे विचारकों की एक लंबी फेहरिस्त जिन्हें भीम आर्मी और चंद्रशेखर अपना आदर्श मानते हैं.
इन नायकों को अपनी ‘गाइडिंग लाइट’ मानते हैं चंद्रशेखर
समाजिक मुद्दों की आवाज उठाते-उठाते चंद्रशेखर ने 15 मार्च 2020 को अपना राजनैतिक दल बनाने की घोषणा की. इस दल का नाम आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) रखा. कांशीराम यानी दलितों के मसीहा जिनकी बदौलत मायावती ने बहुजन समाज पार्टी की राजनीतिक विरासत पाई और यूपी की सत्ता पर राज किया. चंद्रशेखर ने भी मायावती की तरह मान्यवर कांशीराम को ही अपना राजनीतिक संरक्षक माना और उनकी जयंती पर पार्टी की स्थापना कर दलित समाज में ये संदेश भी दिया. चंद्रशेखर भले ही कांशीराम के नाम के साथ अपने दल की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हों, लेकिन वो जिन नायकों के विचारों से प्रेरित हैं उनकी फेहरिस्त लंबी है.
आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) की वेबसाइट पर OUR GUIDING LIGHTS का एक कॉलम है जिसमें कई नाम हैं. इनमें सबसे पहले बाबा साहेब अंबडेकर हैं, उनके बाद गौतम बुद्ध, संत गुरु रविदास, महाकवि वाल्मीकि, संत कबीर दास, गुरू नानक देव, सम्राट अशोक, गुरू घासीदास, बिरसा मुंडा, राजमाता जिजाऊ, माता फातिमा शेख, सम्राट मिहिर भोज, पेरियार रामास्वामी, झलकारी बाई, छत्रपति शिवाजी महाराज, टीपू सुल्तान, शहीद भगत सिंह, महात्मा ज्योतिबा फूले, चंद्रशेखर आज़ाद, राष्ट्रमाता सावित्री बाई फूले, सर छोटूराम, छत्रपति शाहूजी महाराज, पेरियार ई.वी. रामासामी, नारायण गुरु, संत गाडगे महाराज, शहीद ऊधम सिंह, कार्पूरी ठाकुर, बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा, मान्यवर दीनाभाना वाल्मीकि, फूलन देवी, चौधरी चरण सिंह, डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, मान्यवर कांशीराम का नाम है.
यानी आजाद समाज पार्टी का मिशन भले ही बहुजन को देश का शासक बनाना हो, लेकिन वो समावेशी विचारों के साथ इस मुकाम तक पहुंचना चाहते हैं. उनके प्रेरकों में बाबा साहेब हैं तो पेरियार भी हैं, वाल्मीकि हैं तो छत्रपति शिवाजी भी हैं, टीपू सुल्तान हैं तो ए.पी.जे अब्दुल कलाम भी हैं, भगत सिंह हैं तो चंद्रशेखर आजाद भी हैं, ज्योतिबा फुले हैं तो चौधरी चरण सिंह भी हैं.
विशेषज्ञ भी मानते हैं कि बहुजन की राजनीति से कुछ सीटों या इलाकों में जीत दर्ज की जा सकती है लेकिन पार्टियों का दायरा प्रदेशव्यापी या देशव्यापी बनाने के लिए इंक्लूसिव थॉट के साथ ही आगे बढ़ना पड़ेगा. यूपी की राजनीति पर गहरी समझ रखने वाले कानपुर के प्रोफेसर ए.के वर्मा चंद्रशेखर में भविष्य का एक दलित नेता देखते हैं, साथ ही वो आकाश आनंद को चंद्रशेखर के लिए एक दमदार राइवल मानते हैं.
प्रोफेसर वर्मा का कहना है मायावती ने बामसेफ की तर्ज पर जो राजनीति की वो उन्हें ज्यादा दिनों तक सत्ता नहीं दिला पाई. इसीलिए मायावती को दलित समाज के साथ ब्राह्मणों, ठाकुरों, मुस्लिमों को जोड़ना पड़ा जिसके दम पर उन्हें 2007 में यूपी की सत्ता मिली. यानी मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के जरिए ही सत्ता पाई. लेकिन अब मायावती का वोट छिटक रहा है, क्योंकि वो एक्टिव नहीं हैं. उनके भतीजे आकाश एक्टिव हुए तो उन्हें मायावती ने पीछे खींच लिया. प्रोफेसर वर्मा का कहना है कि आकाश के बयानों में वही राजनीति झलक रही थी जो सिर्फ बहुजन तक सीमित रहती है और मौजूदा वक्त में इस राजनीति का भविष्य नहीं है, इसीलिए मायावती ने उन्हें पीछे खींचा. दूसरी तरफ, चंद्रशेखर सर्वजन की राजनीति की दिशा में हैं लेकिन उन्हें लंबा रास्त तय करना है क्योंकि उनके पीछे किसी मूवमेंट का समर्थन नहीं है.
चंद्रशेखर खुद भी इसी मिशन का आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं. वो बिहार से लेकर राजस्थान तक गठजोड़ कर चुनाव लड़ चुके हैं. यूपी के अन्य हिस्सों में भी वो उम्मीदवार उतार चुके हैं. 2022 में खुद गोरखपुर जाकर सीएम योगी के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे. अब उत्तर प्रदेश की जिस नगीना लोकसभा सीट से उन्हें जीत मिली है, वहां भले ही उन्हें मुख्य रूप से दलितों और मुस्लिमों का वोट पाकर विजय प्राप्त हुई हो, लेकिन अपने बयानों में चंद्रशेखर जाट, गुर्जर, सैनी, सामान्य वर्ग का भी जिक्र कर रहे हैं. इसके अलावा वो कह रहे हैं कि देश में अगर कहीं भी, किसी भी जाति या धर्म के लोगों के खिलाफ जुल्म होगा तो वो आवाज उठाएंगे. जाति धर्म से आगे बढ़कर चंद्रशेखर ये तक कह रहे हैं कि वो पुलिस के लिए लड़ेंगे, पत्रकारों के लिए लड़ेंगे, हर तरह के कमर्चारियों के लिए लड़ेंगे, बौद्धों, ईसाइयों की आवाज भी उठाएंगे. वो कहते हैं कि अब कहीं मॉब लिंचिंग नहीं होगी, घोड़ी चढ़ने पर कोई मारा नहीं जाएगा, पशु के नाम पर कोई मारा नहीं जाएगा, और जहां भी जुल्म होगा वहां चंद्रशेखर खड़ा नजर आएगा.
यानी चंद्रशेखर का मिशन भले ही बहुजन को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाना हो लेकिन वो सर्वजन को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं. इसके लिए वो संविधान की बातें बोलकर बाबा साहेब के सहारे आगे बढ़ रहे हैं. वो जनता के मुद्दों के लिए आक्रामक रुख अपनाने का दंभ भरते हैं. संघर्ष को अपने जीवन का हिस्सा मानते हैं, और शासन-प्रशासन से खुलकर टकराने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं. वो खुद पर मायावती का आशीर्वाद मानते हैं और उनके विकल्प के रूप में भी खुद को पेश करते हैं. नगीना सीट के नतीजों में ऐसा देखने को भी मिला. यहां से बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को महज 13272 वोट मिले, जबकि ये सीट आरक्षित है, वहीं चंद्रशेखर को 5,12,552 वोट मिले. ये नतीजे भी दर्शातें हैं कि जहां चंद्रशेखर हैं वहां बसपा के अस्तित्व पर संकट के बादल हैं. नीला झंडा हाथी निशान की जगह अब नीला झंडा केतली निशान सियासी फिजाओं में गूंज रहा है.