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जानें- कौन था मीर बाकी? अयोध्या विवाद में बार-बार क्यों किया जाता है इस शख्स को याद

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चला देश का वो केस जिसके फैसले पर धर्मनिरपेक्ष भारत की 130 करोड़ की आबादी की नजरें टिकी हैं उसका फैसला आज सुबह 10.30 बजे सुनाया जाएगा। उस अयोध्या भूमि विवाद  (Ayodhya Land Disputes) की 400 साल पुरानी कहानी में सुनवाई के दौरान बार- बार एक नाम दोहराया गया। वो नाम है मीर बाकी का। मीर बाकी (Mir Baqi) जिसे बाकी ताशकंदी के नाम से जाना जाता था, मुगल बादशाह बाबर का सेनापति था, जिसने बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। वही बाबरी मस्जिद, 6 दिसंबर 1992 को जिसके विध्वंस के बाद देश की धर्मनिरपेक्षता पर एक बहुत बड़ा सवालिया निशान हमेशा के लिए लग गया। इस विध्वंस के बाद भारतीय हिंदू-मुस्लिम के बीच ऐसी दरार बनी जो शायद आज तक नहीं भर सकी है।

 मीर बाकी जिसने बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था वो ताशकंद का रहने वाला था, जो वर्तमान में उज्बेकिस्तान के नाम से जाना जाता है। बाबर ने बाकी को अवध की कमान सौंपते हुए उसे वहां का गर्वनर बनाया था। मीर बाकी कई नामों से जाना जाता था। उसे बाकी मिंगबाशी, बाकी शाघावाल, बाकी बेग के नाम से भी जाना जाता है।

1528-29 में बाबर के आदेश बनाया था मस्जिद
मस्जिद के शिलालेखों के मुताबिक 1528-29 में बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था। ये मस्जिद बहुत ही भव्य था, इसकी भव्यता का प्रमाण ये है कि ये अपने समय में उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी मस्जिद हुआ करती थी। इसको मस्जिद-ए-जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता था। इसी से ये भी अंदाजा लगाया गया कि ये मंदिर राम जन्मभूमि में स्थित है।

बाबरनामा में नहीं है बाबरी मस्जिद का जिक्र
हालांकि बाबरनामा में मीर बाकी के विषय में कुछ भी नहीं लिखा गया है। इतना ही नहीं बाबरनामा में बाबरी मस्जिद का जिक्र भी नहीं है। विवादित भूमि पर मंदिर न होने के प्रमाण न तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस में हैं और न ही आईन-ए-अकबरी में। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सर्वेयर फ्रांसिस बुकानन ने बाबरी मस्जिद से जोड़ते हुए मीर बाकी के नाम का जिक्र पहली बार 1813 में किया।

2003 में मिले थे मंदिर होने के प्रमाण
माना जाता है कि बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले वहां भगनान राम का मंदिर था। जिसे मीर बाकी ने तुड़वाकर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। हालांकि, मुस्लिम पक्ष इस बात को पूरी तरह से खारिज करता है कि वहां पहले कोई मंदिर था। विवादित भूमि पर मंदिर को होने की बात को थोड़ा बल तब मिला जब साल 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को मस्जिद के नीचे एक पुराना खंडर मिला जो हिंदू मंदिर से मिलता- जुलता जान पड़ता था।

अयोध्या भूमि विवाद मामला चलता रहा और अब इसकी सुवाई पूरी होने के बाद, इस पर देश का सर्वोच्च न्यायालय क्या फैसला देगा ये जानने के लिए सभी उत्सुक हैं। अयोध्या में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। ये देखना दिलचस्प होगा की धर्मनिरपेक्ष भारत में मंदिर-मस्जिद के विवाद पर जीत किसकी होती है।

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