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बांग्लादेश हिंसा: पुलिस ने बढ़ाया कर्फ्यू, शूट एट साइट के ऑर्डर, अब तक 150 की मौत

बांग्लादेश इस समय हिंसा की आग में धधक रहा है. देश में छात्रों का हिंसक प्रदर्शन जारी है. इस पर काबू पाने के लिए शेख हसीना की सरकार ने प्रदर्शनकारियों और उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया है. छात्र सरकारी नौकरियों में आरक्षण खत्म करने की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं. इस प्रदर्शन में अब तक 150 लोगों की मौत हो गई है जबकि 2500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं.

हालात को कंट्रोल करने के लिए सरकार ने देश में देशव्यापी कर्फ्यू को आज दोपहर तीन बजे तक के लिए बढ़ा दिया है. पहले यह सुबह 10 बजे तक के लिए तय था. हिंसा के चलते देश के कई शहरों में मोबाइल और इंटरनेट की सेवाओं पर पाबंदी लगा दी गई है. हिंसा के मद्देनजर देश से पलायन भी होने लगा है. यहां से भारी संख्या में लोग अलग-अलग देशों में जा रहे हैं.

बांग्लादेश में बद से बदतर हो रहे हालात

हालात लगातार बद से बदतर होते जा रहे हैं. हिंसा की वजह से प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपना विदेश दौरा भी रद्द कर दिया है. वो आज यानी रविवार को स्पेन और ब्राजील के दौरे पर जाने वाली थीं. दरअसल, बांग्लादेश में छात्र स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चे को 30 फीसदी आरक्षण दिए जाने का विरोध कर रहे हैं. छात्रों की मांग है कि उनके आरक्षण को 56 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किया जाए.

आज इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

रविवार को इस मामले में बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी है. सुप्रीम कोर्ट रविवार को इस बात पर फैसला सुनाने वाला है कि सिविल सेवा नौकरी कोटा खत्म किया जाए या नहीं, जिसके विरोध में हिंसा और झड़पें हुईं. छह साल पहले (2018) भी आरक्षण को लेकर इसी तरह का प्रदर्शन हुआ था. इसके बाद सरकार ने कोटा सिस्टम पर रोक लगा दी थी.

इस पर मुक्ति संग्राम में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाई कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि 2018 से पहले जैसे आरक्षण मिलता था, उसे फिर से उसी तरह लागू किया जाए. हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ बांग्लादेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. इस पर अगले महीने सुनवाई होगी.

क्यों हो रहा विरोध?

ढाका और अन्य शहरों में विश्वविद्यालय के छात्र 1971 में पाकिस्तान से देश की आजादी के लिए लड़ने वाले युद्ध नायकों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत तक का आरक्षण देने की व्यवस्था के खिलाफ हैं. उनका तर्क है कि यह व्यवस्था भेदभावपूर्ण है और इसे योग्यता आधारित प्रणाली में तब्दील किया जाए. प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि यह प्रणाली भेदभावपूर्ण है और प्रधानमंत्री शेख हसीना के समर्थकों को लाभ पहुंचा रही है.

क्या है छात्रों की मांग?

बांग्लादेश में स्वतंत्रता सेनानी यानी मुक्ति योद्धा के बच्चों को 30 फीसदी आरक्षण दिया जाता है जिसे घटाकर 10 फीसदी करने की मांग की जा रही है. योग्य उम्मीदवार नहीं मिले तो मेरिट लिस्ट से भर्ती हो. सभी उम्मीदवारों के लिए एक समान परीक्षा होनी चाहिए. सभी उम्मीदवारों के लिए उम्र सीमा एक समान हो. एक बार से ज्यादा आरक्षण का इस्तेमाल न किया जाए.

सरकारी नौकरियों में 56% आरक्षण

बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में कुल 56 फीसदी आरक्षण है. इनमें से 30 प्रतिशत 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए, 10 फीसदी महिलाओं, 10 फीसदी पिछले इलाकों से आने वाले, 5 फीसदी जातीय अल्पसंख्यक समूहों और 1 फीसदी आरक्षण दिव्यांगों के लिए है. इसी के खिलाफ देश में हिंसक प्रदर्शन हो रहा है.

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