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दिल्ली चुनाव के बीच PM मोदी का मास्टरस्ट्रोक! आठवें वेतन आयोग के दांव से कितनी सीटों पर पड़ेगा असर?

दिल्ली विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच केंद्र की मोदी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को साधने के लिए बड़ा दांव चला है. केंद्र सरकार ने गुरुवार को आठवें वेतन आयोग के गठन को अपनी मंजूरी दे दी. नए वेतन आयोग के गठन और उसकी सिफारिशों के आने के बाद सरकारी कर्मचारियों तथा पेशनरों को वेतन में सीधा लाभ मिलेगा. इसे दिल्ली चुनाव के लिए पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है, क्योंकि दिल्ली में लाखों की संख्या में सरकारी कर्मचारी हैं और यहां की सियासत में अहम भूमिका भी तय करते हैं?

देश में हर 10 साल पर नया वेतन आयोग लागू किया जाता है. इससे पहले सातवां वेतन आयोग 2016 में लागू किया गया था और इसका कार्यकाल 2026 में खत्म हो रहा है. इस वजह से माना जा रहा है कि आठवां वेतन आयोग 2026 से लागू किया जा सकता है. केंद्रीय वेतन आयोग का गठन समय-समय पर केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन ढांचे और भत्तों में बदलाव की समीक्षा और सिफारिशों के लिए किया जाता है. इसी मद्देनजर मोदी सरकार ने कल गुरुवार को आठवें वेतन आयोग के गठन की मंजूरी देकर सरकारी कर्मचारियों को बड़ा तोहफा दिया है.

8वें वेतन आयोग को हरी झंडी

केंद्रीय मंत्रिमंडल की गुरुवार को हुई बैठक में आठवें वेतन आयोग के गठन पर मुहर लग गई. कैबिनेट की बैठक में लिए फैसले के बाद केंद्रीय सूचना एंव प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि आठवें वेतन आयोग के गठन का फैसला लिया गया है. यह फैसला सरकारी कर्मचारियों के लिए लाभ सुनिश्चित करने के मद्देनजर लिया गया है. नया आयोग अपनी रिपोर्ट अगले साल 2026 तक सौंपेगा.

फिर पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट कर कहा कि हम सभी को सभी सरकारी कर्मचारियों के प्रयासों पर गर्व है, जो विकसित भारत के निर्माण के लिए काम करते हैं. आठवें वेतन आयोग पर मंत्रिमंडल के फैसले से जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा और खपत को बढ़ावा मिलेगा.

PM मोदी का एक तीर से कई दांव

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो केंद्र की मोदी सरकार ने बीजेपी के लिए काफी अहम माने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आठवें वेतन आयोग को मंजूरी देकर बड़ा सियासी दांव चला है. केंद्रीय कर्मचारी को इस घोषणा का लंबे समय से इंतजार था. केंद्रीय कर्मचारी संगठन लंबे समय से 8वें वेतन आयोग के गठन की मांग कर रहे थे. पिछले साल कई बार संसद सत्र के दौरान इस संबंध में सवाल भी पूछे गए थे. केंद्र सरकार ने उस समय साफ शब्दों में कहा था कि अभी आठवें वेतन आयोग के गठन का कोई भी प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है.

मोदी सरकार ने अब अचानक आठवें वेतन आयोग की घोषणा कर दी है, जिसे दिल्ली विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. दिल्ली चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार यह फैसला बीजेपी के लिए सियासी संजीवनी साबित हो सकता है. दिल्ली में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी और पेंशनर रहते हैं. सरकार के इस फैसले से सरकारी कर्मचारी भी गदगद हैं, क्योंकि उनके वेतन में करीब डेढ़ गुने की बढ़ोतरी हो सकती है. मोदी सरकार की इस घोषणा को बीजेपी के लिए चुनाव में निश्चित रूप से वोट में बदलने की उम्मीद मानी जा रही है.

दिल्ली की सियासत पर क्या पड़ेगा असर

देश की राजधानी में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी रहते हैं. नई दिल्ली नगर निगम, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), पुलिस और डिफेंस के साथ ही लॉ एंड ऑर्डर सहित कई ऐसे डिपार्टमेंट्स हैं, जो केंद्र सरकार के अंतर्गत आते हैं. इसके अलावा केंद्र के अलग-अलग मंत्रालय में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी नौकरी करते हैं और दिल्ली में ही रहते हैं. साथ ही दिल्ली सरकार के अधीन काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को भी केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के बराबर सैलरी मिलती है, जिससे दिल्ली में केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाले कर्मचारियों की झोली खजाने से भर जाएगी.

आठवां वेतन आयोग लागू होने के साथ ही केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन में बड़ा इजाफा देखने को मिल सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आठवें वेतन आयोग में मिनिमम बेसिक सैलरी बढ़ाकर 34,650 रुपये की जा सकती है, जबकि सातवें वेतन आयोग में यह 18000 रुपये है. इसी तरह से न्यूनतम पेंशन 9,000 से बढ़कर 17,280 रुपये तक हो सकती है.

दिल्ली की कितनी सीटों पर पड़ेगा असर

दिल्ली में करीब 9 लाख से अधिक सरकारी कर्मचारी और पेंशनधारक रहते हैं, इनमें पांच लाख सरकारी कर्मचारी हैं तो पेंशनर की संख्या भी पांच लाख बताई जा रही है. अकेले दिल्ली में रक्षा और दिल्ली सरकार के कर्मचारियों सहित लगभग 4 लाख ऐसे कर्मचारी है, जिन्हें सीधे तौर पर इसका फायदा मिलेगा. इस तरह दिल्ली की सियासत में सरकारी कर्मचारी और पेंशनधारी काफी अहम माने जाते हैं, जो दिल्ली की सत्ता की दशा और दिशा तय करते हैं.

राजधानी की करीब 20 विधानसभा सीटों पर सरकारी कर्मचारी और पेंशनर रहते हैं. नई दिल्ली, दिल्ली कैंट, आरके पुरम, मुखर्जी नगर, कस्तूरबा नगर, जंगपुरा, कमला नगर, आंबेडकर नगर, साकेत, मालवीय नगर, कालकाजी, खानपुर, वजीरपुर, पटपड़गंज, राजेंद्र नगर और पटेल नगर जैसी सीटों पर सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों का प्रभाव बताया जा रहा है.

दिल्ली में सबसे अधिक कर्मचारी और पेंशनर

देश में सबसे अधिक कर्मचारी और पेंशनर, दिल्ली के इलाके में रहते हैं. आठवें वेतन आयोग की घोषणा कर बीजेपी ने दिल्ली चुनाव में एक बड़ा दांव चल दिया है. सरकारी कर्मचारी वाली ज्यादातर सीटों पर आम आदमी पार्टी का ही कब्जा है. उदाहरण के तौर पर 2024 के लोकसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न को देखें तो नई दिल्ली लोकसभा सीट के तहत 10 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से पांच सीटों पर सरकारी कर्मचारी बड़ी संख्या में रहते हैं. बीजेपी ने नई दिल्ली लोकसभा सीट जरूर जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन सरकारी कर्मचारियों वाली नई दिल्ली, दिल्ली कैंट और आरके पुरम जैसी अहम सीट पर आम आदमी पार्टी से पिछड़ गई थी.

बीजेपी ने इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति बदली है. बीजेपी ने दिल्ली के मतदाताओं को सिर्फ एक प्लेटफार्म से नहीं लुभा रही है बल्कि इसके लिए अलग-अलग रणनीति भी तैयार की है. विभिन्न वर्गों के बीच कौन से केंद्रीय मंत्री और बीजेपी शासित राज्य के मुख्यमंत्री पहुंचेंगे, इसका अलग से खाका तैयार किया गया है. हर विधानसभा क्षेत्र में किसी बड़े नेता के नेतृत्व में एक समूह तैयार किया गया. इसी तर्ज पर बीजेपी ने दिल्ली के रह रहे केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनधारकों को साधने के लिए रणनीति बनाई है. मोदी सरकार के द्वारा आठवें वेतन आयोग की घोषणा, इसी दिशा में एक कदम बताया जा रहा है.

बीजेपी क्या बदल पाएगी दिल्ली सत्ता का गेम

दिल्ली की सियासत में बीजेपी सिर्फ एक बार ही सत्ता पर विराजमान हो सकी है और पिछले 27 साल से वनवास झेल रही है. बीजेपी सिर्फ 1993 में ही दिल्ली को फतह करने में कामयाब रही थी. 1998 में उसके हाथों से सत्ता चली गई तो फिर वापसी नहीं हो सकी. पहले 15 साल तक शीला दीक्षित की अगुवाई में कांग्रेस के सामने खड़ी नहीं हो सकी. शीला दीक्षित के बाद से 11 साल से आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के आगे पस्त नजर आई है. बीजेपी 2025 में होने वाले विधानसभा में हर हाल में दिल्ली में कमल खिलाना चाहती है, जिसके लिए पूरी ताकत झोंक रखी है.

मोदी-शाह की जोड़ी 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी के लिए जीत हासिल करने की गांरटी बन गई थी. ऐसे में देखते ही देखते देश में एक के बाद एक राज्यों में बीजेपी अपनी जीत का परचम फहराती रही. उत्तर से दक्षिण और पश्चिम से पूर्वोत्तर राज्यों तक बीजेपी की जीत का डंका बजने लगा. बीजेपी की जीत का श्रेय नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को दिया गया.

लेकिन केंद्र सरकार की नाक के नीचे दिल्ली में 2015 और 2020 में दो बार चुनाव हुए. इन दोनों ही चुनावों में मोदी-शाह की जोड़ी केजरीवाल के सामने अपना असर नहीं दिखा सकी. ऐसे में बीजेपी के लिए दिल्ली का चुनाव अब नाक का सवाल बन गया है, जिसे अब हरहाल में जीतना चाहती है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी 8वें वेतन आयोग के जरिए दिल्ली की सियासी गेम बदल पाएगी की नहीं?

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