नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि सात दिनों या उससे अधिक समय तक कोविड-19 से पीड़ित लोगों में अवसाद और घबराहट की दर उन लोगों की तुलना में अधिक थी, जो संक्रमित थे, लेकिन कभी बिस्तर पर नहीं गए। यह रिपोर्ट ‘द लैंसेट’ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित की गई। शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि सार्स-कोव-2 संक्रमण वाले ऐसे रोगी जो अस्पताल में भर्ती हुए उनमें 16 महीने तक अवसाद के लक्षण देखे गए।
अस्पताल में भर्ती नहीं होने वालों में लक्षण जल्दी कम हुए – ऐसे संक्रमित मरीज जिन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ा, उनमें अवसाद और घबराहट के लक्षण ज्यादातर दो महीने के भीतर ही कम हो गए। सात दिनों या उससे अधिक समय तक बिस्तर पर रहने वालों में 16 महीने तक अवसाद और घबराहट की समस्या 50 से 60% अधिक थी। कोरोना के शारीरिक लक्षणों के जल्दी ठीक होने से आंशिक रूप से यह समझा जा सकता है कि हल्के संक्रमण वाले लोगों के लिए मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण समान दर से क्यों घटते हैं? हालांकि, गंभीर रोगियों में अक्सर सूजन का अनुभव होता है, जो मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों विशेष रूप से अवसाद से जुड़ा हुआ है।
अवसाद और घबराहट की उच्च दर देखी गई – आइसलैंड विश्वविद्यालय के इंगिबजॉर्ग मैग्नसडॉटिर ने बताया कि कोरोना रोगियों में अवसाद और घबराहट की उच्च दर देखी गई, जो सात दिन या उससे अधिक समय तक बिस्तर पर रहे। दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में जानने के लिए शोधकर्ताओं ने कोरोना से ठीक हुए लोगों के बीच 16 महीनों तक अध्ययन किया, जिसमें अवसाद, घबराहट और खराब नींद की गुणवत्ता के लक्षण दिखाई दिए। ये आंकड़े डेनमार्क, एस्टोनिया, आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और ब्रिटेन में 2,47,249 लोगों के सात समूहों पर अध्ययन करने के बाद सामने आए हैं।
सभी मरीजों पर समान प्रभाव नहीं – विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उन्नूर अन्ना वाल्दीमार्सडॉटिर ने कहा कि यह शोध बताता है कि मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव सभी कोविड-19 रोगियों के लिए समान नहीं है। उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की गंभीरता को निर्धारित करने में बिस्तर पर बिताया गया समय एक महत्वपूर्ण कारक है।