मुंबई। देश की राजनीति में शरद पवार एक ऐसे नेता हैं जिनको कोई जान पाए, ऐसा भूतो ना भविष्यति…बस यह तय है कि पवार बने रहते हैं सत्ता के साथ भी, सत्ता के बाद भी. यह मंजिल पूरी होती हो तो उनके लिए यह भी सही और वो भी सही. बाकी उनके सहयोगी कांग्रेस और उद्धव ठाकरे यह ना समझें, अब इतने भी मासूम हैं तो…फिर यह उनकी गलती है. हालांकि जब 1998 में शरद पवार कांग्रेस से अलग होकर तारिक अनवर तथा पीए संगमा और कुछ कांग्रेस के नेताओं के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया तब कई वर्षों तक तारिक अनवर उनके साथ रहे मगर शरद पवार की राजनीति को भांपकर तारिक अनवर ने उनका साथ छोड़ दिया और वे पुनः कांग्रेस में वापस लौट गए. सूत्रों की मानें तो केंद्र में नरेंद्र मोदी के आने के बाद शरद पवार अंदरूनी रूप से उनके साथ हो चले. शायद इस बात की जानकारी तारिक अनवर को मिल गई और उन्होंने पवार का साथ छोड़ दिया. हालांकि आजतक तारिक अनवर ने एनसीपी छोड़ने के पीछे कोई सटीक कारण नहीं बताया है. उधर नागालैंड में बीजेपी-एनडीपीपी के गठबंधन की सरकार बन रही है. वहां पहली बार सर्वदलीय सरकार का गठन हो रहा है. यानी राज्य में कोई भी विपक्षी दल नहीं होगा. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और जेडीयू ने भी बीजेपी गठबंधन का सपोर्ट करने का फैसला किया है. यह कहने की जरूरत नहीं है कि बिहार में जेडीयू और बीजेपी और महाराष्ट्र में एनसीपी और बीजेपी एक दूसरे के घोर विरोधी हैं. फिर भी जेडीयू और एनसीपी ने बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान किया है. इस तरह नागालैंड में सीटें जीतकर आईं सभी पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया है. जाहिर है कि जब सर्वदलीय सरकार बनेगी तो राज्य में कोई विपक्ष नहीं रहेगा.
– पवार की ऐसी राजनीति जो कोई समझ ना पाए
बात करें शरद पवार की तो यह सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र और देश की राजनीति में एनसीपी बीजेपी की कट्टर विरोधी समझी जाती है. लेकिन शरद पवार को करीब से जानने वाले कहते हैं कि शरद पवार कब क्या दांव खेलते हैं ये किसी को पता तक नहीं चलने देते. मिसाल के तौर पर 2014 के चुनाव में केंद्रीय पटल पर मोदी के उदय के वक्त की बात करें तो महाराष्ट्र में बीजेपी में बड़ी तादाद में एनसीपी कार्यकर्ता और नेता शामिल हुए. आज भी कई लोगों के लिए यह रहस्य है कि वे एनसीपी से रुठ कर बीजेपी में जा रहे थे या मोदी की लहर को भांप कर शरद पवार ही बैक डोर से उनकी एंट्री करवा रहे थे. फिर दूसरी मिसाल मिलती है जब 2019 के चुनाव की काउंटिंग चल ही रही है कि एनसीपी ने बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया. इस तरह ठाकरे की शिवसेना का बीजेपी से ज्यादा मंत्रिपद लेने के प्लान को पवार ने चौपट कर दिया. फिर बेहद अपमानजनक तरीके से उसे बीजेपी के साथ रहना पड़ा और सब सहना पड़ा. 2019 के चुनाव के बाद एनसीपी और बीजेपी में आपसी सहयोग की तीसरी मिसाल तब मिलती है जब अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस ने मिलकर सुबह सरकार बनाने के लिए शपथ ली थी. यह रहस्य हाल ही में देवेंद्र फडणवीस ने एक इंटरव्यू में खोल दिया कि अजित पवार ने एनसीपी से बगावत नहीं की थी बल्कि वह शपथ ग्रहण शरद पवार की सहमति से हुआ था. जब सवाल उठे तो शरद पवार ने काफी दिनों बाद ये जवाब दिया कि उन्होंने ऐसा महाराष्ट्र को राष्ट्रपति शासन से बचाने के लिए किया. यानी साफ है कि शरद पवार ने अपने जीवन में कई ऐसे फैसले किए हैं जो पर्सेप्शन से हट कर रहे हैं. शरद पवार को जानने और समझने वालों के लिए नागालैंड में एनसीपी का बीजेपी गठबंधन की सरकार को समर्थन देना चौंकाता नहीं है. बस सोचने वाली बात यह है कि यह उद्धव ठाकरे को समझ आता है, या नहीं ? कहीं ऐसा ना हो जाए कि उद्धव ठाकरे अपनी जिद में रह जाएं और आने वाले कल में कोई ऐसा संयोग बने कि बीजेपी और एनसीपी मिलकर महाराष्ट्र में कुछ कर जाएं और ठाकरे देखते ही रह जाएं. बहरहाल अब कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की अगली रणनीति क्या होगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा ?
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