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हरियाणा में दो मुस्लिमों पर खेला दांव, फिर भी BJP के लिए क्यों मुश्किल है मेवात की जंग?

हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने मंगलवार को 21 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी कर दी है. बीजेपी ने एक बार फिर से दो मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव खेला है. फिरोजपुर झिरका से नसीम अहमद और पुन्हाना से एजाज खान को टिकट दिया है. नूंह सीट से पिछली बार चुनाव लड़ने वाले जाकिर हुसैन की जगह संजय सिंह को उम्मीदवार बनाया है. मुस्लिम बहुल मेवात इलाके की तीन विधानसभा सीटों में दो पर मुस्लिम और एक पर हिंदू कैंडिडेट को उतारकर बीजेपी ने राजनीतिक गणित बैठाने की कोशिश की है, लेकिन फिर भी ‘कमल’ खिलाना आसान नहीं है.

हरियाणा का मेवात इलाका मुस्लिम बहुल माना जाता है, जहां पर 70 में से 80 फीसदी मुस्लिम आबादी है. मेवात का केंद्र नूंह जिला है, जहां पर तीन विधानसभा सीटें आती हैं. यह नूंह, पुन्हाना और फिरोजपुर झिरका विधानसभा सीटें हैं. इन तीनों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है और मुस्लिम विधायक हैं. कांग्रेस ने उन्हीं तीनों चेहरों को फिर से उतारा है. वहीं, 2019 में नूंह सीट पर जाहिर हुसैन तो फिरोजपुर-झिरका सीट पर नसीम अहमद को उतारने का दांव कामयाब नहीं रहा, जिसके चलते बीजेपी इस बार अपनी रणनीति में बदलाव कर चुनावी मैदान में उतरी है.

नया मुस्लिम चेहरा उतारा

बीजेपी ने नूंह विधानसभा सीट पर मुस्लिम के बजाय संजय सिंह को टिकट दिया है, जो सोहना से पार्टी विधायक हैं और राज्य में मंत्री हैं. नूंह सीट पर भले ही 2019 में चुनाव लड़ने वाले जाहिर हुसैन पर भरोसा न किया हो, लेकिन फिरोजपुर झिरका सीट पर फिर से नसीम अहमद पर ही दांव खेला है तो पुन्हाना सीट पर एजाज खान के रूप में नए मुस्लिम चेहरे को उतारा है. पिछले चुनाव में पुन्हाना सीट पर बीजेपी ने हिंदू कैंडिडेट उतारा था, लेकिन इस बार मुस्लिम चेहरे को उतारकर सियासी बिसात बिछाई है.

आसान नहीं जीत की राह

मेवात क्षेत्र की तीनों विधानसभा सीटों पर आजतक न बीजेपी जीती है और न ही कोई हिंदू समुदाय से विधायक बन सका है. इन तीनों ही विधानसभा सीटों पर मुस्लिम विधायक ही अभी तक चुने जाते रहे हैं, जिसमें कभी कांग्रेस से तो कई इनेलो ने कब्जा जमाया. 1967 में हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद से मेवात में यही ट्रेंड रहा है. इसलिए कांग्रेस से लेकर इनेलो, जेजेपी और बीजेपी सहित सभी पार्टियां मुस्लिम कैंडिडेट पर दांव खेलती रही हैं. बीजेपी ने इस बार मेवात की सीटों पर दो मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, लेकिन उसके बाद भी जीत की राह आसान नहीं दिख रही है.

नूंह सीट: आफताब बनाम संजय सिंह

नूंह विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक आफताब अहमद को प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी ने राज्य मंत्री संजय सिंह को उतारकर बड़ा सियासी प्रयोग किया. संजय सिंह सोहना से विधायक हैं, लेकिन पार्टी ने इस बार उन्हें नूंह सीट से टिकट दिया है. 2019 में नूंह सीट से चुनाव लड़ने वाले पूर्व विधायक जाकिर हुसैन के बेटे ताहिर हुसैन को इनेलो ने प्रत्याशी बना दिया है. इस तरह नूंह सीट का मुकाबला काफी रोचक हो गया है, लेकिन क्षत्रिय समाज से आने वाले संजय सिंह की छवि हिंदूवादी है, जिन्हें उतारकर बीजेपी ने आफताब को भी घेरने की कोशिश की है.

पहली बार चुनाव जीता था

1967 में नूंह से पहली बार रहीम खान ने चुनाव जीता था और वह एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़े थे. नूंह सीट पर अब तक 15 बार चुनाव हुए हैं, जिसमें से छह बार कांग्रेस जीती है और दो बार इनेलो के विधायक चुने गए हैं. पांच बार निर्दलीय और दो बार अन्य दलों को जीत मिली है. 2005 में हबीबुर्रहमान निर्दलीय जीते तो 2009 में आफताब अहमद कांग्रेस से विधायक बने. इसके बाद 2014 में जाकिर हुसैन इनेलो से विधायक चुने गए थे तो 2019 में आफताब कांग्रेस से फिर जीतने में सफल रहे.

राज्यमंत्री संजय सिंह

बीजेपी ने नूंह सीट से राज्यमंत्री संजय सिंह को टिकट दिया है, जो अभी तक गुरुग्राम में आने वाली सोहना सीट से विधायक थे. सोहना का कुछ हिस्सा नूंह से जुड़ा हुआ है. संजय सिंह खुलकर हिंदू कार्ड खेलते रहे हैं. ऐसे में बीजेपी ने मुस्लिम बहुल नूंह में बड़ा प्रयोग किया है, लेकिन जाहिर हुसैन के बेटे की बगावत बीजेपी के लिए मंहगी पड़ सकती है. हालांकि, ताहिर के निर्दलीय उतरने से मुस्लिम वोटों में बिखराव भी खतरा है, जो कांग्रेस की टेंशन बढ़ा सकता है. कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होता है तो फिर कमल खिलना मुश्किल है.

फिरोजपुर-झिरका: मुस्लिम बनाम मुस्लिम

फिरोजपुर-झिरका सीट पर कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक ममन खान को प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी ने इस सीट पर दो बार के विधायक रहे नसीम अहमद को फिर से कैंडिडेट बनाया है. जेजेपी से जान मोहम्मद ने चुनावी मैदान में ताल ठोक रखी है. 2019 में ममन खान 37,004 वोटों से जीत दर्ज कर विधायक बने थे. इस बार कांग्रेस और बीजेपी ने अपने-अपने पुराने चेहरों पर दांव खेलकर चुनावी मुकाबले को रोचक बना दिया है. 2009 और 2014 में नसीम अहमद ममन खान को मात देने में सफल रहे थे, लेकिन लड़ाई कांटे की रही थी. हालांकि, नसीम अहमद दोनों बार इनेलो के टिकट पर जीतने में सफल रहे हैं, लेकिन बीजेपी से चुनाव लड़ने का दांव कामयाब नहीं रहा.

नूंह दंगे के बाद बदला समीकरण

मुस्लिम बहुल फिरोजपुर-झिरका सीट बनने के बाद से 13 बार चुनाव हुए हैं. कांग्रेस ने इस सीट पर चार बार जीत दर्ज की है तो तीन बार इनेलो के विधायक चुने गए हैं. इसके अलावा पांच बार निर्दलीय या फिर अन्य पार्टी ने जीत दर्ज की है. नूंह दंगे के बाद फिरोजपुर झिरका सीट का समीकरण बदल गया है. बीजेपी के लिए यह सीट काफी मुश्किल भरी हो गई है, क्योंकि ममन खान के ऊपर आरोप लगने के बाद मुस्लिमों के बीच उनकी पकड़ मजबूत हुई है. ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट आसान नहीं है.

पुन्हाना सीट पर चचेरे भाई आमने-सामने

मेवात की तीसरी विधानसभा सीट पुन्हाना है, जहां से कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक मोहम्मद इलियास को उतारा है. बीजेपी ने इस बार पुन्हाना सीट पर मुस्लिम दांव खेला है और एजाज खान को प्रत्याशी बनाया है. मो. इलियास और एजाज खान चचेरे भाई हैं. इस तरह पुन्हाना सीट पर चचेरे भाई आमने-सामने मैदान में उतरे हैं. एजाज अहमद पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं जबकि इलियास लगातार चुनाव लड़ रहे हैं. परिसीमन के बाद 2009 में यह सीट सियासी वजूद में आई और इनेलो के टिकट पर पहली बार इलियास विधायक बने. इसके बाद 2014 में रहीस खान निर्दलीय विधायक चुने गए, लेकिन 2019 में इलियास दोबारा से चुनाव जीतने में सफल रहे.

बीजेपी के लिए कमल खिलाना आसान नहीं

मेवात के इलाके की तीन विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, जिसके चलते मुस्लिम ही जीतते रहे हैं. मुस्लिम वोटों के सियासी समीकरण के चलते बीजेपी के लिए हमेशा से यह सीटें मुश्किल बनी रही हैं. 2019 में बीजेपी ने मेवात के तीन में से दो सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे, लेकिन जीत दर्ज नहीं कर सकी. 2024 के लोकसभा में भी मेवात इलाके की सीटों पर बीजेपी को कांग्रेस की तुलना में कम वोट मिले थे. इससे पहले 2019 और 2014 लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी मेवात इलाके में पीछे रह गई थी. 2023 में नूंह इलाके में हुई हिंसा के बाद मेवात के सियासी समीकरण बदल गए हैं. मुस्लिम समुदाय बीजेपी से खास नाराज माने जा रहे हैं, जिस वजह से कांग्रेस के लिए मुफीद और बीजेपी के लिए मेवात इलाके में कमल खिलाना आसान नहीं है.

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