ब्रेकिंग
सोलापुर में वंदे भारत के बाद अब मुंबई-चेन्नई एक्सप्रेस… पत्थरबाजों ने बनाया निशाना, यात्रियों में दह... हमारे पास सर्जिकल स्ट्राइक का साहस, लेकिन बातचीत का नहीं… मणिशंकर अय्यर बोले- पाकिस्तान खुद आतंकवाद ... राम मंदिर के लिए अभी तक कितना आया चढ़ावा, किसने दिया सबसे ज्यादा दान? छटा कोहरा पर बादलों का ‘पहरा’…दिल्ली-NCR में आज भी बारिश का अलर्ट, पहाड़ों पर कैसा है मौसम? 16 मौतें-56000 एकड़ जमीन खाक, कैलिफोर्निया में आग का तांडव जारी, ऐसे हैं ताजा हालात कुंभ के बाद नागा साधु कहां गायब हो जाते हैं, जानिए कैसी है इन संन्यासियों की रहस्यमयी दुनिया? असम में महिलाएं इंसान को बकरी बना देती हैं… CMO के रडार पर आने पर यूट्यूबर ने मांगी माफी जम्मू-कश्मीर बारामूला में आतंकवादियों के तीन मददगार गिरफ्तार, हथियारों का जखीरा बरामद पार्षद पुत्र के बर्थडे में शराब और शबाब का कॉकटेल, अचानक पहुंची पुलिस; फिर जो हुआ… सर्वे के दौरान हुए थे दंगे, अब कमेटी ही क्यों गिराने लगी मस्जिद की दीवार?

ओम बिरला सर्वसम्मति से लोकसभा के स्पीकर चुन लिए जाते अगर सरकार विपक्ष की एक बात मान लेती. ये बात क्या शर्त थी डिप्टी स्पीकर के पद की. परंपरा रही है कि सरकार अपने दल या गठबंधन के किसी सदस्य को स्पीकर के लिए नामित करती है और डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दे देती है.

बकौल राहुल गांधी – मोदी सरकार ने डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर चूंकि विपक्ष को कोई आश्वासन नहीं दिया, सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष में बात बिगड़ गई. जबकि सरकार का कहना था कि जब इस पद पर चुनाव होगा तो बात होगी, उससे पहले सशर्त समर्थन की बात सही नहीं है.

पहला – एक साल में तकरीबन 7 महीने सदन बैठती है. जब सदन की कार्यवाही जारी होती है तब एक-एक बैठक सात-सात घंटे तक चलती है. ऐसे में, एक शख्स के लिए – स्पीकर के लिए लगातार इतने घंटे तक सदन चलाना आसान नहीं होता.

यही सोचकर कि बतौर स्पीकर उसे कुछ और दायित्व भी निभाने होते हैं, डिप्टी स्पीकर जैसा पद वजूद में आया. लोकसभा स्पीकर की गैरमौजूदगी में डिप्टी स्पीकर ही पूरी तरह से स्पीकर की भूमिका निभाते हैं.

दूसरा – डिप्टी स्पीकर के पास ठीक वही शक्तियां होती हैं जो लोकसभा स्पीकर के पास होती हैं. जब डिप्टी स्पीकर आसन पर बैठते हैं तो वे कहीं से भी स्पीकर के जूनियर साथी (कनिष्ठ) के तौर पर काम नहीं करते बल्कि वह एक एक स्वतंत्र ईकाई के तौर पर अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं.

वह केवल और केवल सदन के प्रति जवाबदेह होते हैं. दिलचस्प बात ये है कि अगर किसी संसदीय समिति में डिप्टी स्पीकर को शामिल किया गया तो उसे सीधे समिति का चेयरमैन नियुक्त किया जाता है. केवल और केवल उसे एक सदस्य के तौर पर समिति में नहीं रखा जा सकता.

तीसरा – डिप्टी स्पीकर को जो एक चीज स्पीकर से अलग बनाती है, वह है सदन में उसकी खुद की भूमिका. स्पीकर सदन में हो रही चर्चा में बतौर भागीदार शामिल नहीं हो सकता पर जब स्पीकर सदन चला रहा हो तो डिप्टी स्पीकर न सिर्फ सदन में हो रही चर्चा में हिस्सा ले सकता है बल्कि वह अपने विचार भी सदन में रख सकता है.

साथ ही, अगर वह सभापति के आसन पर नहीं बैठा हुआ हो तो किसी विधेयक पर वोट भी कर सकता है. हां, अगर वह आसन पर है तो तब तक वोट नहीं करेगा जब तक किसी विधेयक पर मामला बराबरी का न हो जाए.

डिप्टी स्पीकर के हवाले से कुछ और बातें –

1. 2019 ही से खाली डिप्टी स्पीकर का पद

यह पद साल 2019 ही से खाली है. 17वीं लोकसभा के दौरान ऐसा पहली बार हुआ जब पूरे पांच साल तक लोकसभा बगैर डिप्टी स्पीकर ही के काम करती रही. इसको लेकर केन्द्र सरकार की दमभर आलोचना हुई.

कल, बुधवार को भी लोकसभा स्पीकर चुने जाने के बाद जब असद्दुदीन औवैसी ओम बिरला को बधाई और शुभकामना देने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने इशारों-इशारों में मोदी सरकार और स्पीकर पर तंज कस दिया. ओवैसी ने कहा – मुझे उम्मीद है इस दफा सरकार डिप्टी स्पीकर का चुनाव कर लोकसभा स्पीकर के बोझ को कुछ कम करेगी.

2. आजादी से पहले से डिप्टी स्पीकर का पद

1947 तक डिप्टी स्पीकर जैसी कोई शब्दावली नहीं थी. तब डिप्टी प्रेसिडेंट होता था. आजादी के बाद यही डिप्टी स्पीकर हो गया. डिप्टी स्पीकर का चुनाव लोकसभा स्पीकर ही की तरह सदन के सदस्य करते हैं. यहां सदन से मुराद लोकसभा से है, न की राज्यसभा से.

डिप्टी स्पीकर का मुख्य काम तब आता है जब स्पीकर किसी कारणवश अनुपस्थित हो या उनका पद रिक्त हो जाए. इस दौरान लोकसभा चलाने की पूरी जिम्मेदारी डिप्टी स्पीकर पर आ जाती है.

3. चुनाव की प्रक्रिया और अनिवार्यता

संविधान के अनुच्छेद 93 के तहत डिप्टी स्पीकर का चुनाव होता है. लोकसभा के डिप्टी स्पीकर चुनने की प्रक्रिया भी कमोबेश स्पीकर ही की तरह है. बस अंतर ये है कि डिप्टी स्पीकर के चुनाव के लिए तारीख स्पीकर तय करता है जबकि स्पीकर के मामले में यह अख्तियार प्रोटेम स्पीकर और नई सरकार के पास होता है.

डिप्टी स्पीकर को भी लोकसभा स्पीकर की तरह दोबारा से चुना जा सकता है. यानी उसे एक के बाद अगला कार्यकाल भी मिल सकता है. एक बार डिप्टी स्पीकर चुन लिए जाने के बाद उसका कार्यकाल लोकसभा भंग होने तक होता है. डिप्टी स्पीकर चुनने को लेकर संविधान में किसी तरह की कोई अनिवार्यता नहीं है.

सोलापुर में वंदे भारत के बाद अब मुंबई-चेन्नई एक्सप्रेस… पत्थरबाजों ने बनाया निशाना, यात्रियों में दहशत     |     हमारे पास सर्जिकल स्ट्राइक का साहस, लेकिन बातचीत का नहीं… मणिशंकर अय्यर बोले- पाकिस्तान खुद आतंकवाद का शिकार     |     राम मंदिर के लिए अभी तक कितना आया चढ़ावा, किसने दिया सबसे ज्यादा दान?     |     छटा कोहरा पर बादलों का ‘पहरा’…दिल्ली-NCR में आज भी बारिश का अलर्ट, पहाड़ों पर कैसा है मौसम?     |     16 मौतें-56000 एकड़ जमीन खाक, कैलिफोर्निया में आग का तांडव जारी, ऐसे हैं ताजा हालात     |     कुंभ के बाद नागा साधु कहां गायब हो जाते हैं, जानिए कैसी है इन संन्यासियों की रहस्यमयी दुनिया?     |     असम में महिलाएं इंसान को बकरी बना देती हैं… CMO के रडार पर आने पर यूट्यूबर ने मांगी माफी     |     जम्मू-कश्मीर बारामूला में आतंकवादियों के तीन मददगार गिरफ्तार, हथियारों का जखीरा बरामद     |     पार्षद पुत्र के बर्थडे में शराब और शबाब का कॉकटेल, अचानक पहुंची पुलिस; फिर जो हुआ…     |     सर्वे के दौरान हुए थे दंगे, अब कमेटी ही क्यों गिराने लगी मस्जिद की दीवार?     |