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बिहार के सियासी समीकरण में AIMIM की एंट्री! ओवैसी की पार्टी बना रही ‘हैदराबादी प्लान’

बिहार में विधानसभा चुनाव में अभी काफी वक्त है, लेकिन राजनीतिक दलों में चुनावी समीकरण सेट करने को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है. सभी प्रमुख दल अभी से सक्रिय हो गए हैं. हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी यहां पर अपनी मजबूत चुनौती पेश करने और सियासी समीकरण बिगाड़ने की तैयारी में लग गई है. AIMIM अब बिहार में उम्मीदवार तय करने के लिए ‘हैदराबादी प्लान’ में जुटी है.

ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानि AIMIM भी बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए अभी से अपनी तैयारी में जुट गई है. पार्टी नेतृत्व जोर-शोर से अपनी चुनावी रणनीति को तय करने में लगा हुआ है, लेकिन इस बीच ऐसी जानकारी भी मिल रही है, जिसके तहत यह दावा किया जा रहा है कि आगामी चुनाव को लेकर ओवैसी की पार्टी कुछ ऐसे रणनीति बना सकती है जो बिहार में पार्टी की तरफ से शायद पहली बार होगा.

कई सीटों पर AIMIM की नजर

पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस बार AIMIM पूरे बिहार में अपने उम्मीदवारों को उतारने की तैयारी में लगी हुई है. इसके लिए विशेष तौर पर रणनीति बनाई जा रही है. पार्टी की नजर मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में तो है ही लेकिन इसके अलावा वह राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी अपने उम्मीदवारों को उतारने की तैयारी को लेकर गंभीरता से विचार कर रही है. पार्टी इसके लिए अपने राज्य स्तरीय नेताओं के साथ ही कार्यकर्ताओं से भी लगातार मंथन कर रही है. पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार AIMIM इस बार कम से कम 50 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारने का प्लान बना रही है.

हालांकि उसकी विशेष नजर सीमांचल के इलाकों पर है. जहां पिछले विधानसभा चुनाव में AIMIM ने बिहार में अब तक का बेहतरीन प्रदर्शन किया था, और पहली बार 5 सीटों पर जीत हासिल की थी. AIMIM की इस ऐतिहासिक जीत ने बिहार के सभी राजनीतिक दलों के साथ ही राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया था.

क्या है हैदराबादी प्लान

दरअसल, AIMIM बिहार विधानसभा चुनाव के लिए हैदराबानी प्लान के तहत रणनीति बना रही है. पार्टी ने हैदराबाद में मेयर पद के लिए 1986 में एक चुनावी दांव चला और वो दांव कामयाब भी रहा था. तब पार्टी की तरफ से कालरा प्रकाश राव मेयर बने थे. इसके बाद पार्टी की ओर से अनुमुला सत्यनारायण 1987 में और फिर 1989 में अल्लामपल्ली पोचैया मेयर बने. हालांकि इसके बाद 2 बार मीर जुल्फिकार अली और एक बार मोहम्मद मुबीन मेयर बने थे.

AIMIM ने लगातार 3 बार हिंदू प्रत्याशी को मेयर बनाया था. संदेश देने की कोशिश यही थी कि पार्टी सबके लिए है. बिहार में वह इसी प्लान के तहत उम्मीदवार उतारने की तैयारी में जुटी है. जहां-जहां संगठन मजबूत है, पार्टी वहां पर चुनाव लड़ेगी.

अल्पसंख्यक इलाकों में हिंदू प्रत्याशी

पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आदिल हसन कहते हैं कि उनकी पार्टी पर हमेशा यह टैग लगता रहा है कि वह केवल अल्पसंख्यकों की ही बात करती है और उसकी ही पार्टी है, लेकिन ऐसा नहीं है. लेकिन हम इस धारणा को बदल देंगे. सीमांचल की किसी एक सीट से हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता राज्य सचिव और सदस्यता अभियान के प्रभारी राणा रणजीत सिंह चुनावी मैदान में उतरेंगे. राणा रणजीत सिंह को पार्टी या तो बहादुरगंज या फिर बलरामपुर सीट से अपना उम्मीदवार बना सकती है.

जितने हिंदू उतने ही मुसलमान

पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार AIMIM इस विधानसभा चुनाव में जितनी सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारने की तैयारी में है, उतनी ही सीटों पर वह गैर मुस्लिम उम्मीदवारों को भी उतारेगी. पार्टी यह कह रही है कि हमारे लिए कोई भी हिंदू अछूता नहीं है. जब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस में हिंदू नेता कार्यकर्ता हैं तो AIMIM में भी हिंदुओं का स्वागत है.

विधानसभा उपचुनाव में हिंदू प्रत्याशी

बिहार में पिछले साल चार सीटों पर उपचुनाव हुए थे जिसमें पार्टी ने सबको चौंका दिया था. पार्टी ने बेलागंज से जहां मोहम्मद जामिन अली को अपना उम्मीदवार बनाया था, वहीं इमामगंज सुरक्षित सीट से कंचन पासवान को प्रत्याशी बनाया था. जबकि शिवहर लोकसभा सीट से राणा रणजीत सिंह और काराकाट लोकसभा सीट से प्रियंका चौधरी को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया था.

राष्ट्रीय प्रवक्ता आदिल हसन कहते हैं, “जो पिछड़ापन सीमांचल क्षेत्र में है, उससे केवल मुसलमान ही प्रभावित नहीं है बल्कि इस इलाके में रहने वाले हिंदू भी उतने ही प्रभावित हैं. इस इलाके में अगर अच्छे हॉस्पिटल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज बनती हैं तो इससे हिंदुओं को भी फायदा होगा और मुसलमान को भी.”

उन्होंने आगे कहा, “अगर सीमांचल क्षेत्र से पलायन होता है तो केवल मुसलमान ही पलायन नहीं करते हैं बल्कि हिंदू भी पलायन करते हैं. इसलिए हम हिंदू और मुसलमान दोनों की आवाज बनने की पूरी कोशिश करेंगे.”

‘अकेले बीजेपी से नहीं जीत सकते’

आदिल हसन यह भी मानते हैं कि कोई भी पार्टी बीजेपी से अकेले जीत नहीं सकती है. अगर समान विचारधारा वाली पार्टी हमारा साथ दें तो हम उनके साथ देंगे. तेलंगाना में हम कांग्रेस के साथ हैं. अगर बिहार में भी ऐसा हो तो अच्छी बात होगी. बीजेपी को अकेले कोई पार्टी नहीं हरा सकती है. हम सभी को यह बात जरूर समझनी होगी.

बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने 20 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारा था. इनमें 5 सीटों (अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज) पर AIMIM को कामयाबी हासिल हुई थी. हालांकि 2015 के चुनाव में AIMIM ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली थी. 2015 में AIMIM को जहां महज 0.5 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2020 में 1.24 फीसदी वोट ही हासिल हुए थे.

ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2015 के विधानसभा चुनाव से बिहार में अपनी राजनीतिक पारी का आगाज किया था. तब से लेकर अब तक पार्टी एनडीए और महागठबंधन दोनों पर ही हमला करने की रणनीति पर काम कर रही है. बिहार में एंट्री के महज 5 साल के ही चुनावी सफर में AIMIM राज्य में जेडीयू, बीजेपी, आरजेडी, कांग्रेस और सीपीएम-माले के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.

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