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वो लोकसभा चुनाव जब 2 लोकसभा सीटों पर उतरे थे 500-500 से ज्यादा प्रत्याशी, बड़ी वजह थी ‘गांधीवादी’

अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन ने साल 1856 में अपने एक चर्चित भाषण के दौरान कहा था कि बैलेट बुलेट की तुलना में ज्यादा मजबूत होता है. भारत में भी चुनाव और वोट की अहमियत देखी जाती है. देश में इस समय लोकसभा चुनाव को लेकर जबर्दस्त चुनावी माहौल बना हुआ है. 7 में से 2 चरणों के चुनाव पूरे हो चुके हैं. शेष 5 चरणों में चुनाव प्रचार जोर पकड़ता जा रहा है. देश में चुनावी किस्सों की भरमार है. ऐसा ही एक मामला आया जब बड़ी संख्या में लोगों ने नाराजगी में ‘गांधीवादी’ तरीके से चुनाव मैदान में उतरने का फैसला लिया था.

चुनावी किस्से में आज जानते हैं उन 2 लोकसभा सीटों के बारे में. बात 1996 के लोकसभा चुनाव की है. पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई में 10वीं लोकसभा का कार्यकाल खत्म हो गया था और 11वीं लोकसभा के लिए अप्रैल और मई में आम चुनाव कराए जा रहे थे. हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी राजनीतिक दलों के अपने मुद्दे तो थे ही, लेकिन किसानों, मजदूरों, महिलाओं और युवाओं के अलावा स्थानीय स्तर पर संयुक्त रूप से कुछ ऐसी गहन समस्याएं भी थीं जिन पर सुनवाई नहीं हो रही थी. ऐसे में नाराज लोगों ने मुद्दे को राष्ट्रीय फलक पर लाने के लिए खास रणनीति बनाई और एक ही संसदीय सीट पर 500 से अधिक लोग चुनाव मैदान में उतर गए.

66 महिलाओं समेत 537 ने भरा पर्चा

नालागोंडा संसदीय क्षेत्र, आज से 10 साल पहले अविभाजित आंध्र प्रदेश के तहत हुआ करता था. साल 2014 में तेलंगाना एक नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आया और नालागोंडा क्षेत्र तेलंगाना के हिस्से में चला गया. साल 1996 के संसदीय चुनाव में नालागोंडा संसदीय क्षेत्र के लोग अपने नेताओं के ढुलमुल रवैया से इतने नाराज थे कि उन्होंने कुछ बड़ा करने का फैसला लिया. उन्होंने हिंसा करने की जगह ‘गांधीवादी’ तरीका अपनाया और चुनाव लड़कर अपना विरोध जताया.

चुनाव में नालागोंडा लोकसभा सीट पर उम्मीदवारों की बाढ़ सी आ गई. यहां पर 100, 200 या 300 नहीं बल्कि 500 से अधिक लोगों ने उम्मीदवारी के लिए नामांकन दाखिल किया. 66 महिलाओं समेत 537 लोगों ने अपनी दावेदारी पेश की, जिसमें 35 लोगों की दावेदारी खारिज हो गई. कुल मिलाकर मैदान में रिकॉर्ड 480 उम्मीदवार बचे. इनमें 60 महिला प्रत्याशी भी शामिल थीं. चुनाव परिणाम आया तो 480 में से 477 प्रत्याशियों की जमानत ही जब्त हो गई. किसी लोकसभा सीट पर सबसे अधिक उम्मीदवार होने का यह रिकॉर्ड नालागोंडा के ही नाम है.

बेलगाम में जब्त हो गई 454 की जमानत

नालागोंडा ही नहीं कर्नाटक का बेलगाम लोकसभा क्षेत्र भी भारी संख्या में उतरे उम्मीदवारों की वजह से देशभर में चर्चा में आ गया. बेलगाम लोकसभा सीट पर भी पांच सौ से ज्यादा यानी 521 लोगों (58 महिलाएं और 463 पुरुष) ने पर्चा भरा. 2 महिलाओं समेत 12 लोगों की दावेदारी खारिज हो गई. 53 लोगों ने अपने नाम वापस ले लिए. कुल मिलाकर यहां पर 456 लोगों के बीच मुकाबला हुआ. वोटों की जब गिनती हुई तब सिर्फ 2 लोगों की जमानत राशि बची थी, बाकी 454 लोगों की जमानत जब्त हो गई थी.

500 से अधिक नामांकन और 400 से अधिक उम्मीदवारों के बीच मुकाबले वाले ये दोनों लोकसभा सीट तब खासे चर्चा में आए थे. आखिर इसके पीछे की बड़ी वजह क्या थी. इन दोनों ही सीटों से जुड़े स्थानीय लोग अपने मुद्दों पर हर किसी का ध्यान खींचना चाहते थे. 19 लाख लोगों की आबादी वाले तेलंगाना के नालागोंडा क्षेत्र के लोग शुद्ध पेयजल की समस्या से त्रस्त थे. पानी में भारी मात्रा में फ्लोराइड होने से लोगों को खासी दिक्कत हो रही थी. यहां के लोग फ्लोरोसिस नाम की बड़ी बीमारी से पीड़ित थे. यह लंबे समय से दूषित पानी पीने की वजह से हुआ था. प्रशासनिक तौर पर कई बार गुहार लगाने के बाद भी उनकी समस्या जस की तस रही थी. ऐसे में लोग बड़ी संख्या में चुनाव में उतरकर अपना रोष जताया था.

आज इन इलाकों का क्या हाल

यही हाल कर्नाटक के बेलगाम क्षेत्र का भी था. बेलगाम भले ही कर्नाटक क्षेत्र में पड़ता हो, लेकिन यह क्षेत्र मराठी बाहुल्य है और यहां के लोग खुद को महाराष्ट्र में शामिल होने की मांग करते रहे हैं. लेकिन कर्नाटक इसे स्वीकार नहीं करता और ऐसी मांग को खारिज भी करता रहा है. 70 साल भी अधिक पुराने बेलगाम को लेकर कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्य के बीच सीमा विवाद की स्थिति भी बनी रहती है. स्थानीय स्तर पर यह बड़ा राजनीतिक मामला भी है. इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर लाने के मकसद से 500 से अधिक लोगों ने एक ही सीट से पर्चा भरा था.

हालांकि ध्यान देने वाली बात यह है कि नालागोंडा और बेलगाम क्षेत्र के लोगों की ओर से अपनी-अपनी मांगों को लेकर 28 साल पहले किया गया यह आंदोलन तब भले ही चर्चा में रहा हो. लेकिन आज भी ये दोनों मामले सुलझ नहीं सके हैं. नालागोंडा में साफ पानी को लेकर सरकारी प्रयास आज जरुर किए जा रहे हैं. इसमें कामयाबी भी मिली है, लेकिन समस्या अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हो सकी है. वहीं बेलगाम को लेकर दोनों राज्यों के लोगों के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती है. शिवसेना की ओर से अब बेलगाम को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने की मांग की जा रही है जबकि कन्नड लोग इनके खिलाफ हैं.

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