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बिजली पानी और सड़क की राह तक रहा है निमाड़ का पेरिस

 बड़वानी। सतपुड़ा और विंध्याचल पर्वत शृंखलाओं के बीच बसा छोटा सा शहर, जिसे बरगद के बगीचों की वजह से ‘बड़वानी’ नाम मिला, जो आजादी के पहले ‘निमाड़ का पेरिस’ कहलाता था और जहां उत्तरी सीमा को अपनी विपुल जलराशि से सिंचित करती पुण्यसलिला ‘रेवा’ समृद्धि के द्वार रोज खटखटाती है, वहां का बड़ा क्षेत्र पेयजल, बिजली और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए रोज संघर्ष करता है।

आदिवासियों का पलायन

यहां सतपुड़ा की पहाड़ी पर एक ही पत्थर पर निर्मित भगवान ऋषभदेव की 52 गज की प्रतिमा दुनियाभर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है और जिनके नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम बावनगजा कहलाया हो, वहां का पहुंच मार्ग अब तक सुविधाजनक नहीं बन सका है। सामाजिक कार्यकर्ता मनीष शर्मा कहते हैं कि उद्योग नहीं होने की वजह से हर वर्ष बड़ी संख्या में आदिवासी यहां से गुजरात और महाराष्ट्र की ओर पलायन करते हैं। सिकलसेल एनिमिया की बीमारी क्षेत्र की बड़ी समस्या है। सर्वे और जागरूकता अभियान कागजों पर तो बेहद मजबूत नजर आते हैं, लेकिन शहरी क्षेत्र से गांवों का रुख करते ही तस्वीर साफ होने लगती है।

कई इलाकों में नहीं पहुंची बिजली

विधानसभा क्षेत्र का सबसे अधिक आबादी वाला क्षेत्र पाटी पहाड़ियों में बसा है। वहां पेयजल के लिए चार-पांच किमी का सफर रोजाना तय करना सामान्य सी बात मानी जाती है। अब भी क्षेत्र के दर्जनों गांव, टोले, मजरे ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं पहुंची है।

स्कूल, पुल, अस्पताल सभी कुछ तो है यहां

1993 से 2003 तक अवश्य बड़वानी क्षेत्र में विकास नहीं हुआ, लेकिन उसके बाद हमने यहां की तस्वीर बदल दी। बेहतर स्कूल हैं, अच्छे छात्रावास और अस्पताल हैं। जहां-जहां पुराने पुल थे, उन्हें नया बनाया जा रहा है। पाटी क्षेत्र में सड़क और पुल का काम तेजी से चल रहा है। बिजली भी बहुत से गांवों तक पहुंच गई है। बचे गांव भी जल्द रोशन होंगे। – प्रेमसिंह पटेल, विधायक व कैबिनेट मंत्री

जल परियोजनाओं का लाभ नहीं

यह क्षेत्र परिवारवाद की राजनीति का गढ़ है। विधायक प्रेमसिंह पटेल के परिवार के ज्यादातर सदस्य जिले के प्रमुख पदों पर काबिज हैं, लेकिन यहां न जल परियोजनाओं का लाभ यहां मिल रहा है, न रोजगार को लेकर कोई काम हो रहा है। शहरी क्षेत्र से बाहर निकलते ही हाल बुरे हैं। – रमेश पटेल (बीते चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी)

क्षेत्र में कुछ कार्य नहीं हुआ

भाजपा विधायक यहां से लगातार पांच बार निर्वाचित हुए हैं। अब वे प्रदेश में मंत्री भी हैं। राज्यसभा सांसद और सांसद होने के बाद भी विकास की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। पहाड़ी क्षेत्र में लोग एक ही फसल ले पाते हैं। पानी, रोजगार कुछ नहीं है। इतने सालों में क्षेत्र में कुछ नहीं हुआ। – राजन मंडलोई (बीते चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार)

क्षेत्र के मुद्दे

– पहाड़ी इलाके में बिजली, पानी और सड़क अब तक नहीं पहुंची

– रोजगार नहीं होने से क्षेत्र में पलायन सबसे बड़ी समस्या

– सर्वसुविधायुक्त अस्पताल हैं, लेकिन विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी

– डूब क्षेत्र में प्राचीन मंदिरों का विस्थापन नहीं होने से लोगों में नाराजगी

– इंजीनियरिंग, कृषि और मेडिकल कालेजों की मांग वर्षों से अधूरी

– कृषि क्षेत्र होने के बाद भी क्षेत्र में एक भी कोल्ड स्टोरेज या फूड प्रोसेसिंग यूनिट नहीं

शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं भी नाकाफी

बड़वानी रियासतकाल में शिक्षा का बड़ा केंद्र था। आसपास की कई तहसीलों से 11 हजार से अधिक विद्यार्थी पढ़ाई के लिए जिले के इस इकलौते कालेज में आते हैं। स्वास्थ्य के लिहाज से कई निजी अस्पताल बड़वानी जिला मुख्यालय में मौजूद हैं। इसके साथ ही 500 बेड का शासकीय अस्पताल भी है, लेकिन विशेषज्ञ डाक्टरों के अभाव में मरीजों को या तो निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है या फिर बड़े शहरों में इलाज के लिए जाना पड़ता है। नगर पालिका उपाध्यक्ष सुभाष भावसार कहते हैं- सिकलसेल के मरीज यहां काफी आते हैं। इलाज की सुविधा सरकारी अस्पतालों में बेहतर होनी चाहिए।

पर्यटन की संभावनाएं लेकिन प्रयास ही नहीं

खूबसूरत वादियों, पर्वत शृंखलाओं और वर्षाकाल में झरनों से ओत-प्रोत प्राकृतिक सौंदर्य बड़वानी में जगह-जगह नजर आता है। पर्यटन के लिहाज से यह अपार संभवाना वाला क्षेत्र है, लेकिन इस ओर न जनप्रतिनिधि ध्यान देते हैं, न ही विभागीय अधिकारी। बावनगजा जैसे धार्मिक पर्यटन क्षेत्र जहां हर वर्ष हजारों लोग पहुंचते हैं, उसका पहुंच मार्ग भी अब तक बेहतर नहीं किया जा सका है।

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