इलाहाबाद का 28 अप्रैल को दिन में 12 बजे खबर मिली कि इरफान खान नहीं रहे, समझ नहीं आया कि इस खबर पर क्या प्रतिक्रिया दूं. ऑफिस में काम करना था लिहाजा किसी से कुछ नहीं कहा, काम करता रहा। ऑफिस से निकलने के बाद लॉकडाउन का सन्नाटा इरफान खान की मौत पर चीख रहा था. ऑफिस से घर रास्ते के हर मोड़ पर इरफान खान खड़ा दिख रहा था. उनींदी आंखों के साथ देख रहा था, जैसे बोल रहा हो, का भइया, देख के दुनिया का तमाशा, हम तो चल दिए….रह रह कर आंखों के सामने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पूरे भोकाल के साथ चलता रणविजय दिख जाता है. इरफान खान कौन था. कुछ कहते हैं वो गजब का कलाकार था. नेचुरल एक्टिंग करता था. लेकिन मेरे लिए इरफान खान रणविजय था. वो रणविजय जो अपनी मंजिल पाने के लिए किसी भी हद जतक जा सकता था. फिल्म हासिल बहुत सारे लोगों के लिए केवल एक फिल्म है, लेकिन हमारे जैसे इलाहाबादियों के लिए वो एक ग्रंथ है. हर सीन, हर फ्रेम की अलग कहानी, ऐसा बहुत कम होता है जब आप किसी फिल्म के किरदारों को हकीकत मान लेते हैं. हीरोइन किसी और से प्यार करती थी, अन्नी के मुकाबले रणविजय खुद को कमतर पाता था, लिहाजा रणविजय ने हदों को तोड़कर प्यार किया. ऐसा प्यार कि एकबारगी लगा जिमी को छोड़ काश निहारिका रणविजय को मिल जाती. फिल्म का क्लाइमैक्स रणविजय की मौत के साथ पूरा होता है, अपने प्यार निहारिका की आंखों में अपने लिए नफरत देख कर जो भाव इरफान ने 70 एमएम के परदे पर दिखाए थे वो आज भी दिल के किसी कोने में कैद हो गए हैं.. सालों बाद इरफान का वही अंदाज जज्बा फिल्म में दिखा… फिल्म में इरफान का किरदार ऐश्वर्य से प्यार करता है, लेकिन जताता नहीं है. फिल्म के लास्ट में इरफान के ढाबे पर ऐश्वर्य को आता देख उसका नौकर कहता है साहब कस्टमर आया है, इस पर इरफान तसल्ली से बोलते हैं…. अबे कस्टमर तो रोज आते हैं, आज तो उम्मीद आई है…इसी के बाद जब ऐश्वर्य जाती हैं. तो फिर से नौकर कहता है कि आपने ऐसे ही जाने दिया… चेहरे पर मुस्कान लिए इरफान कहते हैं… मोहब्बत है इसलिए जाने दिया… जिद होती तो बाहों में होती… इरफान खान की शख्सियत के कई रूप थे, अदाकारी के कई रंग थे. मगर मगर मगर हासिल से बढ़कर कुछ नहीं, हासिल से बड़ा कुछ नहीं, हासिल से कम कुछ नहीं. इरफान का मतलब मेरे लिए हासिल है… हासिल वो फिल्म थी, जिसने इरफान को इरफान बनाया… इसे नियति का खेल ही कहेंगे कि हासिल से इरफान की बुलंदियों का दरवाजा खोलने वाले तिगमांशु धूलिया इरफान के आखिरी सफर में उनके साथ थे. कंधों पर इरफान का जनाजा उठा कर उन्हे इस दुनिया रे रुखसत करते तिगमांशु के मन में भी शायद हासिल वाला रणविजय ही घूम रहा होगा…
इरफान के जाने की ये कोई उम्र थी क्या… लेकिन किसी के जाने की सही उम्र क्या होती है. बहुत याद आओगे गुरु. 2003 में परदे पर तुमसे पहली मुलाकात हुई थी… इलाहाबाद का रणविजय आज चला गया…जयपुर में पैदा हुआ साहबजादा इरफान खान मेरे लिए हमेशा रणविजय रहेगा..
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