रूस ने यूक्रेन पर पहली बार दागी ये खास मिसाइल, कच्चे तेल की कीमतों ने पकड़ ली रफ्तार, अब टेंशन में आया इंडिया
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रही है. अब तो रूस ने यूक्रेन पर जारी हमले को और तेज कर दिया है. 21 नवंबर को जब रूस ने यूक्रेन के निप्रो शहर पर इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल RS-26 रूबेज से हमला किया. इस घटना से न केवल दोनों देशों के बीच संघर्ष और गहरा हुआ, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजारों में भी हलचल मच गई है. यूक्रेनी वायु सेना ने पुष्टि की है कि रूस ने यह हमला पहले से योजनाबद्ध तरीके से किया था.
कच्चे तेल की कीमतों में आई तेजी
इस हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी देखने को मिली. गुरुवार को ब्रेंट क्रूड वायदा 0.4% की बढ़त के साथ 73.09 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया, जबकि यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड वायदा भी 69.03 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा था. भू-राजनीतिक तनाव और आपूर्ति में बाधा की चिंताओं ने कीमतों को बढ़ावा दिया.
क्या होगा असर?
भारत जैसे ऊर्जा आयात पर निर्भर देशों के लिए तेल की बढ़ती कीमतें चिंता का विषय हैं. भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का अधिकांश हिस्सा आयात करता है, जिससे वैश्विक तेल बाजार के उतार-चढ़ाव का सीधा असर पड़ता है. कच्चे तेल की ऊंची कीमतें न केवल व्यापार घाटे को बढ़ा सकती हैं, बल्कि महंगाई दर में भी इजाफा कर सकती हैं. रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है, इसलिए सप्लाई में किसी भी बाधा का भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर गहरा असर पड़ सकता है.
तेल बाजार पर एक और असर OPEC+ की आगामी बैठक से पड़ सकता है. पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) और रूस के नेतृत्व वाले उसके सहयोगी 1 दिसंबर को होने वाली बैठक में उत्पादन बढ़ाने की योजना को टाल सकते हैं. OPEC+ ने पहले 2024 और 2025 में उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी की योजना बनाई थी, लेकिन वैश्विक तेल मांग में कमी और अन्य देशों द्वारा उत्पादन में बढ़ोतरी ने इस योजना को मुश्किल बना दिया है.
क्यों टेंशन में आया भारत?
अमेरिका में कच्चे तेल के भंडार में 5,45,000 बैरल की वृद्धि भी कीमतों पर असर डाल रही है. यह भंडार 43.03 करोड़ बैरल तक पहुंच गया है. विश्लेषकों ने इससे कम वृद्धि का अनुमान लगाया था, लेकिन भंडारण में अप्रत्याशित वृद्धि ने बाजार की स्थिति को और जटिल बना दिया है. रूस-यूक्रेन युद्ध और तेल बाजार के हालिया घटनाक्रम वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और कीमतों पर बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं. भारत जैसे देशों के लिए यह स्थिति आर्थिक चुनौतियों को और बढ़ा सकती है. आने वाले हफ्तों में OPEC+ की बैठक और भू-राजनीतिक घटनाओं पर नजर रखना महत्वपूर्ण होगा.