ये बिल्कुल सच है कि पहले फ़िल्में मूक हुआ करती थीं…लेकिन मोहम्मद रफ़ी के गाने जिसने सुने हैं वो सभी मानते हैं कि फ़िल्मों को अपनी आवाज़ से सुरीला बनाने का काम मोहम्मद रफ़ी ने ही किया था…
सच ही कहा गया है कि पूत के पांव पालने में ही पहचान में आ जाते हैं… महज़ 13 साल की उम्र में ज़िंदगी का पहला स्टेज शो करके मोहम्मद रफ़ी ने तस्वीर साफ़ कर दी थी…13 साल की उमर में अपनी आवाज़ का जादू बिखरेने का वाकया भी काफ़ी दिलचस्प है…रफ़ी साहेब अपने भाई हमीद के साथ उस समय के मशहूर गायक केएल सहगल का एक कार्यक्रम देखने गए। इत्तफाक से कार्यक्रम के दौरान बिजली चली गई और सहगल ने गाने से इनकार कर दिया। ऐसे में रफी ने मंच संभाला और अपनी आवाज के जादू से सभी का दिल जीत लिया…
इस बात से भी कम ही लोग वाकिफ हैं कि मोहम्मद रफी ने ना केवल अपने दौर के अभिनेताओं के लिए गाया बल्कि उस ज़माने के प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार के लिए भी आवाज़ दी… फिल्म थी रागिनी.. संगीतकार थे ओपी नैयर साहेब…और गाना था
मोहम्मद रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर ज़िला, पंजाब में हुआ था। आज रफी साहब होते तो 96 बरस के हो गए होते। बेशक रफी साहब हमारे बीच में नहीं है, लेकिन उनके गाने तब तक सुने जाएंगे जब तक ये दुनिया कायम रहेगी…
मशहूर संगीतकार नौशाद अपने अधिकतर गाने तलत महमूद से गवाते थे। एक बार उन्होंने रिकार्डिंग के दौरान महमूद को सिगरेट पीते देख लिया था। इसके बाद वे उनसे चिढ़ गए और अपनी फिल्म बैजू बावरा के लिए उन्होंने रफ़ी साहेब को साइन किया। रफी के बारे में यह माना जाता था कि वे धर्मपरायण मुसलमान थे और सभी तरह के नशे से दूर रहते थे..बैजू बावरा के गानों ने मोहम्मद रफी को नई पहचान दी…
सुरों के बेताज बादशाह मोहम्मद रफ़ी को 1960 में चौदहवीं का चांद के लिए पहली बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। रफी को सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का फिल्मफेयर पुरस्कार छह बार मिला।
उन्हें 1968 में बाबुल की दुआएं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था। रफ़ी साहेब को दो बार प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था। हर बड़े संगीतकार के साथ मोहम्मद रफ़ी ने काम किया और नया मुकाम हासिल किया…एसडी बर्मन ने उस दौर में रफी को देवानंद की आवाज बना दिया था। दिन ढल जाए ने बड़ी कामयाबी हासिल की…तेरे-मेरे सपने ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए…
मोहम्मद रफ़ी के सुरों में ऐसी ताज़गी थी कि हर दौर के युवाओं ने बेफिक्र होने के लिए मोहम्मद रफ़ी को ही सुना… सुरों का पर्याय बन चुका यह महान कलाकार आज ही के दिन 31 जुलाई को हमें सदा के लिए छोड़कर चला गया। इस गायक के बारे में किसी गीतकार ने ठीक ही लिखा है कि न फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया।